Last Updated:December 28, 2025, 08:07 IST
Bombay High Court On Padma Award And Bharat Ratna: बॉम्बे हाईकोर्ट ने नाम के टाइटल के रूप में Bharat Ratna या Padma Award लगाने पर सख्त कमेंट किया है. हाईकोर्ट ने कहा कि ऐसा करने पर अनुच्छेद 18 (1) के तहत सम्मान छिन सकता है. कोर्ट ने सुप्रीम कोर्ट के फैसले का हवाला दिया.
भारत रत्न या पद्म ऑवर्ड पर बॉम्बे हाईकोर्ट की सख्त कमेंट. (फाइल)Bombay High Court On Padma Award And Bharat Ratna: क्या आप जानते हैं कि भारत सरकार द्वारा दिए जाने वाले सर्वोच्च नागरिक सम्मान जैसे ‘भारत रत्न’ या ‘पद्मश्री’ को अपने नाम के साथ चिपकाना भारी पड़ सकता है? बॉम्बे हाईकोर्ट ने एक मामले की सुनवाई के दौरान बेहद सख्त टिप्पणी करते हुए साफ कर दिया है कि ये राष्ट्रीय पुरस्कार कोई उपाधि (Title) नहीं हैं. बॉम्बे हाईकोर्ट के निर्देश के अनुसार, इनका इस्तेमाल नाम के आगे (Prefix) या पीछे (Suffix) नहीं किया जा सकता. कोर्ट ने चेतावनी दी कि अगर पालन नहीं किया गया, तो विधान के आर्टिकल 18(1) (टाइटल खत्म करना) के तहत सम्मान वापस भी लिया जा सकता है.
दरअसल, एक सुनवाई के दौरान बॉम्बे हाईकोर्ट के न्यायमूर्ति सोमशेखर सुंदरेशन ने एक याचिका के केस पर नजर पड़ी. कोर्ट के सामने एक याचिका आई थी जिसका टाइटल था- ‘डॉ. त्रिंबक वी. दापकेकर बनाम पद्मश्री डॉ. शरद एम. हार्डिकर और अन्य.’ जस्टिस सुंदरेशन की नजर जैसे ही प्रतिवादी के नाम के आगे लगे ‘पद्मश्री’ शब्द पर पड़ी, तो वह भड़क उठे. उन्होंने कहा कि भले ही डॉ. हार्डिकर को मेडिकल के क्षेत्र में उनके योगदान के लिए 2004 में पद्मश्री से सम्मानित किया गया हो, लेकिन कानूनी तौर पर इसे नाम के साथ एक ‘टाइटल’ की तरह इस्तेमाल करना गलत है.
जस्टिस सोमशेखर सुंदरेशन (पीटाआई)
अवॉर्ड को टाइटल के रूप से यूज नहीं कर सकते हैं
बॉम्बे हाई कोर्ट ने एक याचिका के केस टाइटल को लिखने के तरीके की ओर इशारा करते हुए कहा कि ‘पद्म श्री’ और ‘भारत रत्न’ जैसे सिविलियन अवॉर्ड टाइटल नहीं हैं. इन्हें अवॉर्ड पाने वालों के नाम के आगे या पीछे नहीं लगाया जा सकता. जस्टिस
सुप्रीम कोर्ट भी दे सुना चुका है फैसला
बॉम्बे हाईकोर्ट ने कहा, ‘इस मुद्दे पर सुप्रीम कोर्ट की संविधान पीठ (Constitution Bench) के पुराने फैसले को याद दिलाया. कोर्ट ने ‘बालाजी राघवन/एसपी आनंद बनाम भारत संघ’ मामले का जिक्र किया. सुप्रीम कोर्ट ने स्पष्ट किया था कि-
भारत रत्न, पद्म विभूषण, पद्म भूषण और पद्मश्री संविधान के अनुच्छेद 18(1) के तहत ‘उपाधियां’ नहीं हैं. इसमें संविधान में उपाधियों के अंत (Abolition of titles) की बात कही गई है ताकि समानता बनी रहे. सुप्रीम कोर्ट ने साफ कहा था कि अगर कोई व्यक्ति इन पुरस्कारों को अपने नाम के आगे या पीछे लगाता है, तो यह नियमों का उल्लंघन है. ऐसे मामलों में, पुरस्कार बनाने वाली अधिसूचना के ‘रेगुलेशन 10’ के तहत दोषी व्यक्ति से उसका राष्ट्रीय सम्मान ( Award) वापस लिया जा सकता है या रद्द किया जा सकता है.पालन सुनिश्चित करें
इसके बाद, हाई कोर्ट ने पार्टियों को कार्रवाई करते समय सुप्रीम कोर्ट द्वारा बताए गए कानून का पालन पक्का करने का निर्देश दिया. आदेश में आगे निर्देश दिया गया कि कोर्ट को भी यह पक्का करना चाहिए कि भारत के संविधान के आर्टिकल 141 के अनुसार इसका पालन हो.
पुणे के ट्रस्ट का था विवाद
जिस याचिका पर सुनवाई के दौरान यह टिप्पणी आई, वह पुणे के एक ट्रस्ट से जुड़ा मामला था. इसमें ट्रस्टियों की बैठक की तारीख को लेकर विवाद था. रिकॉर्ड के मुताबिक बैठक 21 जनवरी 2016 को हुई थी, लेकिन रिपोर्ट में इसे 20 जनवरी दिखाया गया था. कोर्ट ने तारीख में सुधार की अनुमति तो दे दी, लेकिन साथ ही ‘पद्मश्री’ के गलत इस्तेमाल पर बड़ा सबक भी दे दिया.
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दीप राज दीपक 2022 में न्यूज़18 से जुड़े. वर्तमान में होम पेज पर कार्यरत. राजनीति और समसामयिक मामलों, सामाजिक, विज्ञान, शोध और वायरल खबरों में रुचि. क्रिकेट और मनोरंजन जगत की खबरों में भी दिलचस्पी. बनारस हिंदू व...और पढ़ें
Location :
Mumbai,Maharashtra
First Published :
December 28, 2025, 08:07 IST
भारत रत्न या पद्म श्री लगाने वालों की खैर नहीं! बॉम्बे HC की खरी-खरी

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