Last Updated:August 24, 2025, 06:51 IST

लोकसभा में हाल ही में पेश हुए संविधान (130वां) संशोधन विधेयक ने विपक्षी एकता, यानी इंडिया गठबंधन के भीतर दरार को एक बार फिर उजागर कर दिया है. यह बिल और इसके साथ जुड़े जम्मू-कश्मीर पुनर्गठन संशोधन विधेयक और केंद्र शासित प्रदेश शासन संशोधन विधेयक में प्रावधान है कि अगर कोई मंत्री, मुख्यमंत्री या प्रधानमंत्री किसी ऐसे अपराध में गिरफ्तार या हिरासत में लिया जाता है, जिसकी सजा पांच साल या उससे अधिक है, और यह हिरासत लगातार 30 दिन तक रहती है, तो वह अपने पद से खुद ब खुद बर्खास्त हो जाएंगे.
यह विधेयक 20 अगस्त को लोकसभा में पेश हुआ. इस दौरान विपक्षी सांसदों ने जोरदार हंगामा किया, नारेबाजी की और यहां तक कि ड्राफ्ट बिल की कॉपियां फाड़कर गृहमंत्री अमित शाह की ओर फेंकी गईं. हंगामे के बीच सरकार ने बिल को 31 सदस्यीय संयुक्त संसदीय समिति (JPC) को भेजने का फैसला किया, जिसमें लोकसभा के 21 और राज्यसभा के 10 सदस्य शामिल होंगे.
TMC और SP का जेपीसी से बहिष्कार
हालांकि वोटर लिस्ट और SIR के मुद्दे पर दिख रही विपक्षी एकता की तस्वीर यहां बदल गई. तृणमूल कांग्रेस (TMC) और समाजवादी पार्टी (SP) ने साफ कहा कि वे जेपीसी में कोई सदस्य नहीं भेजेंगे.
टीएमसी के राज्यसभा सांसद डेरेक ओ’ब्रायन ने ब्लॉग पोस्ट के जरिए घोषणा की कि उनकी पार्टी और एसपी इस तथाकथित संयुक्त समिति का हिस्सा नहीं बनेंगी. उनका कहना था, ‘हमने इस बिल का विरोध पहले ही कर दिया है. जेपीसी महज़ एक दिखावा है. 2014 के बाद से सरकार इन समितियों का इस्तेमाल सिर्फ विपक्ष की आवाज दबाने और बहस को औपचारिकता में बदलने के लिए कर रही है.’
टीएमसी का आरोप है कि जेपीसी जैसी समितियां कभी पारदर्शिता और जवाबदेही के लिए बनी थीं, लेकिन अब सरकार की कठपुतली बन चुकी हैं.
विपक्ष के भीतर मतभेद
उधर समाजवादी पार्टी ने कोई आधिकारिक बयान तो नहीं दिया है, लेकिन पार्टी के नेताओं ने साफ संकेत दिया कि वे भी जेपीसी में हिस्सा नहीं लेंगे. वहीं, विपक्ष के एक हिस्से का मानना है कि अगर सपा और तृणमूल बाहर रहते हैं तो जेपीसी में एनडीए सांसदों का पलड़ा और भारी हो जाएगा और विपक्ष की कोई सार्थक भूमिका नहीं बचेगी.
ममता और अखिलेश का रुख
पश्चिम बंगाल की मुख्यमंत्री ममता बनर्जी ने इस बिल को ‘सुपर-इमरजेंसी’ करार दिया. उन्होंने कहा, ”यह बिल लोकतंत्र और संघवाद की मृत्यु का ऐलान है. यह कदम वोटिंग राइट्स पर हमला है और देश को अघोषित तानाशाही की ओर ले जाएगा.’
वहीं, लोकसभा में एसपी सांसद धर्मेंद्र यादव ने इसे ‘संविधान विरोधी, मौलिक अधिकारों के खिलाफ और घोर अन्याय’ बताया.
इंडिया गठबंधन की मुश्किलें
दिलचस्प बात यह है कि हाल ही में यही विपक्षी दल वोटर लिस्ट में गड़बड़ी और मतदाता अधिकारों पर एक साथ आवाज उठा रहे थे. उस मुद्दे पर गठबंधन की एकजुटता देखने को मिली थी. लेकिन जब बात जेल वाले बिल और जेपीसी में शामिल होने की आई, तो विपक्ष के सबसे बड़े घटकों में से दो दलों ने बिल्कुल अलग राह चुन ली.
यह पहला मौका नहीं है जब जेपीसी को लेकर विपक्षी दलों ने नाराज़गी जताई हो. हाल ही में वक्फ बिल पर गठित जेपीसी में विपक्ष ने आरोप लगाया था कि उनकी असहमति नोट्स को रिपोर्ट में शामिल ही नहीं किया गया. बाद में अमित शाह और लोकसभा स्पीकर ओम बिड़ला के हस्तक्षेप के बाद पूरी नोटिंग जोड़ी गई.
साफ है कि इंडिया गठबंधन की साझा रणनीति एक बार फिर लड़खड़ा गई है. जहां एक ओर कांग्रेस और कुछ दल जेपीसी में बने रहने के पक्ष में हैं, वहीं टीएमसी और एसपी के अलग रुख ने विपक्षी एकता पर बड़ा सवाल खड़ा कर दिया है.
An accomplished digital Journalist with more than 13 years of experience in Journalism. Done Post Graduate in Journalism from Indian Institute of Mass Comunication, Delhi. After Working with PTI, NDTV and Aaj T...और पढ़ें
An accomplished digital Journalist with more than 13 years of experience in Journalism. Done Post Graduate in Journalism from Indian Institute of Mass Comunication, Delhi. After Working with PTI, NDTV and Aaj T...
और पढ़ें
न्यूज़18 को गूगल पर अपने पसंदीदा समाचार स्रोत के रूप में जोड़ने के लिए यहां क्लिक करें।
Location :
New Delhi,New Delhi,Delhi
First Published :
August 24, 2025, 06:51 IST