PM Modi Cyprus Visit: पीएम मोदी साइप्रस के दौरे पर हैं. अपनी इस यात्रा में वह दोनों देशों के बीच व्यापार और UPI समेत कई मुद्दों पर चर्चा कर सकते हैं. कहा जा रहा है कि पीएम की यह यात्रा हमारे पड़ोसी पाकिस्तान के घनिष्ठ मित्र तुर्किए के लिए सिरदर्दी बन सकती है. तुर्किए ने ऑपरेशन सिंदूर के दौरान खुलकर पाकिस्तान को समर्थन दिया था. बता दें कि पिछले 2 दशकों से भी ज्यादा समय में से किसी भारतीय पीएम की यह पहली साइप्रस यात्रा है.
तुर्किए की क्यों बढ़ेगी टेंशन?
मीडिया रिपोर्ट्स के मुताबिक तुर्किए और साइप्रस के बीच लंबे समय से तनाव जारी है, जिसकी शुरुआत साल 1974 में तुर्किए के आक्रमण और आइलैंड के विभाजन से हुई थी. एक ओर साइप्रस के पास यूरोपी संघ (EU) की सदस्यता है तो वहीं तुर्किए केवल टर्किश रिपब्लिक ऑफ नॉर्दर्न साइप्रस (TRNC) को ही मान्यता देता है. ऐसे में साइप्रस का दौरा करना और संभावित रूप से बफर जोन जाना भारत की ओर से साफ मैसेज है कि यह देश तुर्किए के विस्तारवाद के खिलाफ साइप्रस के साथ खड़ा है.
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पाकिस्तान की भी बढ़ेगी चिंता
पीएम मोदी की साइप्रस यात्रा न केवल तुर्किए बल्कि उसके मित्र देश पाकिस्तान की भी टेंशन बढ़ा सकता है. साइप्रस भारत की पाकिस्तान को कूटनीतिक रूप से अलग-थलग करने की रणनीति का पूरजोर समर्थन करता है. इस देश ने आतंकवाद, कश्मीर और UNSC में सुधारों को लेकर भारत को समर्थन दिया है. साइप्रस ने पहलगाम आतंकी हमले की भी निंदा की थी और इस मुद्दे को EU तक उठाने की बात कही थी.
भारत के लिए क्यो जरूरी है साइप्रस?
साइप्रस की पूर्वी भूमध्य सागर में लोकेशन और भौगोलिक रूप से एशिया में होने के साथ ही यूरोपीय संघ का सदस्य होना रणनीतिक रूप से भारत के लिए फायदेमंद है. यह सागर में सीरिया और तुर्किए के करीब है. इसके अलावा हाल ही में साइप्रस के सबसे बड़े बैंक यूरोबैंक ने मुंबई में अपना एक ऑफिस खोलने की घोषणा की है. बिजनेस के लिहाज से यह फायदेमंद हो सकता है. इसके अलावा साइप्रस की टैक्स व्यवस्था, शिपिंग बिजनेस और एडवांस फाइनेंशियल सर्विस सेक्टर यूरोपीय बाजारों को देख रही भारतीय कंपनियों के लिए आदर्श साबित होगा.