Last Updated:August 18, 2025, 14:26 IST
राहुल गांधी की वोट अधिकार रैली में शामिल होने लालू प्रसाद यादव और तेजस्वी यादव समेत विपक्ष के कई नेता रविवार को सासाराम पहुंचे. तेजस्वी ने नीतीश कुमार को अचेत बताकर लोगों से सत्ता बदलने की अपील की, तो राहुल गां...और पढ़ें

वोट अधिकार यात्रा शुरू होने के मौके पर सासाराम में आयोजित कार्यक्रम में वीआईपी सुप्रीमो मुकेश सहनी का गुस्सा साफ-साफ उनके चेहरे पर नजर आया. उनके शब्दों में भी वह ताजगी और उत्साह नहीं था, जैसा पहले महागठबंधन की सभाओं में दिखता रहा है. उन्होंने विपक्ष की एकजुटता से भाजपा को सबक सिखाने का संकल्प तो दोहराया, लेकिन बिहार में महागठबंधन के नेता तेजस्वी यादव और लालू यादव का नाम लेने से परहेज भी किया. एक बार उन्होंने राहुल के साथ लालू का नाम जरूर लिया, लेकिन राहुल की वोट अधिकार यात्रा के सिलसिले में और भाजपा को सत्ता से बेदखल करने के लिए. उन्होंने भूलकर भी तेजस्वी का हाथ मजबूत करने के लिए वोट नहीं मांगे. तेजस्वी का गुणगान नहीं किया, जैसा वे अक्सर महागठबंधन की किसी भी बैठक या सभा में करते रहे हैं. वे एक और बात भूल गए. शायद उन्हें यह अवसर अनुकूल नहीं लगा होगा. उन्होंने खुद को डिप्टी सीएम के रूप में पेश करने से परहेज किया.
बिहार की सियासत में तेजस्वी यादव को मुख्यमंत्री बनाने का लालू प्रसाद यादव का सपना फिलहाल कई चुनौतियों से घिरा हुआ है. मुकेश सहनी की विकासशील इंसान पार्टी (VIP) की महत्वाकांक्षी मांगें और कांग्रेस की रणनीतिक चालें महागठबंधन के लिए मुश्किलें खड़ी कर रही हैं. हालांकि महागठबंधन के पास अभी भी रास्ता निकालने की संभावनाएं हैं, लेकिन यह रास्ता आसान नहीं दिखता. आइए, इसे विस्तार से समझते हैं.
मुकेश सहनी की जिद जानें
मुकेश सहनी, जिन्हें ‘सन ऑफ मल्लाह’ के रूप में जाना जाता है, महागठबंधन में अपनी स्थिति को मजबूत करने के लिए आक्रामक रुख अपना रहे हैं. दावा है कि उनकी पार्टी VIP बिहार में निषाद समुदाय (लगभग 12-13% वोट शेयर) का प्रतिनिधित्व करती है. निषाद सुमदाय की जातियां अति पिछड़ा वर्ग में आती हैं. सहनी ने कई मौकों पर स्पष्ट किया है कि वे महागठबंधन में सिर्फ एक सहयोगी की भूमिका में संतुष्ट नहीं हैं. उनकी मांगें ऐसी हैं, जिन्हें पूरा कर पाना तेजस्वी के लिए टीढ़ी खीर है.
सीट बंटावारे में बड़ा हिस्सा
सहनी ने 60 विधानसभा सीटों की मांग की है. विशेष रूप से चंपारण और दरभंगा जैसे क्षेत्रों में, जहां उनकी पार्टी की अच्छी पकड़ मानी जाती है. हाल ही में उन्होंने पूर्वी चंपारण की अधिकतर सीटों पर उम्मीदवार उतारने का ऐलान भी किया था, जो महागठबंधन के भीतर तनाव का कारण बना है. महागठबंधन में पहले की पांच पार्टियों के बाद दो नए दलों की एंट्री से यह काम ज्यादा कठिन हो गया है. पिछली बार जो महागठबंधन में रहे, वे अपनी सीटें इस बार घटाने को तैयार नहीं. मसलन पिछली बार 243 सीटें जिन 5 पार्टियों में बंटी थीं, उन्हें इस बार 7 दलों में बांटना है. जाहिर है कि बिना सीटों में कटौती किए यह संभव नहीं है, जबकि मुकेश सहनी बिना इसकी परवाह किए 60 सीटों की जिद पर अड़े हैं.
डिप्टी CM की कुर्सी चाहिए
मुकेश सहनी ने खुलकर उपमुख्यमंत्री पद की दावेदारी की है. वे कहते हैं कि अगर तेजस्वी यादव मुख्यमंत्री बनते हैं, तो वे ‘दूसरे दूल्हे’ के रूप में सरकार में महत्वपूर्ण भूमिका चाहते हैं. उन्होंने यह भी कहा कि अति पिछड़ा वर्ग (37% आबादी) को नेतृत्व देने के लिए उनकी भूमिका महत्वपूर्ण है. सहनी की महत्वाकांक्षा का अनुमान इसी बात से लगाया जा सकता है कि एक बार उन्होंने ने एक कदम आगे बढ़कर तेजस्वी को ‘ढाई-ढाई साल’ का मुख्यमंत्री बनाने का फॉर्मूला तक सुझा दिया था. जाहिर है कि ढाई साल वे अपने लिए चाहते हैं. यह प्रस्ताव तेजस्वी और RJD के लिए एक सीधी चुनौती है, क्योंकि यह लालू के तेजस्वी को CM बनाने के सपने को कमजोर करता है. सहनी की ये मांगें महागठबंधन के लिए एक बड़ा सिरदर्द बनी हुई हैं. उनकी जिद ने RJD को बैकफुट पर ला दिया है, क्योंकि सहनी का निषाद वोट बैंक महागठबंधन की जीत के लिए महत्वपूर्ण है. अगर सहनी अलग रास्ता चुनते हैं या NDA की ओर जाते हैं, तो यह RJD और महागठबंधन के लिए बड़ा झटका होगा.
सहनी की दो नावों की सवारी
मुकेश सहनी दो नावों कीसवारी करते रहे हैं. इस बार भी वे उसी अंदाज में पेश आ रहे हैं. पिछली बार वे ऐन मौके पर महागठबंधन छोड़ कर एनडीए खेमे में भाग गए थे. तब भाजपा ने उन्हें अपने कोटे से 11 सीटें दे दी थीं. लोकसभा चुनाव के समय से वे महागठबंधन में हैं. तभी से वे अपने को डेप्युटी सीएम बनाए जाने की रट लगाए हुए हैं. तेजस्वी यादव भी उन्हें भाई मानते रहे हैं. पर, चर्चा है कि फिर सहनी एनडीए की ओर मुखातिब हुए हैं. भाजपा के शीर्ष नेतृत्व से उनकी बातचीत होने की भी खूब चर्चा है. इस बीच सहनी को डेप्युटी सीएम बनाने से आरजेडी के इनकार के बाद उनका गुस्सा स्वाभाविक है. शायद यही वजह रही कि उन्होंने अपने संबोधन में तेजस्वी यादव का नाम लेने से परहेज किया.
सीट के लिए प्रेसर पॉलिटिक्स
कांग्रेस पिछले चुनाव में 70 सीटों पर लड़ी थी, लेकिन इस बार VIP की एंट्री और RJD की बड़ी हिस्सेदारी के कारण उसकी सीटें कम हो सकती हैं. कांग्रेस इसे स्वीकार करने के मूड में नहीं है और अपनी सीटों की संख्या बढ़ाने की मांग कर रही है. इससे गठबंधन में तनाव बढ़ रहा है. राज्य-राष्ट्रीय स्तर पर कई बैठकों के बावजूद सीट बंटवारे पर अभी तक कोई बातचीत नहीं हुई है. सिर्फ दावेदारी और सम्मानजनक हिस्सा की कूटनीतिक बातें कांग्रेस करती है. अभी तक उसकी ओर से ऐसा कोई संकेत सामने नहीं आया है, जिससे अनुमान लगाया जा सके कि वह महागठबंधन के इन दो दलों के लिए कितनी सीटों का त्याग करने को तैयार है.
आरजेडी की स्थिति जानिए
RJD महागठबंधन की सबसे बड़ी पार्टी है. तेजस्वी को महागठबंधन का CM चेहरा बनाने पर आरजेडी अड़ी हुई है. तेजस्वी ने ही 2020 के विधानसभा और 2024 के लोकसभा चुनावों में महागठबंधन का नेतृत्व किया था. कम ही समय के लिए दो बार डेप्युटी सीएम रहने के कारण जनता के बीच तेजस्वी की स्वीकार्यता भी बढ़ी ह. हालांकि सहनी की मांगें और कांग्रेस की रणनीति ने RJD को रक्षात्मक रुख अपनाने पर मजबूर कर दिया है. RJD के वरिष्ठ नेता अब्दुल बारी सिद्दीकी ने सहनी की डिप्टी CM की दावेदारी को खारिज कर दिया, जिससे गठबंधन में दरार और गहरी हुई है. मुकेश सहनी ने अगर मंच पर प्रमुख रूप से उपस्थित तेजस्वी का नाम अपने संबोधन में नहीं लिया तो इसके पीछे आरजेडी की वादाखिलाफी है.
क्या कोई रास्ता निकलेगा?
महागठबंधन के सामने कई चुनौतियां हैं, लेकिन रास्ता निकालना असंभव नहीं है. RJD, कांग्रेस और VIP को सीट बंटवारे पर एक संतुलित फॉर्मूला निकालना होगा. सहनी की 60 सीटों की मांग अव्यावहारिक है, लेकिन उन्हें 20-25 सीटें देकर और प्रभावशाली क्षेत्रों में प्राथमिकता देकर मनाया जा सकता है. सहनी को डेप्युटी CM का पद देने का वादा कर के उनकी महत्वाकांक्षा को शांत किया जा सकता है, बशर्ते RJD और कांग्रेस इस पर सहमत हों. हालांकि सिद्दीकी जैसे नेताओं का विरोध इसे मुश्किल बना रहा है. रही बात सीएम की तो तेजस्वी का नाम घोषित करने में कांग्रेस को अब अधिक विलंब नहीं करना चाहिए. पर, कांग्रेस हड़बड़ी में नहीं दिखती. राहुल गांधी ने एक बार भी सासाराम में इस बारे में कुछ नहीं कहा. इससे संशय बरकरार है.
प्रभात खबर, हिंदुस्तान और राष्ट्रीय सहारा में संपादक रहे. खांटी भोजपुरी अंचल सीवान के मूल निवासी अश्क जी को बिहार, बंगाल, असम और झारखंड के अखबारों में चार दशक तक हिंदी पत्रकारिता के बाद भी भोजपुरी के मिठास ने ब...और पढ़ें
प्रभात खबर, हिंदुस्तान और राष्ट्रीय सहारा में संपादक रहे. खांटी भोजपुरी अंचल सीवान के मूल निवासी अश्क जी को बिहार, बंगाल, असम और झारखंड के अखबारों में चार दशक तक हिंदी पत्रकारिता के बाद भी भोजपुरी के मिठास ने ब...
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First Published :
August 18, 2025, 14:26 IST