Last Updated:March 10, 2025, 08:18 IST
Supreme Court News: सुप्रीम कोर्ट ने 40 साल पुराने दुष्कर्म मामले में ऐतिहासिक फैसला सुनाया. महज दो साल के अंदर ट्रायल कोर्ट ने ट्यूशन टीचर को दोषी करार दिया था. फिर 38 साल तक यह मामला हाईकोर्ट और सुप्रीम कोर्ट...और पढ़ें

पुलिस ने इस मामले में तेजी से एक्शन लिया. (AI Picture)
हाइलाइट्स
सुप्रीम कोर्ट ने 40 साल पुराने दुष्कर्म मामले में ऐतिहासिक फैसला सुनाया.'बिना चोट के भी रेप साबित हो सकता है, पीड़िता की गवाही पर्याप्त मानी गई.'आरोपी की दलीलें खारिज, पीड़िता की मां के चरित्र पर आरोप भी अस्वीकार.नई दिल्ली. करीब 40 साल पहले एक छात्रा के साथ दुष्कर्म हुआ. ट्यूशन टीचर ने इस वारदात को अंजाम दिया. दो साल के अंदर ट्रायल कोर्ट ने युवक को सजा भी सुना दी लेकिन इसके बावजूद पहले 25 साल इलाहाबाद हाई कोर्ट और फिर 15 साल सुप्रीम कोर्ट में यह मामला अटका रहा. एक चोटी सी दलील देकर दोषी लंबे समय तक बचता रहा. इस मामले में ट्रायल कोर्ट से लेकर हाई कोर्ट और फिर सुप्रीम कोर्ट तक सुनवाई हुई. अब चार दशक बीत जाने के बाद सुप्रीम कोर्ट ने इस प्रकरण पर अपना फैसला सुनाया. युवक की दलील थी कि क्योंकि पीड़िता के निजी अंगों पर कोई चोट का निशाना नहीं मिला है, ऐसे में इसे दुष्कर्म नहीं माना जा सकता. जो कुछ भी हुआ दोनों की रजामंदी से हुआ. इस मामले में सुप्रीम कोर्ट ने ऐतिहासिक फैसला सुनाते हुए कहा कि निजी अंगों पर चोट नहीं होने के बावजूद भी दोषसिद्धि साबित हो सकती है अगर अन्य सबूत मेल खाते हों तो.
छात्रा ने अपने ट्यूशन टीचर पर यह गंभीर आरोप लगाए थे. सुप्रीम कोर्ट ने माना कि बलात्कार के मामले में पीड़िता की गवाही दोषी ठहराने के लिए पर्याप्त है. जस्टिस संदीप मेहता और प्रसन्ना बी वराले की बेंच ने दलीलों को खारिज करते हुए कहा, “केवल इसलिए कि मेडिकल साक्ष्य में कोई बड़ी चोट के निशान नहीं हैं, यह आरोपी के अन्यथा विश्वसनीय साक्ष्य को खारिज करने का कारण नहीं हो सकता.” न्यायमूर्ति वराले ने कहा, “यह जरूरी नहीं है कि बलात्कार के हर मामले में पीड़िता के निजी अंगों पर चोट हो और यह किसी विशेष मामले के तथ्यों और परिस्थितियों पर निर्भर करता है. हम दोहराते हैं कि पीड़िता के गुप्तांगों पर चोट न होना हमेशा अभियोजन पक्ष के मामले के लिए घातक नहीं होता.”
सुप्रीम कोर्ट ने यह भी कहा कि आपराधिक न्यायशास्त्र का यह स्थापित सिद्धांत है कि बलात्कार के मामले में पीड़ित का साक्ष्य घायल गवाह के साक्ष्य के समान ही महत्व रखता है और पीड़िता की एकमात्र गवाही के आधार पर दोषसिद्धि की जा सकती है. पीड़ित की मां के चरित्र पर भी ट्यूशन टीचर द्वारा गंभीर आरोप लगाए गए थे. इसपर बेंच ने कहा कि अदालत को इसकी सत्यता पर विचार करने की आवश्यकता नहीं है क्योंकि इसका मामले से कोई संबंध नहीं है. जज ने कहा कि हमें इस तर्क को स्वीकार करने का कोई कारण नहीं मिलता कि पीड़िता की मां के कथित अनैतिक चरित्र का आरोपी को मनगढ़ंत कहानी के आधार पर झूठा फंसाने से कोई संबंध है.”
मां को भी बदनाम करने का प्रयास
पीठ ने कहा कि पीड़िता के दुष्कर्म के लिए आरोपी की सजा का सवाल स्वतंत्र और अलग है. इसका पीड़िता की मां के चरित्र से कोई संबंध नहीं है और ऐसा लगता है कि पीड़िता की गवाही को बदनाम करने के लिए इसे लाइसेंस के रूप में इस्तेमाल करने का एक भयानक प्रयास है. हमें इन दलीलों में कोई दम नहीं दिखता.” यह मामला तीन-स्तरीय न्यायिक प्रणाली की दुखद स्थिति को भी दर्शाता है, जहां संवैधानिक अदालतों की तुलना में आपराधिक मामलों में निर्णय देने में ट्रायल कोर्ट कहीं अधिक तत्पर हैं.
2 साल में ट्रायल कोर्ट का फैसला, फिर भी 38 साल अटका रहा मामला
ट्यूशन टीचर द्वारा यौन उत्पीड़न की घटना मार्च 1984 की है. ट्रायल कोर्ट ने 1986 में उस व्यक्ति को दोषी ठहराया. हालांकि, इलाहाबाद हाईकोर्ट को ट्रायल कोर्ट के फैसले को बरकरार रखने में 26 साल लग गए और सुप्रीम कोर्ट को ऐसा करने में 15 साल लग गए. 19 मार्च, 1984 को जब लड़की ट्यूशन के लिए गई, तो टीचर ने दो अन्य लड़कियों को अलग-अलग कामों के लिए बाहर भेज दिया और लड़की का मुंह बंद करके और कमरे को अंदर से बंद करके उसका यौन उत्पीड़न किया. अन्य दो लड़कियों ने दरवाजा खटखटाया, लेकिन दरवाजा नहीं खुला. आखिरकार, लड़की की दादी ने आकर उसे बचाया. जब लड़की के परिवार ने एफआईआर दर्ज कराने की कोशिश की, तो मोहल्ले के लोगों और आरोपियों के परिवार के सदस्यों ने उन्हें धमकाया. धमकियों के बावजूद, कुछ देरी के बाद एफआईआर दर्ज की गई.
First Published :
March 10, 2025, 08:18 IST