Last Updated:June 11, 2025, 12:34 IST
CJI BR Gavai News: भारत में न्यायपालिका और कार्यपालिका के अधिकारों को लेकर अक्सर ही सवाल उठते रहते हैं. सीजेआई जस्टिस बीआर गवई ने अब इस मामले में बड़ी बात कही है.

CJI जस्टिस बीआर गवई ने न्यायिक सक्रियत यानी ज्यूडिशियल एक्टिविज्म पर बड़ी बात कही है. (फोटो: पीटीआई)
हाइलाइट्स
सीजेआई बीआर गवई ने ज्यूडिशियल एक्टिविज्म पर बड़ी बात कही हैन्यायपालिका और कार्यपालिका के अधिकारों पर भी रखी अपनी रायभारत में अक्सर कोर्ट और एग्जीक्यूटिव के राइट्स पर होती है बहसCJI BR Gavai News: देश में कई बार ऐसे मौके आते हैं, जब न्यायपालिका और कार्यपालिका के अधिकारों की रेखा धुंधली से हो जाती है. तमिलनाडु के गवर्नर से जुड़े मामले में सुप्रीम कोर्ट के फैसले पर काफी बहस हुई. अब चीफ जस्टिस ऑफ इंडिया (CJI) बीआर गवई ने इस मसले पर अपनी बेबाक राय रखी है. एक कार्यक्रम में बोलते हुए सीजेआई गवई ने कहा कि ज्यूडिशियल एक्टिविज्म (न्यायिक सक्रियता) को ज्यूडिशियल टेररिज्म (न्यायिक आतंकवाद) में परिवर्तित नहीं होना चाहिए. सीजेआई गवई ने आगे कहा कि कई बार लोग अपनी सीमा को लांघने की कोशिश करते हुए उस क्षेत्र में प्रवेश करने की कोशिश करते हैं, जहां आमतौर पर ज्यूडिशियरी एंटर नहीं करती है. सीजेआई बीआर गवई ने एडवोकेट ऑन रिकॉर्ड तन्वी दुबे की ओर से आयोजित ‘ऑक्सफोर्ड यूनियन’ कार्यक्रम में ये बातें कही हैं.
जस्टिस गवई ने न्यायिक सक्रियता की भूमिका को महत्वपूर्ण बताते हुए चेताया कि इसे न्यायिक आतंकवाद में बदलने से बचाना चाहिए. एक कार्यक्रम में बोलते हुए उन्होंने कहा कि जब विधायिका या कार्यपालिका नागरिकों के अधिकारों की रक्षा में विफल रहती है, तो न्यायपालिका का दायित्व बनता है कि वह हस्तक्षेप करे. CJI ने कहा, ‘न्यायिक सक्रियता बनी रहेगी, लेकिन यह न्यायिक आतंकवाद न बन जाए, इसका ध्यान रखना होगा. कई बार ऐसा होता है कि हम अपनी सीमाओं से आगे बढ़ने की कोशिश करते हैं, जहां सामान्यतः न्यायपालिका को प्रवेश नहीं करना चाहिए.’ उन्होंने यह भी स्पष्ट किया कि न्यायिक समीक्षा की शक्ति केवल अपवादस्वरूप मामलों में प्रयोग की जानी चाहिए. जैसे जब कोई कानून संविधान की मूल संरचना का उल्लंघन करता हो या वह मौलिक अधिकारों के प्रत्यक्ष विरोध में हो या फिर वह स्पष्ट रूप से भेदभावपूर्ण और मनमाना हो.
संविधान पर भी की बात
CJI गवई ने भारत के संविधान की प्रशंसा करते हुए कहा कि यह केवल एक दस्तावेज़ नहीं, बल्किउनकी धड़कनें समेटे हुए है जिन्हें कभी सुना नहीं गया. उन्होंने यह बात ऑक्सफोर्ड यूनियन में संबोधन के दौरान कही, जहां उन्होंने खुद को एक ऐसे वर्ग से बताया जिसे एक समय अस्पृश्य कहा जाता था और अब वही वर्ग भारत के सर्वोच्च न्यायिक पद पर है. उन्होंने कहा, ‘संविधान ने यह सुनिश्चित किया कि जो लोग कभी हाशिये पर थे, वे भी अब सत्ता और प्रतिष्ठा के केंद्र में खड़े हो सकते हैं. यह सिर्फ अधिकारों की रक्षा नहीं करता, बल्कि राज्य को सक्रिय रूप से उन्हें बढ़ावा देने, सुधारने और सामाजिक न्याय की दिशा में काम करने के लिए बाध्य करता है.’
भीमराव आंबेडकर को किया याद
सीजेआई गवई ने इस दौरान डॉ. भीमराव आंबेडकर के विचारों का भी उल्लेख किया और कहा कि डॉ. आंबेडकर मानते थे कि असमान समाज में लोकतंत्र तभी टिक सकता है जब शक्ति केवल संस्थाओं में नहीं, बल्कि समुदायों के बीच भी विभाजित हो. सीजेआई के ये बयान उस व्यापक बहस के बीच आए हैं, जिसमें यह सवाल उठाया जा रहा है कि क्या न्यायपालिका अपने अधिकार क्षेत्र से बाहर जा रही है. ऐसे में CJI के विचार न्यायपालिका की भूमिका, उसकी सीमाएं और उसकी जिम्मेदारियों को लेकर एक संतुलित दृष्टिकोण पेश करते हैं.
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New Delhi,Delhi