Last Updated:April 25, 2025, 15:52 IST
Haji Pir Pass: 1965 के युद्ध में जीते हाजी पीर दर्रे को वापस करना भारत की बड़ी गलती है. जिसकी वजह से पाकिस्तान कश्मीर में आतंकियों की घुसपैठ कराने में सफल रहता है. ताशकंद समझौते के तहत भारत ने यह दर्रा पाकिस्ता...और पढ़ें

पहलगाम आतंकी हमले ने 1965 के युद्ध में जीते हाजी पीर दर्रे को वापस करने की गलती की याद दिलाई है.
हाइलाइट्स
भारत ने 1965 में जीता हाजी पीर दर्रा वापस कियाहाजी पीर दर्रा आतंकियों की घुसपैठ का मुख्य मार्ग हैताशकंद समझौते में भारत ने हाजी पीर दर्रा लौटायाHaji Pir Pass: पहलगाम आतंकी हमले को तीन दिन हो चुके हैं. एके-47 और एम4 कार्बाइन राइफलों से लैस आतंकवादियों ने दक्षिण कश्मीर के पहलगाम के बैसरन घास के मैदान में पर्यटकों पर हमला किया था. आतंकवादियों ने एक के बाद एक उनकी हत्या कर दी थी. मरने वालों की कुल संख्या 26 थी. भारत में नागरिकों पर हुए सबसे भयंकर हमलों में से एक माने जाने वाले इस हमले ने पूरे देश को झकझोर कर रख दिया है. इसने कई लोगों के दिलों को तोड़ दिया है और जिन परिवारों ने अपने प्रियजनों को खो दिया है, वे गहरे शोक में हैं.
ये आतंकवादी हमला भारतीयों को 60 वर्ष पहले की उनकी ‘ऐतिहासिक भूल’ की याद दिलाने वाला है. उस समय नई दिल्ली ने युद्ध के मैदान में कड़ी मेहनत से हासिल रणनीतिक ‘हाजी पीर दर्रे’ की जीत को वार्ता की मेज पर गंवा दिया था. हाजी पीर दर्रा, पीर पंजाल पर्वतमाला में स्थित है. यह जम्मू और कश्मीर के पुंछ को पाकिस्तान के कब्जे वाले कश्मीर (पीओके) के रावलकोट से जोड़ता है. 2,637 मीटर (8,652 फीट) की ऊंचाई पर स्थित इस दर्रे का रणनीतिक महत्व है. इसके जरिये पीओके कश्मीर घाटी पर नजर रखता है. आज यह दर्रा कश्मीर घाटी में पाकिस्तानी आतंकवादियों के लिए घुसपैठ के मुख्य मार्गों में से एक है.
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… तो फायदे में रहता भारत
भारत हाजी पीर दर्रे को अपने पास रखकर पाकिस्तान को जम्मू-कश्मीर में घुसपैठ का मुख्य मार्ग बनाने से रोक सकता था. जिससे जम्मू-कश्मीर में समस्या पैदा करने की इस्लामाबाद की क्षमता काफी हद तक कम हो जाती. हाजी पीर दर्रे से भारत को अन्य लाभ भी होते. इससे पुंछ और उरी के बीच सड़क की दूरी 282 किमी से घटकर 56 किमी रह जाती. इससे भारत को जम्मू-कश्मीर घाटी के बीच बेहतर संपर्क सुविधा हासिल होती, जिससे सैन्य रसद और व्यापार में सुधार होता.
दिखाई भारी दूरदर्शिता
1947 में हुए विभाजन से पहले जम्मू घाटी को कश्मीर घाटी से जोड़ने वाली मुख्य सड़क हाजी पीर से होकर गुजरती थी. लेकिन 1948 में पाकिस्तान द्वारा हाजी पीर दर्रे सहित पीओके पर कब्ज़ा कर लेने के बाद यह रास्ता भारत के लिए बंद हो गया. सामरिक महत्व के इस दर्रे से भारत को पाक अधिकृत कश्मीर के अधिकांश हिस्सों तक आसान पहुंच मिल जाती, जिससे पाकिस्तान को वहां उसकी खतरनाक स्थिति का लगातार अहसास होता. लेकिन भारत ने भारी दूरदर्शिता दिखाते हुए सौदेबाजी की मजबूत स्थिति के बावजूद वार्ता की मेज पर युद्ध में मिली अपनी सफलता को गंवा दिया. भारत ने हाजी पीर दर्रा इस्लामाबाद को वापस कर दिया. यह गलती तीन पीढ़ियों के बाद भी भारत को सता रही है. पाकिस्तान कश्मीर में घुसपैठ और आतंकवाद के लिए हाजी पीर दर्रे का इस्तेमाल करके भारत को हजारों घाव दे रहा है.
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पाकिस्तान को उल्टी पड़ गई चाल
यूरोएशियनटाइम्स की एक रिपोर्ट के मुताबिक इस्लामाबाद 1948 के भारत-पाकिस्तान युद्ध में कश्मीर के लगभग एक-तिहाई हिस्से पर कब्जा करने में सफल रहा था. उसके बाद 1962 के भारत-चीन युद्ध में भारत को अपमानजनक हार झेलनी पड़ी. इससे उत्साहित होकर पाकिस्तान ने एक बार फिर 1965 में पूरे कश्मीर पर कब्जा करने के बारे में सोचा. उस साल अगस्त में पाकिस्तान के राष्ट्रपति अयूब खान ने क्षेत्र को अस्थिर करने और अंततः पाकिस्तानी सेना की मदद से कश्मीर पर कब्जा करने के लिए बड़ी संख्या में गुरिल्लाओं को गुप्त रूप से कश्मीर में घुसपैठ कराने हेतु ऑपरेशन जिब्राल्टर को मंजूरी दी थी. राष्ट्रपति अयूब एक शानदार जीत की उम्मीद कर रहे थे. लेकिन राष्ट्रपति अयूब की उम्मीद के विपरीत कश्मीर की स्थानीय आबादी ने भारत के खिलाफ विद्रोह नहीं किया. अगस्त के मध्य तक भारत ने पाकिस्तान को चेतावनी दी कि अगर घुसपैठ नहीं रुकी तो भारत लड़ाई को दूसरी तरफ ले जाएगा.
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किया हाजी पीर दर्रे पर कब्जा
भारतीय सेना ने 15 अगस्त 1965 को युद्ध विराम रेखा (सीएफएल) पार कर तीन पहाड़ियों पर कब्जा कर लिया. हाजी पीर बल्गे पर कब्जा करने का भी फैसला लिया गया, क्योंकि यह पाकिस्तान द्वारा इस्तेमाल किया जाने वाला मुख्य घुसपैठ मार्ग था. इस ऑपरेशन का कोडनेम ऑपरेशन बक्शी था. हाजी पीर दर्रे पर कब्जा करने का काम 19 इन्फैंट्री डिवीजन को सौंपा गया. इस डिवीजन का नेतृत्व मेजर जनरल एसएस कलां कर रहे थे. 68 इन्फैंट्री ब्रिगेड की कोर रिजर्व का नेतृत्व ब्रिगेडियर जेडसी बक्शी कर रहे थे. भारतीय सेना ने 28 अगस्त को हाजी पीर दर्रे पर कब्जा कर लिया. पाकिस्तान ने 29 अगस्त को दर्रे पर फिर से कब्जा करने की कोशिश की, लेकिन भारतीय सेना ने उनकी कोशिशों को विफल कर दिया.
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ताशकंद समझौते में बल्ले-बल्ले
पाकिस्तान जो युद्ध के मैदान में नहीं जीत सका, वह उसने वार्ता की मेज पर जीत लिया. 10 जनवरी 1966 को हुए ताशकंद समझौते के तहत भारतीय और पाकिस्तानी सेनाओं को 5 अगस्त 1965 से पहले की स्थिति में वापस लौटना था. इसमें हाजी पीर दर्रे को वापस करना भी शामिल था. भारत ने हाजी पीर दर्रा सहित 1,920 वर्ग किलोमीटर पाकिस्तानी क्षेत्र पर कब्जा कर लिया था.इसमें मुख्य रूप से सियालकोट, लाहौर और कश्मीर सेक्टर की जमीन शामिल थी. पाकिस्तान के पास 550 वर्ग किलोमीटर भारतीय क्षेत्र था. इसमें मुख्य रूप से सिंध प्रांत के सामने का रेगिस्तान और अखनूर में छंब शामिल था. फिर भी लगभग चार गुना अधिक पाकिस्तानी भूमि रखने के बावजूद भारत को ताशकंद समझौते में कोई फायदा नहीं मिला. ताशकंद समझौता तत्कालीन प्रधानमंत्री लाल बहादुर शास्त्री ने किया था.
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भारत को उदारता पड़ी महंगी
हाजी पीर पर कब्जा करने के नायक लेफ्टिनेंट जनरल रणजीत सिंह दयाल ने 2002 में एक इंटरव्यू में कहा था, “यह दर्रा भारत को निश्चित रणनीतिक लाभ देता… इसे वापस सौंपना एक गलती थी.” रणजीत सिंह दयाल को इस ऑपरेशन में उनकी बहादुरी के लिए महावीर चक्र से सम्मानित किया गया था. आज कश्मीर में पूरी घुसपैठ उसी इलाके से होती है. अगर हमने वह पोस्ट बरकरार रखी होती जिस पर हमने कब्जा किया था तो हालात अलग हो सकते थे. हाजी पीर को भारत सरकार की उदारता के कारण पाकिस्तान को दे दिया गया. लेकिन अब यह गलती महंगी साबित हो रही है.
Location :
New Delhi,Delhi
First Published :
April 25, 2025, 15:52 IST