केरल में 54%आबादी हिंदू, फिर भी 75 सालों से BJP को क्यों है बड़ी जीत का इंतजार

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Last Updated:December 14, 2025, 08:05 IST

Kerala Elections and BJP: केरल के स्थानीय निकाय चुनाव में कांग्रेस के नेतृत्व वाले यूडीएफ को अच्छी जीत मिली है. लेकिन, सबसे ज्यादा चर्चा तिरुवनंतपुरम नगर पालिका में भाजपा को मिली जीत की हो रही है. यहां 45 साल से एलडीएफ का कब्जा था. उसे मात देकर भाजपा यहां जीती है. लेकिन, यह भी सच्चाई है कि बीते 75 साल के चुनावी इतिहास में कभी भी भाजपा इस राज्य में कोई बड़ी जीत हासिल नहीं कर पाई है. बावजूद इसके कि यहां की आबादी में करीब 54 फीसदी हिंदू हैं.

केरल में 54%आबादी हिंदू, फिर भी 75 सालों से BJP को क्यों है बड़ी जीत का इंतजारकेरल के तिरुवनंतपुरम नगर पालिका में भाजपा को अच्छी जीत मिली है.

Kerala Elections and BJP: केरल में स्थानीय निकाय चुनावों में यूडीएफ को अच्छी जीत हासिल हुई है. अगले साल अप्रैल-मई में होने वाले विधानसभा चुनाव से पहले इस इलेक्शन को सेमीफाइनल माना जा रहा था. इसमें कांग्रेस के नेतृत्व वाला यूडीएफ फर्स्ट क्लास के साथ पास हुआ है. उसे राज्य के छह नगर निगमों में से चार और 87 नगरपालिकाओं में से 54 में जीत मिली है. इसी के साथ ग्राम पंचायतों, ब्लॉक पंचायतों और जिला पंचायतों में भी उसे शानदार जीत मिली है. तिरुवनंतपुरम निगम में भाजपा के नेतृत्व वाले एनडीए को जीत मिली है. लेकिन, यहां भी यूडीएफ ने अपनी सीटें बढ़ाई है. एलडीएफ को सबसे बड़ी हार तिरुवनंतपुरम में मिली है. यहां उसका 45 वर्षों का राज खत्म हुआ है.

कुल मिलाकर पहली बार भाजपा इस चुनाव में अपनी प्रभावी उपस्थिति दर्ज करवाने में कामयाब हुई है. उसने पहली बार तिरुवनंतपुरम नगर निगम पर कब्जा किया है. पार्टी ने तिरुवनंतपुरम निगम में 101 सीटों में से 50 सीटें जीतीं, जो बहुमत से एक कम है. इससे भाजपा को केरल में पहली बार महापौर पद मिलने की संभावना बन गई है. राज्य की महिला आईपीएस अधिकारी 64 वर्षीय सेवानिवृत्त डीजीपी आर श्रीलेखा को महापौर पद के लिए मजबूत दावेदार माना जा रहा है. श्रीलेखा ने शश्थमंगलम वार्ड से जीत हासिल की है.

लेकिन, सबसे बड़ा सवाल यह है कि देश के करीब 20 राज्यों और केंद्र शासित प्रदेशों में सरकार बनाने वाली भाजपा बीते 75 सालों में केरल में क्यों नहीं अपनी प्रभावी उपस्थिति दर्ज करवाई. केरल की डेमोग्राफी की बात करें तो इस राज्य में करीब 54 फीसदी आबादी हिंदू हैं. दूसरे नंबर मुस्लिम हैं. यहां की आबादी में 26.6 फीसदी मुस्लिम और 18.4 फीसदी ईसाई समुदाय के लोग हैं. केरल देश का एक सबसे विकसित राज्य है. यहां साक्षरता की दर 96 फीसदी से अधिक है. अब सवाल है कि एक हिंदू बहुसंख्यक राज्य होने के बावजूद केरल में आज तक भाजपा कोई बड़ी जीत क्यों नहीं हासिल कर पाई.

जहां तक राज्य विधानसभा और लोकसभा की बात है तो यहां भी भाजपा पूरी तरह गायब है. 2021 के विधानसभा में यहां की 140 सीटों में से 99 पर एलडीएफ को जीत मिली थी. विपक्षी यूडीएफ को 41 सीटों पर जीत मिली थी. एलडीएफ के खाते में 45.43 फीसदी और यूडीएफ को 39.47 फीसदी वोट मिले थे. भाजपा के नेतृत्व वाले एनडीए को 12.41 फीसदी वोट मिले थे. इसी तरह 2024 के लोकसभा की बात करें तो यहां की 20 सीटों में से 18 पर यूडीएफ को जीत मिली थी. केवल एक सीट पर एलडीएफ और एक पर भाजपा को जीत मिली है. त्रिसूर लोकसभा सीटे से भाजपा के नेता सुरेश गोपी निर्वाचित हुए थे. जहां तक वोट प्रतिशत की बात है तो यूडीएफ को 45.21 फीसदी वोट मिले वहीं एलडीएफ को वोट प्रतिशत घटकर 33.60 फीसदी हो गया. दूसरी तरफ भाजपा के नेतृत्व वाले एनडीए का वोट प्रतिशत बढ़कर 19.24 फीसदी हो गया.

क्या लगातार मजबूत हो रही भाजपा
इस सवाल का जवाब हां है. बीते कुछ चुनावों के वोट प्रतिशत देखें तो पता चलता है कि राज्य में भाजपा मजबूत हो रही है. उसके वोट प्रतिशत बढ़ रहे हैं. लेकिन, वह अभी तक केरल में उस स्थिति में नहीं पहुंच पाई है कि वह निकट भविष्य में सरकार बनाने की योजना बना सके. दरअसल, केरल से उत्तर भाजपा के राज्यों जैसे यूपी, एमपी, राजस्थान, हरियाणा, बिहार से काफी अलग है. यहां की आबादी अच्छी खासी शिक्षित है. यहां के सरकारी सिस्टम देश में संबवतः सबसे बेहतर स्थिति में. केरल का स्वास्थ्य सेक्टर यूरोपीय देशों को टक्कर देता है. दूसरी तरह केरल का इस्लाम भी उत्तर भारत से इस्लाम से अलग है. केरल में इस्लाम का आगमन व्यापार से रास्ते अरब से पहुंचा जबकि उत्तर भारत के इस्लाम में मुगलों का प्रभाव ज्यादा है. ऐसे में केरल के समाज में हिंदू, मुस्लिम और ईसाई समुदाय के बीच ऐसा बंटवारा या विवाद नहीं दिखता है जितना कि उत्तर भारत में है. ऐसे में केरल का राष्ट्रवाद अलग किस्म का है. उसने शिक्षा और स्वास्थ्य के क्षेत्र में बेहतरी तरक्की है.

First Published :

December 14, 2025, 08:00 IST

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केरल में 54%आबादी हिंदू, फिर भी 75 सालों से BJP को क्यों है बड़ी जीत का इंतजार

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