कच्छ में हड़प्पा से भी पुरानी सभ्यता के सबूत, नई खोज से खुला इतिहास का रहस्य

1 day ago

Last Updated:June 05, 2025, 02:13 IST

Kutch History: एक नई स्टडी से पता चला है कि हड़प्पा सभ्यता से 5,000 साल पहले कच्छ में शिकारी-घुमंतू बस्तियां मौजूद थीं. यह खोज कच्छ में अपनी तरह की पहली है.

कच्छ में हड़प्पा से भी पुरानी सभ्यता के सबूत, नई खोज से खुला इतिहास का रहस्य

यह स्टडी उस धारणा को चुनौती देती है कि कच्छ का शहरीकरण सिंधु क्षेत्र के प्रभाव में हुआ. (File Photo Of Harappan Site)

अहमदाबाद: भारत के पश्चिमी छोर पर स्थित कच्छ क्षेत्र को अब तक हड़प्पा सभ्यता से जोड़कर देखा जाता रहा. लेकिन हाल ही में सामने आई एक रिसर्च ने इस क्षेत्र के इतिहास को पूरी तरह से हिला दिया है. IIT गांधीनगर की अगुआई में हुई एक स्टडी के अनुसार, कच्छ में इंसानी मौजूदगी हड़प्पा काल से भी कम-से-कम 5,000 साल पहले की है. द इंडियन एक्सप्रेस की रिपोर्ट के अनुसार, IIT गांधीनगर, IIT कानपुर, IUAC दिल्ली और PRL अहमदाबाद के विशेषज्ञों की इस संयुक्त टीम ने कच्छ में शेल-मिडन साइट्स की पहचान की है. शेल-मिडन का मतलब है ऐसे स्थान जहां इंसानों द्वारा खाए गए शंखों के ढेर मिलते हैं. ये स्थल अब तक केवल समुद्री खाड़ी क्षेत्रों में ही पाए जाते थे, लेकिन अब कच्छ में इनका मिलना इस बात का प्रमाण है कि यहां हजारों साल पहले समुद्री जीवों पर निर्भर शिकारी-घुमंतू समुदाय रहते थे.

रेड कार्बन डेटिंग से हुआ खुलासा

इन शेल नमूनों की उम्र जानने के लिए वैज्ञानिकों ने Accelerator Mass Spectrometry (AMS) तकनीक का इस्तेमाल किया, जो कार्बन-14 के क्षय की दर मापकर जीवाश्म की उम्र का अनुमान लगाती है. साथ ही, इन परिणामों को पेड़ के छालों की वार्षिक रिंग्स के डेटा से कैलिब्रेट किया गया, जिससे सटीक काल निर्धारण संभव हुआ.

औजार और तकनीकी समझ के प्रमाण

इस अध्ययन के दौरान शोधकर्ताओं को विभिन्न प्रकार के पत्थर के औजार भी मिले, जिनका इस्तेमाल काटने, खुरचने और तोड़ने के लिए किया जाता था. साथ ही, जिन कच्चे पत्थरों से ये औजार बनाए गए थे, उनके अवशेष भी मिले हैं. इससे स्पष्ट होता है कि यहां के निवासी औजार निर्माण में कुशल थे और उन्होंने स्थानीय संसाधनों का बखूबी उपयोग किया. IITGN की शोधकर्ता डॉ. शिखा राय के अनुसार, ‘ये औजार इस बात के प्रमाण हैं कि इन समुदायों ने न केवल जीने के लिए तकनीकी नवाचार किए, बल्कि लगातार प्रकृति के अनुरूप अपने व्यवहार को ढालते भी रहे.’

हड़प्पा से पहले की ‘स्थानीय समझ’

इस रिसर्च के सबसे महत्वपूर्ण निष्कर्षों में से एक यह है कि कच्छ में सभ्यता का विकास अचानक किसी बाहरी प्रभाव से नहीं हुआ, बल्कि यह एक लंबी स्थानीय प्रक्रिया का नतीजा है. प्रो. वी.एन. प्रभाकर के अनुसार, ‘इस क्षेत्र की भूगोल, जल संसाधनों और नेविगेशन की जो स्थानीय समझ इन प्राचीन समुदायों में विकसित हुई थी, वही बाद में हड़प्पा सभ्यता को दीर्घकालिक व्यापार और बेहतर नगरीय नियोजन की नींव देने में सहायक बनी.’

जलवायु परिवर्तन को समझने की नई कुंजी

शेल-मिडन और उनके अवशेष न केवल संस्कृति के अध्ययन में, बल्कि जलवायु परिवर्तन के दीर्घकालिक ट्रेंड्स को समझने में भी उपयोगी सिद्ध हो सकते हैं. कच्छ में स्थित खदिर द्वीप पर पूर्व में किए गए अध्ययनों से पिछले 11,500 वर्षों की जलवायु का नक्शा तैयार किया गया था. नई साइट्स के विश्लेषण से उस नक्शे में और भी बारीक जानकारियां जुड़ सकती हैं.

डॉ. राय कहती हैं, ‘हमारे पूर्वज बिना आधुनिक तकनीक के भी विभिन्न पर्यावरणीय चुनौतियों का सामना करते हुए संतुलन में जीवन जीते थे. आज की जलवायु चुनौती के संदर्भ में, हमें उनके अनुकूलन के तरीकों से बहुत कुछ सीखने की जरूरत है.’

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Deepak Verma

Deepak Verma is a journalist currently employed as Deputy News Editor in News18 Hindi (Digital). Born and brought up in Lucknow, Deepak's journey began with print media and soon transitioned towards digital. He...और पढ़ें

Deepak Verma is a journalist currently employed as Deputy News Editor in News18 Hindi (Digital). Born and brought up in Lucknow, Deepak's journey began with print media and soon transitioned towards digital. He...

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