आजादी के साथ ही रेल यात्रियों को मिला था पहला गिफ्ट, आज भी यहां है मौजूद...

1 month ago

Last Updated:August 15, 2025, 12:46 IST

First Steam Engine- देश आजाद होने के रेल यात्रियों को बड़ा तोहफा मिला था. खास बात यह है कि यह ‘बुलेट ट्रेन’ की स्‍पीड से दौड़ता था. चूंकि आजाद भारत का पहला इंजन था, इस वजह से वजह से इसका नाम भी खास रखा है.

आजादी के साथ ही रेल यात्रियों को मिला था पहला गिफ्ट, आज भी यहां है मौजूद...रेवाड़ी स्‍टीम इंजन लोको शेड में खड़ा आजाद भारत का पहला इंजन. दूसरी तस्‍वीर में बाल्डविन लोकोमोटिव वर्क्स, फिलाडेल्फिया, अमेरिका में तैयार हुए इस इंजन को भारत भेजने के लिए शिप लोड किया गया.

नई दिल्‍ली. आज देश आजादी का जश्‍न मना रहा है. हर तरफ उत्‍साह और उमंग है. पर आपको पता है कि आजादी के साथ ही देशवासियों रेलवे की ओर से बड़ा तोहफा मिला था, जिससे लोगों का आना जाना आसान हो सके. यह आज भी दिल्‍ली के करीब मौजूद है. खास बात यह है कि यह ‘बुलेट ट्रेन’ की स्‍पीड से दौड़ता था. चूंकि आजाद भारत का पहला इंजन था, इस वजह से वजह से इसका नाम भी खास रखा है. आइए जानते हैं, यह कहां मौजूद है?

15 अगस्‍त 1947 को जब पूरा देश आजादी के रंग में रंगा हुआ था, उसी समय भारत ने अमेरिका के साथ स्‍टीम इंजन के रिसीविंग के लिए एग्रीमेंट में साइन किया था. इस तरह यह आजाद भारत का पहला इंजन था, जो बाल्डविन लोकोमोटिव वर्क्स, फिलाडेल्फिया, यूएसए में तैयार हुआ था. रेलवे के अनुसार इस इंजन को शिप के द्वारा भारत लाया गया था. इसमें करीब दो माह का समय लग गया था और अक्‍तूबर में भारत पहुंचा था. चूंकि यह आजाद भारत का पहला इंजन था, इसलिए इसका नाम ‘आजाद’ रखा गया.

रेवाड़ी में मौजूद है यह इंजन

रेवाड़ी में देश का इकलौता स्‍टीम इंजन लोको शेड है. यहीं पर ‘आजाद’ इंजन रखा हुआ है. लोको शेड पर जाकर इसे देखा जा सकता है. लोको शेड के इंचार्ज राहुल भारद्वाज ने बताया कि साल 2002 यह इंजन रेवड़ी लोको शेड में लाया गया था. इस इंजन का आखिरी रन 1995 में था. इससे पहले मुरादाबाद स्‍टीम इंजन लोको शेड में था, वहीं से रेवाड़ी लाया गया है.

इंजनों के पार्ट्स मिलना 

स्‍टीम इंजन का प्रोडक्‍शन बंद हो चुका है, जिससे इंजनों के पार्ट्स मिलना मुकिश्‍ल हो रह है. इसके बाद बावजूद भारतीय रेलवे कई इंजनों को वर्किंग कंडीशन में रखे हुए है. इसके पार्ट्स को डाई की मदद से तैयार करवाना पड़ता है. साथ ही तमाम इंजनों को यहां पर संरक्षित करके रखा हुआ है.

आजादी के बाद की बुलेट ट्रेन थी यह

इस इंजन को उन्‍हीं ट्रेनों में लगाया जाता था, जो वीआईपी होती थी. क्‍योंकि इसकी अधिकतम स्‍पीड 100 किमी. प्रति घंटे की थी. इसी वजह से उस समय इस इंजन से चलने वाली ट्रेन को बुलेट ट्रेन माना जाता था. सामान्‍य तौर पर ट्रेनों की स्‍पीड कम रहती थी.

इन वीआईपी ट्रेनों में लगता था यह इंजन

यह इंजन शाही ट्रेनों में लगाया जाता था. मसलन फ्रंटियर मेल, पंजाब मेल जैसी कई नामी ट्रेनों को इस इंजन को लगाकर चलाया जाता था. ये ट्रेनें उस समय की वीआईपी ट्रेनें मानी जाती हैं.

कायम है स्‍टीम इंजन का जादू

हेरिटेज स्‍टीम इंजन लोको शेड को एस्टेब्लिश करने वाले रेलवे के सीनियर ऑफिसर विकास आर्या ने बताया कि भारतीय रेल अपनी धरोहर को जीवंत रखने के लिए वचनबद्ध है और स्टीम इंजन से बड़ा अवाम लोकप्रिय कोई रोलिंग स्टिक नहीं है. इसका जादू आज भी कायम है और बड़े और बच्चो को आज भी ये आकर्षित करता है. स्टीम इंजन की धरोहर को जीवंत रखने के लिए ही रेवाड़ी स्टीम शेड को बनाया गया है, और अब यहाँ पर उच्च रखरखाव के लिए नई वर्कशॉप भी बनाई जा रही है.इसके लिए रेलवे बोर्ड ने 10 करोड़ रुपए का ग्रांट दिया है.

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Location :

New Delhi,Delhi

First Published :

August 15, 2025, 06:00 IST

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