भले ही अमेरिका की मध्यस्थता के बीच भारत और पाकिस्तान के बीच युद्ध विराम हो गया है, लेकिन इसके साथ ही नरेंद्र मोदी की अगुआई वाले भारत ने पाकिस्तान के सर पर एक बड़ी तलवार लटका दी है. कह दिया है कि अगर भविष्य में कोई भी आतंकी हमला होता है, तो उसे Act of War माना जाएगा भारत के खिलाफ, और उसी के हिसाब से तगड़ी कार्रवाई की जाएगी, माकूल जवाब दिया जाएगा.
ये कड़ा और साफ संदेश है पाकिस्तान को. भारत की तरफ से कहा जा रहा है कि पाकिस्तान को, ये न समझो कि अगर ऑपरेशन सिंदूर हमने खत्म कर दिया, अपने तमाम लक्ष्य हासिल करने के बाद और भविष्य में तुम फिर से बदमाशियों पर उतर जाओ, तो ये हम बर्दाश्त कर लेंगे.
मोदी सरकार साफ तौर पर कह रही है कि हम पाकिस्तान को फिर रगड़ेंगे बिना समय लिए, अगर उसने भविष्य में अपने जेहादी गुर्दों के जरिये भारत में किसी आतंकी घटना को अंजाम दिया. इतना कड़ा संदेश देश में पहले की किसी भी सरकार ने नहीं दिया है. होता तो ये था कि हर बार आतंकवाद की घटना होती थी और पाकिस्तान उसका फायदा उठाने की कोशिश करता था, कश्मीर के मुद्दे के अंतरराष्ट्रीयकरण और भारत को बातचीत की टेबल पर लाने के लिए, अपनी मनमर्जी के लिए, अपनी बातें मनवाने के लिए.
लेकिन मोदी सरकार ने उसका ये दांव चलने नहीं दिया है. भारत की सोच बदल दी है. मोदी सरकार के इरादों और अलग सोच की भनक तब ही लगनी शुरु हो गई थी, जब उड़ी में सैन्य ठिकाने पर पाकिस्तान की तरफ से लांच किये गये फिदायीन आतंकियों ने हमला किया था. उसके जवाब में दो हफ्ते से भी कम समय में भारत ने सर्जिकल स्ट्राइक की थी, लाइन ऑफ कंट्रोल के उस पार जाकर, पीओके में आतंकी ठिकानों को नष्ट किया था, आतंकवादियो को मौत के घाट उतारा था, जहन्नुम में पहुंचाया था.
उसके बाद पुलवामा की घटना हुई, जिसमें सीआरपीएफ के जवानों को निशाना बनाया आतंकियों ने, पाकिस्तान के इशारे पर. उड़ी के बाद हुए सर्जिकल स्ट्राइक के बाद ही पाकिस्तान को समझ लेना था कि ये पहले का भारत नहीं है, आतंकिस्तान की किसी भी नापाक हरकत को बर्दाश्त नहीं करेगा.
लेकिन आदत से मजबूर पाकिस्तान ने, जो सीधे युद्ध लड़ने का हौसला नहीं जुटा सकता, 1971 की करारी पराजय और कारगिल की मार के बाद, वो प्रॉक्सी वार की अपनी रणनीति के तहत फिर से पुलवामा की वारदात करा बैठा. इसका जवाब भी भारत ने तुरंत दिया, बालाकोट में एयर स्ट्राइक करके.
बालाकोट पर हमला बोलकर भारत ने एक और बड़ा संदेश दिया था. भारत पाकिस्तान को सिर्फ यही नहीं बता रहा था कि वो बालाकोट में आतंकियों के अड्डे को खत्म कर रहा है, बल्कि ये भी बता रहा था कि वो उस सोच पर भी चोट कर रहा है, जिसके तहत जेहाद की मानसिकता जन्म लेती है.
बहुत कम लोगों को याद होगा कि बालाकोट वो जगह है, जहां 6 मई 1831 को पंजाब के तत्कालीन महाराजा रणजीत सिंह की फौज ने हिंदुस्तान के खिलाफ जेहाद करने निकले सैय्यद अहमद बरेलवी को लड़ाई में हराया था, सर काट लिया था और शरीर के इतने टुकड़े कर दिये थे कि दफन करने के लिए भी उसके समर्थकों को कुछ हासिल नहीं हुआ. उस समय सैय्यद अहमद बरेलवी गजवा- ए- हिंद के इरादे से निकला था, हिंदुस्तान को दारुल- हर्ब से दारुल- इस्लाम बनाने निकला था. लेकिन रणजीत सिंह की सेना ने न सिर्फ उसको निपटा डाला, बल्कि उसके समर्थकों को भी बड़ी तादाद में मौत के घाट उतार दिया और उसे जेहादी सोच को वहीं गाड़ दिया था.
लेकिन इतिहास की त्रासदी ये है कि लोग उसे पढ़ते तो हैं, लेकिन याद नहीं रखते. सैय्यद अहमद बरेलवी के हस्र को याद करने की जगह उसी की दी हुई जेहादी सोच के साथ पाकिस्तान और उसके गुर्गे आतंकी भारत के खिलाफ आज भी जेहाद करने निकलते हैं.
जिस तरह महाराजा रणजीत सिंह की सेना ने उस वक्त गजवा- ए- हिंद की सोच को जमींदोज कर दिया था, उसी तरह मोदी की मौजूदा सरकार भी जेहादियो के खिलाफ कड़ा कदम उठाते हुए, उन्हें जहन्नुम का रास्ता दिखाते हुए गजवा- ए- हिंद वाली सोच के ताबूत में आखिरी कील ठोकने में लगी हुई है. इसी के तहत बालाकोट में 2019 में एयर स्ट्राइक भी हुई थी, जिस बालाकोट में बरेलवी को अपना आदर्श मानते हुए आतंकी जेहाद के जरिये गजवा- ए- हिंद का ख्वाब देखते थे.
समस्या ये है कि जब बुद्धि कम हो, और हाथ में कटोरा हो, तो न तो कोई देश सीधे रास्ते चल सकता है, और न ही उसके गुर्गे. वैसे भी कहा गया है कि कुत्ते की पूंछ कभी सीधी नहीं होती. पहलगाम में आतंकी हमले को अंजाम देकर पाकिस्तान और उसके पाले- पोसे आतंकियों ने एक बार फिर से कमीनी हरकत की पिछले महीने की बाइस तारीख को.
जाहिर है, उस आतंकी हमले का जवाब देने में मोदी सरकार ने दो हफ्ते से ज्यादा का समय नहीं लिया. पहचान स्थापित करने के बाद हिंदुओं की हत्या पहलगाम में करके दर्जनों महिलाओं की मांग का सिंदूर पोंछने वालों को उनकी घिनौनी हकरत और उन्हें शह देने वालों को भी सबक सिखाने के लिए मोदी की अगुआई वाले भारत ने ऑपरेशन सिंदूर लांच किया और भारतीय सेना ने उन नौ आतंकी ठिकानों पर हमला बोल दिया, जहां से भारत के खिलाफ पिछले तीन दशक से आतंकी घटनाओं को अंजाम दिया जा रहा था.
ऐसे ठिकानों को नष्ट ही नहीं किया गया, बल्कि उसके बाद अक्ल ठिकाने आने की जगह, हेकड़ी दिखाने वाले पाकिस्तान को भी घुटनों पर लाने का काम किया गया. कहां पाकिस्तान हर बार न्युक्यिलर बम होने की धमकी देकर अपने खिलाफ कार्रवाई करने से भारत को डराता था, कहां मोदी की अगुआई वाला भारत उसकी न्युक्लियर ताकत की नोटिस लेने को भी राजी नहीं. सर्जिकल स्ट्राइक, एयर स्ट्राइक और अब ऑपरेशन सिंदूर के तहत पाकिस्तान और उसके आतंकी गुर्गों की पिटाई करने वाले भारत ने साफ संदेश दिया है, हमको न धमकाओ, ज्यादा कमीनी हरकत करोगे, तो मिट्टी में मिल जाओगे, न्युक्लियर पावर धरी की धरी रह जाएगी.
भारत का ये कड़ा रुख ही है कि भिखारी पाकिस्तान अपने तमाम हवाई अड्डों पर भारी बमबारी सहने के बावजूद एक बार भी परमाणु हथियार का इस्तेमाल करने की धमकी औपचारिक तौर पर नहीं दे पाया. उल्टे सफाई देता रहा कि हमारा ऐसा कोई इरादा नहीं है, हम तो लड़ाई बंद करना चाहते हैं.
ऐसा पहले कभी नहीं होता था, पहले की सरकारो में तो वो अपनी दादागीरी करता था, क्योंकि उसे पता था कि उसकी गुंडई से उसे फायदा हो जाएगा. उस आसिफ मुनीर की भी आवाज नहीं निकल पाई, जिसने पाकिस्तानी आर्मी चीफ की अपनी भूमिका के तहत पहलगाम हमले की साजिश रची थी और हाफिज- ए- कुरान होने का दंभ भरते हुए Two Nation Theory का राग अलापा था.
लेकिन मुनीर को ये बकवास करते समय शायद याद नहीं रहा कि अब भारत का मिजाज बदल चुका है, मोदी की अगुआई में वो एक नये रास्ते पर बढ़ चुका है, अगर आंख दिखाई तो आंख फोड़ दी जाएगी, इस मानसिकता के साथ.
भारत और उसकी फौज ने ऑपरेशन सिंदूर के तहत अपने तमाम लक्ष्य हासिल कर लिये, उसको लड़ाई आगे बढ़ाने में कोई रुचि नहीं रही, उसे तो दुनिया की तीसरी बड़ी अर्थव्यवस्था बनना है, पाकिस्तान की तरह भीख का कटोरा थामकर दुनिया में हर देश या संस्था के पास जाने की उसे कोई जरूरत नहीं है. एक बेगैरत, फटेहाल देश के साथ कीचड़ में लंबे समय तक लड़ने का भी कोई इरादा भारत का नहीं हो सकता, क्योंकि उसे पता है कि कीचड़ में पड़े रहना पाकिस्तान को आनंद दे सकता है, सुअर जैसी मानसिकता भारत की नहीं है.
यही वजह है कि अमेरिका की मध्यस्थता के साथ वो युद्ध विराम के लिए राजी हो गया है. लेकिन इसके पहले भारत ये साफ संकेत दे चुका है कि अगर हम युद्ध बंद करते हैं, तो इसका अर्थ ये नहीं है कि आगे फिर से कोई बदमाशी करने की छूट हम पाकिस्तान को देने वाले हैं. इसीलिए भारत ने युद्धविराम के पहले घोषणा कर दी, आगे की कोई भी आतंकी घटना युद्ध जैसी कार्रवाई मानी जाएगी और उसी हिसाब से जवाब भी दिया जाएगा. अगर पाकिस्तान को भारत के कोप से बचना है तो अपनी दशकों पुरानी मानसिकता से भी मुक्ति पानी होगी, अपने आतंकी ढांचे को खत्म करना होगा, जेहादी गुर्गों को भगाना पड़ेगा, त्यागना पड़ेगा.
पाकिस्तान के लिए ये आसान नहीं होगा, लेकिन उसके पास कोई विकल्प भी नहीं है. भारत ने उसके लिए ज्यादा रास्ते छोड़े भी नहीं है. भारत का ये संदेश वैसे सिर्फ पाकिस्तान के लिए ही नहीं है, उस बांग्लादेश के लिए भी है, जिसको जन्म दिया भारत ने, पाकिस्तान की दासता से मुक्त करके 1971 में, लेकिन जेहादी सोच का उभार होने के साथ ही वो भी अहसानफरामोश हो गया है, भारत को आंख दिखाने की अब कोशिश कर रहा है. अगर उसने भी अपनी जमीन का इस्तेमाल भारत के खिलाफ आतंकी गतिविधियों के लिए होने दिया, तो भारत उसे भी छोड़ेगा नहीं. पाकिस्तान और बांग्लादेश जैसे भारत के बिगड़ैल पड़ोसियों और इनके गुर्गों को ये बात जिनती जल्दी समझ में आ जाए, उतना ही बेहतर.