Last Updated:June 18, 2025, 12:50 IST
Prashant Kishor Politics: प्रशांत किशोर ने जन सुराज पार्टी लॉन्च कर 2025 बिहार चुनाव में 200 सीटें जीतने का दावा किया है, जिससे तेजस्वी यादव और एनडीए नेताओं की नींद उड़ गई है. पढ़ें यह रिपोर्ट

क्या बिहार चुनाव 2025 में प्रशांत किशोर निभाएंगे बड़ी भूमिका?
हाइलाइट्स
प्रशांत किशोर ने 2025 बिहार चुनाव में 200 सीटें जीतने का दावा किया.जन सुराज पार्टी ने 2024 उपचुनाव में 10% वोट हासिल किया.पीके की राजनीति से तेजस्वी यादव और एनडीए नेताओं में खौफ.बिहार विधानसभा चुनाव 2025: बिहार चुनाव 2025 में कौन सा गठबंधन रसातल में मिलने वाला है? पटना के वेटरनरी कॉलेज ग्राउंड में 2 अक्टूबर 2024 को जन सुराज पार्टी के लॉन्च के दिन प्रशांत किशोर ने कहा था, ‘हम या तो 200 सीटें जीतेंगे, या 4-5 पर सिमट जाएंगे.’ पीके का यह बयान अब बिहार के गली-गली में तो गूंज ही रहा है, नेताओं की नींद भी गायब कर रखी है. बिहार चुनाव से पहले पीके की पॉलिटिक्स ने लालू के लाल तेजस्वी यादव की नींद छीन ही ली है, एनडीए में भी खौफ पैदा कर दिया है. एनडीए नेताओं ने दबे जुबान से बोलना शुरू कर दिया है कि पीके की पॉलिटिक्स से इस बार कुछ बड़ा होने वाला है. दो साल पहले जब प्रशांत किशोर ने अपनी 3,000 किलोमीटर की पदयात्रा बिहार में शुरू की थी, तो नेता और लोग सब इसे सियासी नौटंकी मान रहे थे. लेकिन 2024 में जन सुराज पार्टी का गठन और उसके ठीक बाद विधानसभा के चार सीटों के उपचुनाव में 10 प्रतिशत वोट हासिल कर तहलका मचा दिया.
पीके, जो कभी नरेंद्र मोदी की 2014 में जीत और 2015 में बिहार में महागठबंधन जीत के पीछे का मास्टरमाइंड थे, अब खुद सियासत के मैदान में हैं. प्रशांत किशोर की कहानी किसी फिल्मी स्क्रिप्ट से कम नहीं. बक्सर के एक मध्यमवर्गीय परिवार से निकलकर, संयुक्त राष्ट्र के स्वास्थ्य कार्यक्रमों में काम करने वाले पीके ने 2011 में भारतीय सियासत में कदम रखा. उनकी पहली बड़ी कामयाबी थी 2012 के गुजरात विधानसभा चुनाव में नरेंद्र मोदी की जीत, जहां उन्होंने ‘चाय पे चर्चा’ और ‘3डी रैलियों’ जैसे इनोवेटिव कैंपेन डिजाइन किए. 2014 के लोकसभा चुनाव में बीजेपी की ऐतिहासिक जीत ने उन्हें सियासी रणनीति का ‘चाणक्य’ बना दिया. लेकिन पीके ने सिर्फ बीजेपी के लिए काम नहीं किया. 2015 में नीतीश कुमार की महागठबंधन सरकार की जीत, 2021 में ममता बनर्जी की तृणमूल जीत और डीएमके की तमिलनाडु में वापसी सबमें पीके का दिमाग था.
पीके के दांव से बिहार की सियासत में भूचाल?
2018 में जेडीयू के उपाध्यक्ष बनने के बाद पीके का नीतीश से मोहभंग हुआ. नागरिकता संशोधन कानून पर मतभेद के बाद 2020 में उन्हें पार्टी से निकाल दिया गया. इसके बाद पीके ने ‘बात बिहार की’ कैंपेन शुरू किया, जो बाद में जन सुराज अभियान बना. उनकी पदयात्रा ने बिहार के गांव-गांव में एक नया संदेश पहुंचाया. जाति और धर्म की सियासत से ऊपर उठकर शिक्षा, रोजगार, और विकास की बात.लेकिन क्या यह संदेश बिहार की जातिगत सियासत में जगह बना पाएगा?
2024 में दिखाया दम 2025 में जान लड़ा देंगे?
2024 के बिहार विधानसभा के उपचुनावों में जन सुराज का प्रदर्शन भले ही कमजोर रहा. पार्टी की चारों सीटों पर हार हुई. लेकिन पार्टी ने 10% वोट शेयर हासिल किया, जो एक नए खिलाड़ी के लिए छोटी बात नहीं. पीके ने दावा किया कि उनका असली मुकाबला एनडीए के साथ है न कि राजद के साथ. वहीं राजद और महागठबंधन ने पीके को ‘बीजेपी की बी-टीम’ करार दिया है. मीसा भारती ने तो यहां तक कहा कि ‘पांडे (पीके की जाति) यादवों को गाली देने का धंधा करते हैं’
बिहार चुनाव जिस तरह से प्रशांत किशोर मेहनत कर रहे हैं, उससे सियासत हिल जाए तो हैरानी नहीं होगी. कहा जा रहा है कि आरएसएस का एक वर्ग पीके के सपने को साकार करने में लग गई है. अगर यह बात सच साबित हुई तो पीके का सपना हकीकत बन सकता है. लेकिन बिहार की जटिल सियासत में, जहां नीतीश और तेजस्वी जैसे दिग्गज पहले से डटे हैं वहां क्या पीके का जादू चलेगा? यह तो 2025 का चुनाव ही बताएगा.