'Mrs' नहीं 'Mx' कहिए... 'जेंडर न्यूट्रल' माहौल बनाने पर टीचर का 'टॉर्चर', इंटरनेट पर आया उबाल

4 hours ago

Social News: कड़े कानून और करोड़ों आवाजें उठने के बावजूद रंगभेद, लिंगभेद और नस्लभेद पूरी तरह खत्म नहीं हुआ है. देश हो या दुनिया समाज में बदलाव अचानक नहीं आता. मानसिकता बदलने की बात हो तो कभी-कभी सदियां लग जाती है. ऐसे ही सोसायटी को झकझोर देने वाले एक मामले में फ्लोरिडा की एक स्कूल टीचर को फोर्स लीव यानी प्रशासनिक अवकाश पर भेज दिया गया. इस टीचर के 'टॉर्चर' की वजह ये रही कि  उन्होंने अपने छात्रों और फैकिल्टी के बाकी टीचर्स से उसे मिस (Ms) या Mrs मिसेज कहने के बजाय 'MX' के रूप में संबोधित करने के लिए कहा.

जेंटर न्यूट्रल 

जेंडर न्यूट्रल होना या होने की बात करना कोई बुरी बात नहीं. ये किसी गंभीर अपराध की श्रेणी में भी नहीं आता इसके बावजूद अगर समाज को दिशा देने वाले और देश के भविष्य (बच्चों) को कुम्हार की तरह गढ़ने वाले टीचर को रूढिवादी मानसिकता की वजह से या समाज में बदलाव लाने के लिए उसकी कोशिशों के लिए दंडित किया जाता है तो मामला गंभीर हो जाता है.

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FAQ-

सवाल- इंटरनेट पर क्यों आया उबाल?
जवाब- इस मामले ने फ्लोरिडा के अटॉर्नी जनरल जेम्स उथमेयर का ध्यान खींचा, जिन्होंने अपने ऑफिस में लिखित शिकायत मिलने के बाद सोशल मीडिया पर इस मामले की जानकारी साझा करते हुए एक्शन लेने का ऐलान किया. ये टीचर गेन्सविले के टैलबोट एलिमेंट्री स्कूल में पढ़ाती थी, उन पर छात्रों को उसे Mx कहने के लिए मजबूर करने का आरोप लगाया गया था. इसके बाद अमेरिकी इंटरनेट में उबाल आ गया.

सवाल- क्या है Mx?
जवाब- 
'Mx' संबोधन एक जेंडर न्यूट्रल यानी लिंग-तटस्थ शब्द है. जिसका इस्तेमाल 1970 के दशक से हो रहा है. यानी आधी शताब्दी से ज्यादा का वक्त बीतने के बावजूद समाज इसे स्वीकार नहीं कर पाया है. इस शब्द को साल 2017 में डिक्शनरी में जोड़ा गया था. अटॉर्नी जनरल ने कहा, 'टीचर को जबरिया छुट्टी पर भेजना फ्लोरिडा के कानून का उल्लंघन है. जेंडर एक अपरिवर्तनीय बॉयलॉजिकल गुण है और किसी व्यक्ति को ऐसा सर्वनाम देना गलत है जो उस व्यक्ति के लिंग के अनुरूप न हो. 

सवाल- भारत में छात्रों से जेंडर न्यूट्रल टर्म को क्या नाम दिया?
जवाब-
बीते दशक में भारतीय छात्रों के बीच 'हे दोस्तों' या 'देवियों और सज्जनों' जैसे पुराने शब्दों की बजाय 'Hey Guys' या Folks जैसे संबोधन का चलन बढ़ा जो न सिर्फ युवाओं बल्कि उम्रदराज लोगों के बीच भी पॉपुलर हुआ. खासकर कॉलेज परिसरों की बात करें तो वहां लिंग भेद न करने वाले शब्दों का प्रयोग एक नया चलन बन गया है.

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