ISI तो जमात पर दांव लगा रही थी, खालिया जिया की मौत से बदलेगा आलम? भारत की लगी टकटकी

1 hour ago

बांग्लादेश की पहली महिला प्रधानमंत्री और बांग्लादेश नेशनलिस्ट पार्टी (बीएनपी) की चेयरपर्सन खालिदा जिया का निधन ऐसे समय हुआ है जब बांग्लादेश फरवरी 2026 में होने वाले महत्वपूर्ण आम चुनाव की तैयारियों में जुटा है. विशेषज्ञों का मानना है कि खालिदा जिया की मौत से बीएनपी को सहानुभूति की बड़ी लहर मिलेगी, जिससे पार्टी की चुनावी संभावनाएं और मजबूत हो सकती हैं.

हाल के ओपिनियन पोल में भी बीएनपी जमात-ए-इस्लामी और नेशनल सिटिजंस पार्टी (एनसीपी) से आगे चल रही थी. स्वास्थ्य कारणों से खालिदा जिया काफी समय से मुख्यधारा की राजनीति से दूर थीं. शेख हसीना के सत्ता से हटने के बाद बीएनपी और जमात-ए-इस्लामी एक साथ थे, लेकिन बाद में दोनों अलग हो गए. 

पहले गठबंधन सरकार में साथ रहने के बावजूद इस बार दोनों पार्टियां अकेले चुनाव लड़ रही हैं.बीएनपी की स्थिति को और मजबूत बनाने वाली एक बड़ी घटना उनके बेटे तारिक रहमान की हालिया वापसी है.

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17 वर्ष के निर्वासन के बाद लंदन से लौटे तारिक ने बड़ी रैलियां कीं और पार्टी कार्यकर्ताओं में नई ऊर्जा भरी.विशेषज्ञों के अनुसार, तारिक रहमान, जिन्होंने कई सीटों से नामांकन दाखिल किया है, अगले प्रधानमंत्री की दौड़ में सबसे आगे हैं. जिया की मौत से राजनीतिक समीकरण बदल सकते हैं. देशभर में शोक की लहर से साफ है कि वह एक लोकप्रिय नेता बनी रहीं है.

शेख हसीना के देश छोड़ने के बाद भारत बीएनपी नेतृत्व से संपर्क में है और दोनों पक्ष अच्छे संबंध बनाने पर सहमत हैं. हालांकि बीएनपी को भारत-विरोधी माना जाता रहा है, लेकिन जमात की तुलना में इसे भारत के लिए अधिक व्यावहारिक साझेदार बताया जा रहा है. तारिक रहमान पर पहले ISI के समर्थन के आरोप लगे हैं, लेकिन विश्लेषक बदलाव के संकेत देख रहे हैं और मानते हैं कि भारत-बांग्लादेश संबंध मजबूत हो सकते हैं.

 इंटेलिजेंस सूत्रों के अनुसार, बांग्लादेश के तेज बदलते हालात से ISI चिंतित है. वह जमात को नियंत्रित करती है, लेकिन बीएनपी को इतना आसान नहीं मानती. ISI कथित तौर पर बीएनपी में प्रभाव बढ़ाने की कोशिश कर रही है ताकि पाकिस्तान के साथ संबंध मजबूत हों. पाकिस्तान हाई कमीशन में ISI की गतिविधियों पर भारतीय एजेंसियां नजर रख रही हैं. विश्लेषकों का कहना है कि सब कुछ तारिक रहमान पर निर्भर करेगा. उन्होंने भारत के साथ अच्छे संबंधों के संकेत दिए हैं, लेकिन ISI का दबाव कितना असर करेगा, यह देखना बाकी है. अगर वह देश की प्रगति चाहते हैं तो भारत के साथ व्यावहारिक संबंध सबसे बेहतर विकल्प होगा.

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