Explainer: भारत ने IMF में पाकिस्तान के खिलाफ वोट क्यों नहीं किया, क्या है वजह

4 hours ago

पाकस्तान को युद्ध के बीच कर्ज की जरूरत है. इसके लिए उसने इंटरनेशनल मानेटरी फंड से गुहार की. भारत चाहता तो आईएमएफ में पाकिस्तान को लोन देने के खिलाफ वोटिंग कर सकता था, लेकिन उसने ऐसा करने की बजाए वोटिंग ही नहीं की. सवाल उठ रहे हैं कि भारत ने ऐसा क्यों किया. अगर वह चाहता तो पाकिस्तान के खिलाफ वोट करके मौजूदा हालात में बदला तो ले ही सकता था लेकिन इसके बाद भी भारत वोटिंग से अलग रहा.

आईएमएफ का मुख्यालय वाशिंगटन डीसी में है. पाकिस्तान के दो लोन प्रोग्राम को मंजूर करने के लिए 9 मई को वोटिंग हुई. भारत आईएमएफ के निदेशक मंडल में है, लिहाजा उसका वोट मायने भी रखता है.

वोटिंग में पाकिस्तान को दो ऋण कार्यक्रमों के तहत कुल $2.3 बिलियन की वित्तीय सहायता प्रदान करने पर हरी झंडी दे दी गई. ये बात जो भी सुन रहा है वो हैरान हो रहा है कि भारत ने ऐसा क्यों किया.
भारत के वोटिंग से बाहर रहने ने निश्चित तौर पर पाकिस्तान को बहुत बड़ी राहत दी. इंटरनेशनल कम्युनिटी में भी लोग हैरान हो रहे हैं कि एक तरफ तो दोनों देशों में जबरदस्त तनाव के बीच सैन्य कार्रवाई हो रही है. दोनों ही देश एक दूसरे के खिलाफ हमला कर रहे हैं. ऐसे में भी भारत ने वोटिंग से बाहर रहकर क्यों पाकिस्तान के लोन मंजूरी का रास्ता साफ कर दिया.

पाकिस्तान को कितना कर्जा मंजूर हो गया
पाकिस्तान को विस्तारित निधि सुविधा यानि एक्सटेंडेट फंड फेसिलिटी के जरिए एक बिलियन डॉलर और लचीलापन और स्थिरता सुविधा (Resilience and Sustainability Facility ) के तहत 1.3 बिलियन डॉलर मंजूर किए. यानि कुल मिलाकर 2.3 बिलियन डॉलर.

भारत खिलाफ वोट कर सकता लेकिन क्यों नहीं किया
तकनीकी तौर पर भारत IMF ऋण निर्णयों में पाकिस्तान के खिलाफ वोट कर सकता है, लेकिन वह आमतौर पर ऐसा सीधे तौर पर क्यों नहीं करता है. भारत ने कूटनीतिक चैनलों के माध्यम से अपनी चिंताओं को बताना ज्यादा पसंद किया. भारत ने IMF को ये सुनिश्चित करने के लिए कहा कि पाकिस्तान को जो धनराशि दी जाए वो सेना को ना दे दी जाए और ना ही इसके जरिए वो अपने दूसरे लोन का भुगतान कर सके.

भारत ने इसके लिए कड़ी निगरानी पर जोर दिया ताकि पाकिस्तान को जो धन दिया जाए वो ना तो सीमा पार आतंकवाद में इस्तेमाल हो और ना ही सेना को हथियारों के लिए दिया जाए.

आमतौर पर आईएमएफ सर्वसम्मति-आधारित दृष्टिकोण पर काम करता है. व्यक्तिगत सदस्य देशों के वोट सामूहिक निर्णय लेने की प्रक्रिया का हिस्सा होते हैं. भारत के वोटिंग में हिस्सा नहीं लेने की कई वजहें हैं.

IMF आम सहमति से काम करता है, शत्रुतापूर्ण मतदान से नहीं
IMF सदस्य देश खासतौर पर अमेरिका, यूरोपीय संघ के देश, चीन और भारत जैसे प्रमुख शेयरधारक व्यापक आम सहमति से काम करना पसंद करते हैं. यहां तक कि प्रतिकूल संबंधों वाले देश भी शायद ही कभी खुले तौर पर खिलाफ या नहीं का वोट नहीं देते जब तक कि कोई गंभीर भू-राजनीतिक उल्लंघन न हो. जैसे रूस-यूक्रेन में तनाव और युद्ध का मामला.

शत्रुतापूर्ण वोट कूटनीतिक तौर पर अलग कर सकता है
शत्रुतापूर्ण वोट किसी देश को कूटनीतिक रूप से अलग-थलग कर सकता है. उसे वैश्विक वित्तीय स्थिरता को बाधित करने के तौर पर देखा जा सकता है. भारत खुद को दुनिया में एक जिम्मेदार वैश्विक खिलाड़ी के तौर पर स्थापित करने की कोशिश करता रहा है, लिहाजा वो खिलाफत वोटिंग करने से बचा.

भारत ये भी नहीं चाहता कि पाकिस्तान की ये हालत हो
भारत निश्चित तौर पर सीमा पार आतंकवाद को लेकर पाकिस्तान के साथ गहरे मतभेद रखता है. लेकिन ये भी नहीं चाहता कि पाकिस्तान की अर्थव्यवस्था पूरी तरह से ध्वस्त हो जाए. क्योंकि आर्थिक तौर पर अगर उसकी हालत खराब हुई तो और अधिक उग्रवाद हो सकता है. शरणार्थियों का प्रवाह पड़ोसी क्षेत्रों को अस्थिर कर सकता है.

भारत कूटनीतिक चैनलों के माध्यम से आर्थिक दबाव बनाए रखना पसंद करता है, वो ये सुनिश्चित करता है कि पाकिस्तान आर्थिक रूप से बचा रहे लेकिन नियंत्रित रहे.

पर्दे के पीछे कूटनीति
भारत IMF प्लेटफ़ॉर्म का उपयोग पाकिस्तान जैसे हालात संबंधी चिंताओं को दर्ज करने के लिए चतुराई से करता है:
– वो तय करता है कि IMF फंड को यूज सैन्य खर्च या चीनी ऋण चुकौती में नहीं जाए. भारत ने लगातार कहा है कि पाकिस्तान को मिलने वाला फंड सख्त निगरानी शर्तों के साथ दिया जाए और निगरानी की जाए. इससे इससे भारत के उद्देश्य सार्वजनिक वीटो के बिना ही पूरे हो जाते हैं.

क्या भारत के खिलाफ वोट देने से लोन रुक जाता
भारत की ओर से वोटिंग में खिलाफ या नहीं का वोट डालने पर ऋण नहीं रुकता, क्योंकि दूसरे देश पक्ष में वोट देते. आईएमएफ में अमेरिका के पास 16.5% हिस्सेदारी है. यूरोपीय संघ के पास सामूहिक रूप से लगभग 25-30% हिस्सेदारी है. भारत के पास केवल ~2.7% हिस्सेदारी है. इसलिए भारत बेशक नहीं के तौर पर वोट डाल सकता था लेकिन ये उसके लिए कूटनीतिक तौर पर महंगा होता.

भारत एक वैश्विक शक्ति के रूप में देखा जाना चाहता है न कि एक छोटा विरोधी
भारत दुनिया में खुद को वैश्विक आर्थिक और भू-राजनीतिक मंचों (ब्रिक्स, जी20, एससीओ, आईएमएफ) में खुद को एक तटस्थ, स्थिर करने वाली ताकत के रूप में स्थापित करने की कोशिश करता रहा है. वह इंटरनेशनल प्लेटफॉर्म पर छोटा विरोधी के तौर पर इमेज नहीं बनाना चाहता.

तो भारत को क्या पसंद है
– राजनयिक रूप से परहेज़ करना या आपत्तियां उठाना
– IMF की शर्तों को चुपचाप प्रभावित करना
– अस्थिरता पैदा करने वाले कदमों से बचना जो क्षेत्रीय रूप से अच्छे नहीं हो सकते.

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