DNA: भारत के नाम पर अमेरिका में ट्रंप के खिलाफ 20 राज्यों ने बनाया गठबंधन

2 hours ago

शहबाज शरीफ ने अंतरराष्ट्रीय मंच पर अपमानित होने का कीर्तिमान स्थापित किया है. जब से वो प्रधानमंत्री बने हैं, तब से कम से कम पांच बार सार्वजनिक तौर पर बेइज्जत हुए हैं. पाकिस्तान की गिरी हुई इज्जत को और कई पायदान नीचे गिराया है. यही कारण है कि इमरान खान की पार्टी आक्रामक है. पाकिस्तान में शहबाज शरीफ के खिलाफ मोर्चा खुला हुआ है, तो अमेरिका में डॉनल्ड ट्रंप के विरुद्ध. प्रत्यक्ष या अप्रत्यक्ष रूप से उन्होंने भारत के विरुद्ध जो 'शुल्क-युद्ध' शुरू किया था, उसपर वो घिर गए हैं. ट्रंप की मनमानी के खिलाफ कई राज्य एक साथ खड़े हो गए हैं. 

H1-B वीजा के लिए जो स्वेच्छानुसार शुल्क बढ़ाया था, उसे अदालत में चुनौती दी गई है तो हिंदुस्तान पर लगाए गए भारी-भरकम टैरिफ को खत्म करने के लिए वहां की संसद में आवाज़ उठी है. इसलिए आज हम ट्रंप की भारत-विरोध नीति के खिलाफ अमेरिकी राज्यों के गठबंधन का विश्लेषण करेंगे. अमेरिका के पूर्व राष्ट्रपति फ्रैंकलिन डी. रूजवेल्ट ने कहा था कि नेताओं या शासकों की जिद देश के लिए हानिकारक हो सकती है, क्योंकि यह बदलाव और समाधान को रोकती है. अमेरिका में आर्थिक सुधार के लिए विख्यात अपने ही पूर्व राष्ट्रपति को डॉनल्ड ट्रंप ने शायद कभी गंभीरता से पढ़ा नहीं, या फिर उन्हें समझा नहीं. इसकी वजह ये हो सकती है कि रूजवेल्ट डेमोक्रेट थे और ट्रंप रिपब्लिकन हैं. 

ट्रंप की जिद से अमेरिका को भी भारी नुकसान
ट्रंप की जिद से अमेरिका को आज भारी नुकसान हो रहा है. विशेषकर उन्होंने जो  H-1B वीजा शुल्क बेहिसाब बढ़ा दिया था, इसके नतीजे दिखने लगे हैं. यही कारण है कि 50 में से 20 राज्यों ने एक साथ ट्रंप के खिलाफ मोर्चा खोल दिया है. कैलिफॉर्निया, न्यूयॉर्क, न्यूजर्सी और वॉशिंगटन जैसे राज्यों ने बोस्टन के फेडरल कोर्ट में मुकदमा दायर किया है. कैलिफोर्निया और मैसाचुसेट्स के अटॉर्नी जनरल इस एंटी ट्रंप नीति एलाएंस का नेतृत्व कर रहे हैं.

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राज्यों का आरोप ये शुल्क पूरी तरह से गैर कानूनी
इनका स्पष्ट कहना है कि  H-1B वीजा शुल्क बढ़ाने से शिक्षा और स्वास्थ्य सेक्टर में भारी संकट होने वाला है. राज्यों का आरोप है कि यह शुल्क पूरी तरह गैरकानूनी है, प्रशासन के पास इसे लगाने का कोई अधिकार नहीं था. होमलैंड सिक्योरिटी डिपार्टमेंट ने 19 सितंबर को यह फीस लागू कर अपने अधिकार क्षेत्र से बाहर जाकर फैसला लिया. ट्रंप प्रशासन ने यह शुल्क लगाने के लिए न तो संसद की मंजूरी ली और न ही प्रशासनिक प्रक्रिया अधिनियम के तहत जरूरी नियम-निर्माण प्रक्रिया का पालन किया. इसलिए ये H-1B वीजा शुल्क के नाम पर वसूली पूरी तरह अवैध है. इसे खत्म किया जाना चाहिए.

H-1B वीजा की फीस 87 हजार से बढ़ाकर 7 लाख तक पहुंची
विदेशी पेशेवरों के लिए अमेरिका H-1B वीजा जारी करता है. इसके लिए पहले 87 हजार रूपये से करीब 7 लाख रूपये तक शुल्क लिए जाते थे. लेकिन ट्रंप ने सितंबर में इसे बढ़ाकर करीब 90 लाख रुपया कर दिया था. यह फीस वीजा प्रोसेसिंग की वास्तविक लागत से सैकड़ों गुना ज्यादा है. इसका भारत पर सीधा असर पड़ा. अमेरिका में काम करने वाले 100 भारतीयों में से 70 लोगों के पास H-1B वीजा ही है. ऐसे में इसे भारत केंद्रित फैसले के तौर पर भी देखा गया. लेकिन अमेरिका के लिए ये फैसला बैकफायर कर गया है.

अमेरिका के 75 प्रतिशत डिस्ट्रिक्ट स्कूल के पास टीचर नहीं
जिन्होंने ट्रंप के खिलाफ अदालत का दरवाजा खटखटाया है, उनका कहना है कि स्कूल, यूनिवर्सिटी और अस्पताल को वीजा में छूट मिलती थी, लेकिन अब एक-एक विदेशी टीचर या डॉक्टर लाने में 90 लाख रुपए खर्च होंगे. इससे ये संस्थान या तो सेवाएं घटाएंगे या दूसरी जरूरी योजनाओं से पैसा काटेंगे. वैसे भी
अमेरिकी शिक्षा विभाग की रिपोर्ट के मुताबिक, इस साल अमेरिका के लगभग 75 प्रतिशत डिस्ट्रिक्ट स्कूल को शिक्षक नहीं मिल पा रहे. खासकर स्पेशल एजुकेशन, साइंस और बाइलिंगुअल शिक्षकों की भारी कमी है. साल 2036 तक अमेरिका में 86 हजार डॉक्टरों की कमी होने का अनुमान है. ग्रामीण और गरीब इलाकों में पहले से ही डॉक्टरों की घोर कमी है.  

अमेरिकी सरकार में वीजा फीस की बढ़ोत्तरी को जायज बताया
इसके बावजूद अमेरिकी सरकार वीजा में फीस बढ़ोतरी को जायज बताती रही है. मित्रो, इससे पहले यूएस चैंबर ऑफ कॉमर्स ने भी ट्रंप की इस वीजा शुल्क वसूली के खिलाफ मुकदमा किया था. अब 20 राज्य एकजुट होकर अदालत पहुंचे हैं. मित्रो, ट्रंप की जिद से सिर्फ अच्छे प्रोफेशनल्स की कमी ही नहीं हो रही है, बल्कि उनकी जिद अमेरिका के आमलोगों की जेब पर भी भारी पड़ रही है. ट्रंप ने भारत पर जो 50 प्रतिशत टैरिफ लगाया था, इससे अमेरिकियों का जबरदस्त नुकसान हो रहा है. आमलोगों में नाराजगी इतनी अधिक है कि तीन सांसदों को वहां की संसद में प्रस्ताव पेश करना पड़ा.

मार्क वीजी और राजा कृष्णमूर्ति ने पेश किया एक प्रस्ताव
यूएस हाउस ऑफ रिप्रेजेंटेटिव्स की सदस्य डेबोरा रॉस, मार्क वीजी और राजा कृष्णमूर्ति ने एक प्रस्ताव पेश किया है. जिसमें उन्होंने उस राष्ट्रीय आपातकाल की घोषणा को रद्द करने की मांग की है, जिसके आधार पर ट्रंप प्रशासन ने भारतीय आयात पर टैरिफ 50 प्रतिशत तक बढ़ा दिया था. अपनी इस मांग के पीछे तीनों सांसदों ने तर्क ये दिया है कि ये 50 प्रतिशत टैरिफ अवैध है. अमेरिकी हितों के खिलाफ है. और इससे सबसे ज्यादा नुकसान आम अमेरिकी नागरिकों को ही हो रहा है. ये दरअसल अमेरिकियों पर ही अतिरिक्त टैक्स है, जो रोजमर्रा की चीजों पर उसे चुकाना पड़ रहा है.

टैरिफ के कारण आम अमेरिकियों की जेब पर दबाव बढ़ा
टैरिफ की वजह से अमेरिका में खुदरा महंगाई दर काफी बढ़ गई है. हालांकि ट्रंप सरकार इसको ये कहकर खारिज करने में जुटी है कि तमाम देशों पर भारी भरकम टैरिफ लगाने के कारण अमेरिका का व्यापार घाटा 2020 के मध्य के बाद से सबसे निचले स्तर पर आ गया है. लेकिन सच्चाई यही है कि टैरिफ के कारण आम अमेरिकियों की जेब पर दबाव बढ़ा है. यही कारण है कि ट्रंप की नीतियों के खिलाफ लोगों का आक्रोश बढ़ रहा है. इसी आक्रोश को वहां की राज्य सरकार और सांसद संसद से लेकर अदालत तक आकार दे रहे हैं.

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