Last Updated:May 12, 2025, 14:02 IST
India-Pakistan war: जामनगर के बुजुर्गों ने 1965 और 1971 के युद्ध की खौफनाक यादें साझा कीं. blackout, बंकर, बमबारी और डर के माहौल में उन्होंने साहस, एकता और देशभक्ति से हालात का सामना किया था.

पूर्व सैनिक भरतसिंह जडेजा
भारत और पाकिस्तान के बीच इस समय तनाव का माहौल है. ऐसे में देश में हर जगह एक बेचैनी महसूस हो रही है. ऑपरेशन सिंदूर जैसे हालिया घटनाक्रमों ने लोगों के मन में पुराने युद्धों की यादें ताज़ा कर दी हैं. खासकर उन लोगों के लिए जो 1965 और 1971 के युद्धों को अपनी आंखों से देख चुके हैं. जामनगर के कुछ बुजुर्गों ने लोकल 18 से बात करते हुए उस दौर की घटनाएं साझा कीं.
भरतसिंह जडेजा ने बताया – रात का अंधेरा ही सुरक्षा थी
जामनगर के सेवानिवृत्त शिक्षक और हालार जिला माजी सैनिक मंडल के अध्यक्ष भरतसिंह जडेजा ने बताया कि 1971 का समय वह कभी नहीं भूल सकते. उन्होंने कहा, “मैं उस समय सिर्फ 9 साल का था, लेकिन माहौल इतना डरावना था कि आज भी याद है. रात में लाइट जलाने की सख्त मनाही थी, वाहन नहीं चला सकते थे, यहां तक कि खाना भी दिन में बनाना होता था.”
उन्होंने बताया कि सरकार ने निर्देश दिए थे कि रात को पूरे शहर में अंधेरा रखा जाए ताकि दुश्मन देश की ओर से आने वाले हमलावर विमानों को निशाना बनाना मुश्किल हो. “लोगों ने अपने घरों के बाहर बंकर बना लिए थे. अगर आसमान में किसी जहाज की आवाज़ सुनते, तो तुरंत बंकर में छिप जाते,” उन्होंने कहा.
द्वारका और सरमत खाड़ी में हुई थी बमबारी
भरतसिंह ने बताया कि उस समय बमबारी द्वारका और सरमत खाड़ी में हुई थी. पूरे शहर में अफवाहें और डर का माहौल था, लेकिन लोगों ने सरकार के आदेशों का पालन किया और एकजुटता दिखाई. “एक आम नागरिक के तौर पर हमें जो कहा गया, हमने वो किया,” उन्होंने कहा.
मगनभाई जानी बोले – हमने दोनों युद्ध देखे हैं
90 वर्षीय सेवानिवृत्त शिक्षक मगनभाई जानी ने लोकल 18 को बताया कि उन्होंने 1965 और 1971 दोनों युद्धों का माहौल जामनगर में महसूस किया. उन्होंने कहा, “1965 में जामनगर पर पाकिस्तानी विमानों ने बमबारी की थी. इससे लोग डरकर गांवों की ओर भागने लगे थे. लोग जो वाहन मिले, उसी में गांव चले जाते थे.”
मगनभाई बताते हैं कि उस समय शहर में डर का साया था. कुछ आवाजें आती थीं जो लोगों को लगती थीं कि दुश्मन की बातचीत है. इससे डर और बढ़ जाता था. लेकिन इस माहौल में भी अफसरों और जिम्मेदार नागरिकों ने लोगों को हिम्मत दी.
युद्ध के वक्त बढ़ी महंगाई, लेकिन लोगों ने की मदद
मगनभाई ने बताया कि जैसे-जैसे युद्ध का खतरा बढ़ा, वैसे-वैसे बाजार में चीजों की कीमतें भी बढ़ गईं. व्यापारी अपने फायदे के लिए दाम बढ़ा रहे थे. मगर उस समय समाज में कुछ ऐसे लोग भी थे जो “भामाशाह” की तरह मदद के लिए आगे आए.
उन्होंने कहा, “ऐसे समय में हमें लालच नहीं दिखाना चाहिए, बल्कि लोगों की मदद करनी चाहिए. 1971 में भी हालात 1965 जैसे ही थे. लेकिन हमारे बहादुर सैनिकों ने दुश्मन को मुंहतोड़ जवाब दिया और पाकिस्तान को हार का स्वाद चखाया.”
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Location :
Jamnagar,Gujarat