जब युधिष्ठिर सशरीर स्वर्ग पहुंचे, तो उन्होंने देखा कि वहां हर तरह का वैभव, आनंद और सुख-सुविधाएं हैं. अप्सराएं हैं. सुख की बयार है लेकिन उन्होंने जब दुर्योधन को भी वहां सुख भोगते देखा, तो वह क्षुब्ध हो गए. वह भड़क गए. तब उन्होंने क्या कहा. क्यों भड़कते हुए स्वर्ग में रहने से ही इनकार कर दिया.
युधिष्ठिर तो यही सोचकर स्वर्ग में पहुंचे थे कि वहां वो अपने भाइयों और द्रौपदी को दिखेंगे. इसके बजाए उन्होंने वहां दुर्योधन और कौरवों को देखा. उससे स्वर्ग आने का उनका सारा उत्साह ही चला गया. गुस्सा आने लगा.
इसी वजह से वह दुर्योधन के सामने ही भड़क उठे. उन्होंने क्रोध में इंद्र से कहा, जिसने अधर्म किया, भरी सभा में द्रौपदी का अपमान किया, अपने स्वार्थ के लिए अपने बड़ों और गुरुजनों तक का आदर नहीं किया, जिसने भीषण युद्ध कराकर हजारों निर्दोषों का संहार करवाया, वह कैसे स्वर्ग में जगह कैसे मिल सकती है.
युधिष्ठिर जब स्वर्ग पहुंचे तो उन्होंने वहां सबसे पहले दुर्योधन को देखा, जो बहुत खुश था, स्वर्ग के आनंद ले रहा था. ये देखकर युधिष्ठिर को गुस्सा आ गया. वह उसे वहां देखकर बहुत हैरान थे. (Image generated by Leonardo AI)
क्रोध में युधिष्ठिर ने क्या कहा
युधिष्ठिर ने इसी बात पर क्रोधित होकर कहा था, “मैं ऐसे पापी के साथ इस स्वर्ग में नहीं रह सकता. अगर दुर्योधन स्वर्ग में है, तो मुझे इस स्वर्ग की जरूरत नहीं.” उन्हें लगा कि यदि धर्म-अधर्म का यह न्याय है, तो फिर इस स्वर्ग में रहने का कोई मूल्य नहीं. दरअसल, युधिष्ठिर धर्मराज कहलाते थे. उनका जीवनभर का विश्वास यही रहा कि धर्म ही सबसे ऊपर है. उन्हें अपने जीवन की समस्त पीड़ाओं और अपनों की मृत्यु का कारण दुर्योधन के अन्याय में दिखता था.
दुर्योधन आदत के उलट शांत रहा
हालांकि जब वह दुर्योधन के सामने ही उस भड़क रहे थे तो उन्होंने उसको शांत भी देखा. वह हमेशा की तरह पांडवों से मुकाबला करता हुआ और उनके खिलाफ कुछ बोलता भी नजर नहीं आया. बल्कि युधिष्ठिर की इन बातों को सुनकर भी उसने अनसुना कर दिया.
युधिष्ठिर ने जब दुर्योधन को स्वर्ग में सुख भोगते हुए देखा तो युधिष्ठिर के लिए स्वर्ग का आकर्षण ही खत्म हो गया. उन्होंने इंद्र से कहा, “अगर दुर्योधन स्वर्ग में है, तो मैं नरक जाना पसंद करूंगा. कम से कम वहां वे लोग होंगे जिन्होंने धर्म की रक्षा की होगी. अधर्म के विरोध में अपने प्राण गंवाए होंगे.”
तब इन्द्र और यमराज ने उन्हें समझाया कि दुर्योधन ने अपने जीवन में क्षत्रिय धर्म के अनुसार युद्ध में वीरगति पाई थी. उसने वीरता, पराक्रम और शासन के कर्तव्यों का पालन भी किया, इसलिए उसे उसके पुण्य कर्मों का फल स्वर्ग में मिल रहा है. इसे तरीके से जानने के बाद युधिष्ठिर का मन शांत हो पाया.
पांडव क्यों नरक में
अब आइए जानते हैं कि जब युधिष्ठिर स्वर्ग पहुंचे तो पांडव और द्रौपदी उन्हें वहां क्यों नहीं मिले. जब पांडव और द्रौपदी महाप्रस्थान के लिए हिमालय की ओर गए, तो एक-एक कर द्रौपदी और पांडव मार्ग में गिरते गए. केवल युधिष्ठिर अपने शरीर सहित स्वर्ग जा पाए. दरअसल भीम, अर्जुन, नकुल, सहदेव के साथ द्रौपदी को पहले नरक ले जाया गया. हालांकि कुछ देर के लिए सही.
तब युधिष्ठिर को नरक में ले जाया गया
युधिष्ठिर को जब स्वर्ग के बाद नरक में ले जाया गया, तो उन्होंने वहां अपने भाइयों (भीम, अर्जुन, नकुल, सहदेव) और द्रौपदी को कष्ट भोगते देखा. ये देखने के बाद उन्हें फिर गुस्सा आ गया. क्योंकि उनके भाई और पत्नी धर्मनिष्ठ और सत्यनिष्ठ थे, फिर भी उन्हें नरक में कष्ट सहना पड़ रहा था. युधिष्ठिर ने इसे भी अन्याय माना. इस स्थिति पर गुस्सा जताया.
हालांकि युधिष्ठिर को बात में पता चला कि वास्तव में ऐसा था नहीं, ये केवल माया थी, जो उनकी परीक्षा के लिए रची गई. उनके भाई और पत्नी कुछ देर के लिए जरूर नरक में गए थे लेकिन अब वो वास्तव में स्वर्ग में ही हैं.
महाभारत में स्वर्ग और नरक के बारे में क्या कहा गया
महाभारत में स्वर्ग और नरक के बारे में विस्तार से लिखा गया है. खासकर स्वर्गारोहण पर्व और आनुशासनिक पर्व में. महाभारत के वनपर्व के अध्याय 42 में स्वर्ग को सुखों का स्थान लिखा गया है. जहां कामधेनु, कल्पवृक्ष, अप्सराएं और दिव्य भोग हैं. तो महाभारत के आनुशासनिक पर्व में में कहा गया है कि हिंसा, झूठ, चोरी, ब्रह्महत्या, गुरुद्रोह आदि पाप करने वालों को यमलोक में कष्ट भोगने पड़ते हैं. महाभारत में 21 प्रकार के नरक बताए गए हैं.