अगर कर्ण को युद्ध से पहले ही पता चल जाता कि वह कुंती का पुत्र और पांडवों का बड़ा भाई है, तो क्या महाभारत की कथा पूरी तरह बदल सकती थी. दरअसल केवल तीन लोग जानते थे कि कर्ण वास्तव में कुंती का पुत्र है. इन तीन में दो ने ये बात कर्ण को ठीक महाभारत युद्ध से पहले बताई. तब कुछ नहीं बदल सकता था. लेकिन शायद ये तस्वीर तब अलग होती अगर ये बात कर्ण को उसके युवा काल या बचपन में ही बता दी गई होती.
हालांकि इस बात पर विद्वानों, पौराणिक ग्रंथों और आधुनिक विश्लेषणों में अलग-अलग बातें कही गई हैं.
जब कुंती ने ये बात कर्ण को बताई
महाभारत के उद्योग पर्व के 143 वें अध्याय में कहा गया है कि युद्ध से पहले कुंती कर्ण के पास जाती हैं. उसे बताती हैं कि वह उसकी मां हैं. पांडव उसके भाई हैं. वह उसे पांडवों के पक्ष में आने के लिए मनाती हैं. तब कर्ण का जवाब होता है कि वह बेशक वह कुंती को मां मानता है, लेकिन दुर्योधन के प्रति निष्ठा और अपमान के कारण पांडवों का साथ नहीं देगा.
साथ ही कुंती को ये दिलासा भी देता है कि वह युद्ध में केवल अर्जुन को ही मारेगा, ताकि उसकी मां के पांच पुत्र बने रहें. महाभारत में ये साफ है कि कर्ण अर्जुन को हराने की अपनी प्रतिज्ञा से बंधा था, भले ही वह अपने भाइयों को बचाना चाहता था.
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जब कृष्ण ने घर जाकर कर्ण को ये सच बताया
श्रीमद्भागवत पुराण (1.8.17-18) कहती है कि जब युद्ध से पहले कृष्ण खुद कर्ण के घर जाते हैं. उससे मिलकर उसके जन्म का रहस्य बताते हैं. उसे धर्म का मार्ग दिखाने की कोशिश करते हैं, लेकिन कर्ण अपनी प्रतिज्ञा (दुर्योधन के प्रति वफादारी) के कारण नहीं मानता.
क्या होता अगर कर्ण पहले जान जाता?
शायद युद्ध टल सकता था. अगर कर्ण को बचपन या युवावस्था में ही पता चल जाता कि वह कुंती का पुत्र है, तो वह पांडवों के साथ बड़ा होता. तब वह दुर्योधन के पाले में नहीं होता और पांडवों के साथ उसके रिश्तों में कोई कटुता नहीं आती.
तब कर्ण युधिष्ठिर की जगह हस्तिनापुर का उत्तराधिकारी बन सकता था (क्योंकि वह कुंती का ज्येष्ठ पुत्र था). तब दुर्योधन की इतनी ताकत भी नहीं होती, ना ही वो फिर पांडवों से इतनी अदावत लेता, ना ही पांडवों के खिलाफ षड्यंत्र कर पाता.
युद्ध का स्वरूप बदल जाता
कर्ण अगर पांडवों के पक्ष में आ जाता, तो कौरवों की हार निश्चित थी, क्योंकि कर्ण और अर्जुन के मिल जाने से संयुक्त बल अजेय होता. दुर्योधन तब शायद ही युद्ध की हिम्मत ही नहीं करता. हालांकि दुर्योधन को युद्ध और पांडवों के खिलाफ उकसाने वालों में कर्ण भी था.
राहुल सांकृत्यायन अपनी किताब महाभारत की ऐतिहासिकता में लिखते हैं, “कर्ण की कहानी एक ऐसे योद्धा की है जो सच जानकर भी उसे झुठलाता नहीं, बल्कि उसके साथ न्याय करता है.”
कर्ण के परिवार का क्या पांडवों से मेल हुआ
महाभारत युद्ध के बाद कर्ण की मृत्यु तो हुई ही, साथ ही उसके दस पुत्रों में केवल उसका सबसे छोटा पुत्र वृषकेतु ही जीवित बचा रहा. बाकी सभी पुत्र युद्ध में मारे गए थे – अधिकांश पांडवों के ही हाथों. कर्ण की मृत्यु के बाद उसकी पत्नी वृषाली ने पति के वियोग में सती होना चुना. वह चिता पर बैठ गई.
कर्ण के पुत्र को अपनाया
कर्ण की मृत्यु के बाद, जब पांडवों को यह पता चला कि कर्ण वास्तव में उनकी माता कुंती का पुत्र और उनका बड़ा भाई था, तो उन्हें गहरा पछतावा हुआ. इसके पश्चात पांडवों ने कर्ण के जीवित पुत्र वृषकेतु को न केवल अपनाया, बल्कि उसे राजकुमार जैसा सम्मान दिया. वृषकेतु को पांडवों ने अपने साथ रखा, उसे शिक्षा दी. कई युद्धों में अर्जुन के साथ भेजा गया.
अर्जुन ने उसे युद्धकला की शिक्षा दी. वह अर्जुन के साथ अश्वमेध यज्ञ के दौरान अनेक युद्धों में शामिल हुआ. कहा जाता है कि वृषकेतु ने कई क्षेत्रों को जीतकर अर्जुन की सहायता की थी. कुछ कथाओं के अनुसार, वृषकेतु को ब्रह्मास्त्र, वरुणास्त्र, अग्नि और वायुस्त्र जैसे दिव्य अस्त्रों का ज्ञान था, जो उसे अपने पिता कर्ण से मिला था. वह अत्यंत वीर और योग्य योद्धा बना.