जम्मू-कश्मीर विकास की राह पर, पाक के कब्जे वाले कश्मीर को लगा ब्रेक

9 hours ago

Last Updated:June 07, 2025, 13:38 IST

JAMMU KASHMIR VS POJK: कश्मीर स्वर्ग है लेकिन पाकिस्तान की हमेशा कोशिश रही है कि वह भी उतनी ही पिछड़ा रहे जितना की उसके कब्जे वाला कश्मीर है. लेकिन यह उसका ख्वाब कभी पूरा नहीं हो सका और ना ही कभी होगा. कश्मीर ख...और पढ़ें

जम्मू-कश्मीर विकास की राह पर, पाक के कब्जे वाले कश्मीर को लगा ब्रेक

POK के हालात बद से बदतर

हाइलाइट्स

पीएम मोदी ने चिनाब नदी पर आर्क ब्रिज का उद्घाटन किया.जम्मू-कश्मीर में 46,000 करोड़ की विकास परियोजनाओं का शिलान्यास हुआ.पीओके में लोकतंत्र और विकास की कमी, जबकि कश्मीर में तेजी से सुधार.

JAMMU KASHMIR VS POJK: जम्मू-कश्मीर में विकास पाकिस्तान को रास नहीं आ रहा है। कश्मीरी युवाओं को बरगलाने में पाकिस्तानी आतंकी नाकाम हो रहे हैं. पहलगाम का हमला भी इसी बौखलाहट का नतीजा है. आतंकी घटना के बाद 7 मई को भारतीय सेना ने आतंकियों के ठिकानों पर हमला कर दिया. ऑपरेशन सिंदूर के ठीक एक महीने बाद पीएम मोदी ने एक और स्ट्राइक की, यह जम्मू-कश्मीर में विकास की स्ट्राइक है. पाकिस्तान के छाती पर सांप लोट रहे होंगे लेकिन पीओजेके के लोगों को फिर से अफसोस हो रहा होगा कि आखिर वे पाक के कब्जे वाले हिस्से में क्यों हैं? भारत में रहने वाले लोग लाइफस्टाइल और सहूलियत को देखकर पहले ही भारत के साथ जाने की मांग करते रहे हैं.

पीओके और कश्मीर के लोगों के जीवन के अंतर को पांच बिंदुओं में समझने की कोशिश करते हैं:

1. राजनीतिक आजादी और लोकतंत्र
पीओके और पूरे पाकिस्तान में लोकतंत्र सिर्फ नाम का है. चुनाव होते जरूर हैं, लेकिन सरकार सेना चुनती है. फौज और ISI का दबाव इतना है कि कोई दमन के खिलाफ आवाज तक नहीं उठा सकता. फौज जब चाहे तब सरकार गिरा देती है और अपनी पसंद की सरकार बना देती है. मसल्न उदाहरण के लिए, अप्रैल 2023 में, पाकिस्तान सेना ने निर्वाचित प्रधानमंत्री सरदार तनवीर इलियास को पद से हटा दिया और चौधरी अनवरुल हक को नियुक्त किया, जो सेना के करीबी माने जाते हैं. पीओके में अभिव्यक्ति की आजादी बहुत ही सीमित है. जिसने भी विरोध किया उसे सलाखों के पीछे डाल दिया जाता है या फिर गायब करा दिया जाता है. वहीं जम्मू-कश्मीर में इसके बिलकुल उल्टा है. यहां आतंकवाद के बावजूद चुनाव होते रहे हैं और वह भी पूरी पारदर्शिता के साथ. मीडिया को आजादी से काम करने की सहूलियत है और अदालत लोगों के अधिकारों की रक्षा करती है. यहां कानून सबके लिए एक समान है.

2. विकास और बुनियादी सुविधाएं
भारत के कश्मीर में बुनियादी सुविधाओं की कोई कमी नहीं है. धारा 370 में बदलाव के बाद से कश्मीर की खुशहाली में बड़ा बदलाव देखा गया है. दशकों से केंद्र से मिलने वाली सुविधाओं से वंचित जम्मू-कश्मीर को अब सब सुविधाएं मिल रही है. कश्मीरी युवाओं ने आतंकी तंजीमों से किनारा करना शुरू कर दिया है. जो युवा आतंक का दामन थामते थे, अब वे रोजगार में व्यस्त हैं. हर घर तक सड़कें, बिजली, इंटरनेट, स्वास्थ्य और शिक्षा के क्षेत्र में लगातार सुधार हो रहा है. पीओके में रहने वाले लोग यह देखकर खुद को कोस रहे होंगे कि वे किन जालिमों के हाथों में फंस गए हैं. विकास परियोजनाओं की हमेशा यहां अंदेखी होती है. पीओके में जो प्रदर्शन हुए हैं उनमें सबसे अहम मुद्दों में से रहे बिजली के बिल. पहले पाकिस्तान की सरकार इन सब पर सब्सिडी देती थी लेकिन फिर सब्सिडी हटा ली गई थी, जिससे प्रति यूनिट बिजली 16 से 22 रुपये पहुंच गई थी. पाकिस्तान में बिजली की आपूर्ति सबसे ज़्यादा हाईड्रो पावर प्रोजेक्ट के जरिए ही होती है. पीओके गिलगित बालटिस्तान में लगे 150 छोटे बड़े हाइड्रो पावर प्लांट कुल मिलाकर 4000 मेगावाट बिजली उत्पादन करते हैं. जिस इलाके में बिजली उत्पादन होता है वहीं के लोगों को बिजली या तो नहीं मिलती या फिर महंगी मिलती है. यह पूरी बिजली जाती है पाकिस्तान की सेना के उन उपजाऊ फार्म लैंड की सिंचाई के लिये जो कि उनके रिटायरमेंट के बाद उन्हें दी जाती है. स्वास्थ्य सेवाएं बेहद खराब हैं. हेल्थ सेक्टर का बुनियादी ढांचा बेहद ही कमजोर है, पीओके में सिर्फ 23 सरकारी अस्पताल हैं. जबकि स्वास्थ्य सुविधाएं जम्मू कश्मीर में काफी बेहतर हैं. 2,800 से ज्यादा तो सरकारी अस्पताल हैं. इसके अलावा AIIMS जैसे संस्थान भी मौजूद हैं.

3. मानवाधिकार और सुरक्षा
पाकिस्तान के मानवाधिकार और सुरक्षा के हालात बहुत खराब हैं. पाकिस्तान मानवाधिकार आयोग (HRCP) ने अपनी सालाना रिपोर्ट में देश में नागरिक स्वतंत्रता में चिंताजनक गिरावट और कानून-व्यवस्था की बिगड़ती स्थिति को उजागर किया है. पीओके में राजनीतिक दमन के कारण बिगड़ती कानून व्यवस्था की स्थिति का उल्लेख किया गया है. प्रदर्शनकारियों पर हिंसक कार्रवाई की गई, जिसमें एक पुलिस अधिकारी सहित चार लोगों की मौत हो गई और बड़े पैमाने पर गिरफ्तारियां हुईं. 2024 में, मुद्रास्फीति और बिजली दरों को लेकर पीओके के कई हिस्सों जैसे समाहनी, सेहांसा, मीरपुर, रावलकोट, खुईराट्टा, तत्तापानी और हट्टियन बाला में हड़ताल का आह्वान किया गया. प्रदर्शन एक बड़े विद्रोह में बदल गया था जिसे सेना और सुरक्षाबलों ने दबा दिया. सरकार या फौज के खिलाफ बोलने पर लोगों को डराया, धमकाया या गिरफ्तार किया जाता है. मीडिया पर नियंत्रण है. स्थानीय और बाहरी मीडिया को स्वतंत्र रूप से रिपोर्टिंग करने की इजाजत नहीं होती. जो सच्चाई दिखाने की कोशिश करते हैं, उन्हें धमकाया या बैन किया जाता है. वहीं, जम्मू-कश्मीर में सुरक्षा बलों की मौजूदगी है, लेकिन सभी नियमों के मुताबिक काम करते हैं. न्यायिक निगरानी भी है, लोग अदालत का रुख कर सकते हैं, मीडिया सवाल उठा सकता है और मानवाधिकार आयोग सक्रिय है.

4. शिक्षा और अर्थव्यवस्था
पीओके में सिर्फ 6 यूनिवर्सिटी हैं, यानी उच्च शिक्षा की सुविधा बहुत ही सीमित है. मजबूरन छात्रों को पलायन करना पड़ता है. पीओके में साक्षरता दर करीब 72 फीसदी है, जो सिर्फ बेसिक शिक्षा का आंकड़ा है. वहीं, जम्मू-कश्मीर में साक्षरता दर 2021 तक लगभग 77.3% है. शिक्षा का बुनियादी ढांचा बहुत बेहतर है. उच्च शिक्षा के लिए जम्मू-कश्मीर में 30 से ज्यादा यूनिवर्सिटी और NIT श्रीनगर और IIM जम्मू सहित कई तकनीकी संस्थान हैं. पीओके की अर्थव्यवस्था ज्यादातर खेती और पर्यटन पर निर्भर है. वहीं, जम्मू-कश्मीर में अर्थव्यवस्था टूरिज्म, खेती और बागबानी, कालीन और अन्य पर आधारित है. पिछले साल 2.35 करोड़ पर्यटक जम्मू-कश्मीर और लद्दाख पहुंचे थे, जो कि एक रिकॉर्ड है. अमरनाथ यात्रा में पिछले साल 5 लाख से ज्यादा श्रद्धालुओं ने दर्शन किए. इकॉनोमिक सर्वे के मुताबिक सालाना प्रतिव्यक्ति आय 1,54,703 रुपये होने की अनुमान है। वहीं पीओके की इससे आधी है.

5. पीओके हाथों में थामते हैं बंदूक, कश्मीर में युवा कर रहे रोजगार
पीओके के लोगों के मन में फौज के प्रति नाराजगी इस बात से भी ज्यादा है क्योंकि जबरन वहां के युवाओं को रोजगार के नाम पर आतंकवाद में धकेला जाता है. बेरोजगारी के चलते मजबूरी में भी आतंक का दामन थामना पड़ता है. पीओके में ऑपरेशन सिंदूर से पहले तक तकरीबन 42 कैंप एक्टिव थे. ऑपरेशन सिंदूर से पहले कुल 110 से 130 आतंकियों के लॉंच पैड पर होने की जानकारी थी. जम्मू-कश्मीर में कुल मिलाकर 120 से ज्यादा आतंकी एक्टिव हैं, जिनमें 110 से ज्यादा पाकिस्तानी आतंकी हैं और बाकी 10 के करीब लोकल आतंकी हैं. पिछले साल मारे गए आतंकियों में से 70 फीसदी पाकिस्तानी थे. पाकिस्तान कश्मीरी युवाओं को बरगलाने की कोशिश करता था, लेकिन अब कश्मीरी युवाओं के पास इन सब के लिए समय ही नहीं है. सभी अपने काम-धंधों में लगे हैं. जम्मू-कश्मीर में युवा आतंकी तंजीमों से किनारा कर रहे हैं. तंजीमों में जो पिछले सालों में भर्ती ट्रिपल डिजिट में होती थी, अब वह सिमट कर सिंगल डिजिट में रह गई है. पिछले साल भी यह आंकड़ा कम था. साल 2022 में यह आंकड़ा 121, साल 2021 में 149 और साल 2020 में 191 युवाओं ने आतंकी तंजीमों को ज्वाइन किया था. लगातार भर्ती का गिरता ग्राफ यह बताने के लिए काफी है कि केंद्र सरकार की नीतियों से अब आम कश्मीरी इत्तेफाक करने लगे हैं.

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