Last Updated:June 06, 2025, 15:42 IST
Operation BlueStar : जून 1984 में जब भारतीय सेना ने स्वर्ण मंदिर में ऑपरेशन ब्लू स्टार किया. तब ये चर्चाएं खूब फैलीं कि भिंडरावाले बच गए हैं.

हाइलाइट्स
ऑपरेशन ब्लू स्टार में भिंडरावाले की मृत्यु हुई थी.भिंडरावाले के जीवित होने की अफवाहें फैलीं.भिंडरावाले की मृत्यु की पुष्टि उनके परिवार ने की.ऑपरेशन ब्लू स्टार में जनरैल सिंह भिंडरावाले की मृत्यु हो गई थी. सेना की कार्रवाई में उनके मारे जाने की पुष्टि शव को देखने के बाद उनके भाई और परिजनों ने की लेकिन इसके बाद भी सालोंसाल लोग इस बात पर विश्वास करते रहे कि भिंडरावाले जिंदा हैं. अमृतसर के गोल्डेन टैंपल में बिछी सुरंगों के रास्ते वह भाग निकले और जिंदा हैं. समय रहने पर सामने आएंगे.
जून 1984 के पहले हफ्ते में भारतीय सेना ने अमृतसर के गोल्डेन टैंपल में खालिस्तान समर्थकों को वहां से निकालने और बड़े पैमाने पर हथियारों को बरामद करने के लिए ऑपरेशऩ ब्लू स्टार चलाया था. खासकर जनरैल सिंह भिंडरावाले को वहां से निकालना सेना की सबसे बड़ी प्राथमिकता थी. 6 जून को.भिंडरावाले की उसमें मृत्यु हो गई.
भिंडरावाले और उनके समर्थक, जिनमें मेजर जनरल शाबेग सिंह (एक पूर्व सैन्य अधिकारी जो उनके सैन्य रणनीतिकार थे) शामिल थे, स्वर्ण मंदिर के अकाल तख्त में डेरा डाले हुए थे. भारतीय सेना ने 1 जून 1984 को परिसर को घेर लिया. 3 जून से गोलाबारी शुरू की. 5-6 जून को मुख्य ऑपरेशन शुरू हुआ, जिसमें टैंक, तोपें और भारी हथियारों का उपयोग किया गया. भारी गोलीबारी और सैन्य कार्रवाई के बीच, भिंडरावाले और उनके कई समर्थक अकाल तख्त के आसपास छिपे हुए थे.
सेना के हाथों कब हुई भिंडरावाले की मृत्यु
आधिकारिक तौर पर भारतीय सेना ने बताया कि 6 जून 1984 को भिंडरावाले अकाल तख्त के बेसमेंट में मुठभेड़ के दौरान मारे गए. सेना के अनुसार भिंडरावाले और उनके समर्थक भारी हथियारों से लैस थे. गोलीबारी में भिंडरावाले को कई गोलियां लगीं, जिससे उनकी मृत्यु हो गई. उनके शव की पहचान बाद में उनके भाई और अन्य लोगों द्वारा की गई. ऑटोप्सी रिपोर्ट में कहा गया कि उन्हें सिर और छाती में कई गोलियां लगी थीं. उनके साथ मेजर जनरल शाबेग सिंह और अन्य प्रमुख सहयोगी भी मारे गए.
लोग क्यों मानते थे कि भिंडरावाले जीवित हैं?
ऑपरेशन ब्लू स्टार के बाद ये अफवाह बड़े पैमाने पर फैली कि भिंडरावाले जीवित हैं और कहीं छिपे हुए हैं. उनके कई समर्थकों के लिए यह विश्वास करना मुश्किल था कि इतना प्रभावशाली नेता इतनी आसानी से मारा जा सकता है. ऑपरेशन ब्लू स्टार के दौरान और बाद में स्वर्ण मंदिर के आसपास कर्फ्यू और सख्त सैन्य नियंत्रण था. मीडिया पर भी पाबंदियां थीं, जिसके कारण सटीक जानकारी का अभाव था. इसी दौरान अफवाहें तेजी से फैलीं, जैसे कि भिंडरावाले सुरंगों के रास्ते भाग गए या उन्हें गुप्त रूप से कहीं और ले जाया गया.
ये दावा किया गया कि वो विदेश में हैं
कुछ लोगों ने माना कि सरकार भिंडरावाले की मृत्यु की कहानी गढ़ रही है ताकि उनके आंदोलन को दबाया जा सके. विदेशों में बसे खालिस्तान समर्थक सिख डायस्पोरा ने, भिंडरावाले की “जीवित” होने की अफवाहों को बढ़ावा दिया. ये उनके आंदोलन को जीवित रखने और समर्थकों को प्रेरित करने का एक तरीका था. कुछ संगठनों ने दावा किया कि भिंडरावाले विदेश में हैं और खालिस्तान की लड़ाई को गुप्त रूप से नेतृत्व कर रहे हैं.
कई सालों तक भिंडरावाले को जिंदा माना जाता रहा
ये कई बरसों तक सिख समुदाय में प्रचलित रही कि जनरैल सिंह भिंडरावाले जिंदा हैं. ये कहानियां बिना सबूत के थीं, लेकिन भावनात्मक और राजनीतिक माहौल ने इन्हें विश्वसनीय बना दिया. इसके बाद 1986 में ऑपरेशन ब्लैक थंडर (प्रथम) और 1988 में ऑपरेशन ब्लैक थंडर सेकेंड के बाद पंजाब में उग्रवादी गतिविधियों पर कड़ा नियंत्रण हुआ. उन्होंने सिख उग्रवाद को कमजोर किया. स्वर्ण मंदिर को फिर से सैन्य गतिविधियों का केंद्र बनने से रोका गया. इसके साथ ही भिंडरावाले के जीवित होने की अफवाहें धीरे-धीरे कम होने लगीं, क्योंकि कोई ठोस सबूत सामने नहीं आया.
क्यों ऐसी कहानियां फैलती रहीं
हालांकि कुछ खालिस्तान समर्थक संगठनों और विदेशी सिख समुदायों में यह धारणा 1980 के दशक के अंत तक बनी रही. यह आंशिक रूप से इसलिए था क्योंकि भिंडरावाले की करिश्माई छवि और सिख समुदाय में केंद्र सरकार के प्रति अविश्वास ने उनकी “अमरता” की कहानियों को जीवित रखा. भिंडरावाले के परिवार विशेष रूप से उनकी पत्नी बिबी प्रीतम कौर और दोनों बेटों (इशर सिंह और इंद्रजीत सिंह) ने भी खालिस्तान आंदोलन से दूरी बनाए रखी. सार्वजनिक रूप से कभी ऐसी अफवाहों का समर्थन नहीं किया. इससे भी धीरे-धीरे यह धारणा कमजोर हुई.
कब ये अफवाहें खत्म हुईं
2000 के पहले दशक तक पंजाब में शांति बहाल हो चुकी थी. मुख्यधारा के सिख समुदाय ने उग्रवाद से दूरी बना ली थी. भिंडरावाले के जीवित होने की अफवाहें ज्यादातर खत्म हो चुकी थीं. ज्यादातर लोग अब यह मानते हैं कि भिंडरावाले मारे गए थे, लेकिन उनकी विरासत को प्रतीकात्मक रूप से जीवित रखा जाता है.
क्या स्वर्ण मंदिर में सुरंगे हैं
अमृतसर के स्वर्ण मंदिर (हरमंदिर साहिब) परिसर में सुरंगों के होने की बात समय-समय पर चर्चाओं में रही है. 1984 में ऑपरेशन ब्लू स्टार के दौरान, यह अफवाह व्यापक रूप से फैली थी कि स्वर्ण मंदिर परिसर में अकाल तख्त के आसपास सुरंगों का एक जाल था. कुछ लोगों का मानना था कि जरनैल सिंह भिंडरावाले और उनके सशस्त्र समर्थकों ने इन सुरंगों का उपयोग हथियारों को छिपाने, गुप्त आवाजाही या भागने के लिए किया.
भारतीय सेना ने ऑपरेशन के दौरान अकाल तख्त और आसपास के क्षेत्रों में भारी हथियारों और बंकरों की खोज की थी, लेकिन सुरंगों के बारे में कोई आधिकारिक पुष्टि नहीं की गई. कुछ सैन्य अधिकारियों ने अनौपचारिक रूप से छोटी भूमिगत संरचनाओं या गुप्त कमरों के होने की बात कही, लेकिन इन्हें “सुरंगों का जाल” कहना सही नहीं होगा.
संजय श्रीवास्तवडिप्टी एडीटर
लेखक न्यूज18 में डिप्टी एडीटर हैं. प्रिंट, टीवी और डिजिटल मीडिया में काम करने का 30 सालों से ज्यादा का अनुभव. लंबे पत्रकारिता जीवन में लोकल रिपोर्टिंग से लेकर खेल पत्रकारिता का अनुभव. रिसर्च जैसे विषयों में खास...और पढ़ें
लेखक न्यूज18 में डिप्टी एडीटर हैं. प्रिंट, टीवी और डिजिटल मीडिया में काम करने का 30 सालों से ज्यादा का अनुभव. लंबे पत्रकारिता जीवन में लोकल रिपोर्टिंग से लेकर खेल पत्रकारिता का अनुभव. रिसर्च जैसे विषयों में खास...
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