Last Updated:September 05, 2025, 10:49 IST
कर्नाटक कैबिनेट ने गुरुवार को बड़ा फैसला लेते हुए 60 आपराधिक मामले वापस लेने की मंजूरी दी है, जिनमें किसान, दलित और राजनीतिक कार्यकर्ताओं पर दर्ज केस शामिल हैं. इसी बैठक में मुख्यमंत्री सिद्धारमैया और उनकी पत्न...और पढ़ें

Karnataka: कर्नाटक कैबिनेट ने गुरुवार को दो अहम और विवादास्पद फैसले लिए. पहला, राज्यभर में दर्ज 60 आपराधिक मामलों को वापस लेने का और दूसरा, मुख्यमंत्री सिद्धारमैया और उनकी पत्नी पार्वती को मैसूरु शहरी विकास प्राधिकरण (MUDA) प्लॉट आवंटन घोटाले से क्लीन चिट देने वाले आयोग की रिपोर्ट को मंजूरी देने का. इन दोनों फैसलों ने राज्य की राजनीति में नई हलचल पैदा कर दी है.
60 आपराधिक मामले होंगे वापस
गुरुवार को हुई कैबिनेट बैठक में तय किया गया कि किसान समर्थक, दलित समर्थक, कन्नड़ समर्थक और हिंदू संगठनों से जुड़े कार्यकर्ताओं पर दर्ज करीब 60 आपराधिक केस वापस लिए जाएंगे. इनमें 2019 का चित्तापुर पथराव मामला भी शामिल है, जब गोवंश ढुलाई रोकने पर पुलिस और स्थानीय युवाओं के बीच झड़प हुई थी.
इसके अलावा, सबसे चर्चित मामला डिप्टी सीएम डी.के. शिवकुमार के समर्थकों का है, जिन्होंने 2019 में ED द्वारा उनकी गिरफ्तारी के बाद कनकपुरा में बसों और सरकारी दफ्तरों पर पथराव किया था.
शिवकुमार के भाई डी.के. सुरेश के समर्थकों पर दर्ज 2012 का मामला भी वापस लिया जा रहा है. उस वक्त उन्होंने आंबेडकर प्रतिमा पर माल्यार्पण कार्यक्रम में सुरेश को शामिल न किए जाने के विरोध में तत्कालीन मुख्यमंत्री का घेराव किया था.
बता दें कि गणेश उत्सव से जुड़े झगड़े, किसान और दलित आंदोलनों के दौरान दर्ज केस भी इसमें शामिल हैं.
दिलचस्प यह है कि गृह विभाग, डीजीपी-आईजीपी, अभियोजन निदेशक और विधि विभाग, सभी ने इस कदम को “जनहित में नहीं” बताते हुए आपत्ति जताई थी. हालांकि, इसके बावजूद कैबिनेट ने राजनीतिक दबाव के बीच सब-कमेटी की सभी सिफारिशें मान ली हैं.
MUDA घोटाले से राहत: CM और पत्नी को क्लीन चिट
इसी बैठक में कैबिनेट ने जस्टिस पी.एन. देसाई आयोग की रिपोर्ट को भी मंजूरी दे दी, जिसमें मुख्यमंत्री सिद्धारमैया और उनकी पत्नी पार्वती को MUDA प्लॉट आवंटन मामले में निर्दोष बताया गया है.
दरअसल, मामला उस समय गरमा गया था जब आरोप लगा था कि पार्वती को केसरें गांव में 3.16 एकड़ जमीन के बदले मैसूरु की पॉश कॉलोनी में 14 प्लॉट मिले थे. आयोग ने पाया कि MUDA और BDA दोनों ही कई बार बिना अधिग्रहण किए किसानों की जमीन का इस्तेमाल करते रहे हैं और मुआवजे के रूप में या तो जमीन या फिर साइट (प्लॉट) देते रहे हैं.
पार्वती के मामले में भी यही प्रक्रिया अपनाई गई. साल 2017 में प्रस्ताव पास हुआ, लेकिन लागू 2022 में हुआ और 50:50 अनुपात में साइटें दी गईं. रिपोर्ट में कहा गया कि कोई ठोस कानून इस प्रक्रिया को गैरकानूनी नहीं ठहराता.
हालांकि, आयोग ने MUDA में कई खामियों की ओर इशारा किया, जैसे लेआउट निर्माण की निगरानी में लापरवाही, प्लॉट आवंटन में अनियमितता और रिकॉर्ड रखने में गड़बड़ी. आयोग ने सभी रिकॉर्ड को स्कैन और डिजिटाइज करने की सिफारिश की है.
राजनीतिक मायने और विश्लेषण
कैबिनेट के इन दोनों फैसलों के दूरगामी राजनीतिक असर माने जा रहे हैं. केस वापसी से सरकार किसान, दलित और कन्नड़ संगठनों को साधने की कोशिश कर रही है, लेकिन विभागों की आपत्ति को नजरअंदाज़ करना सरकार की नीयत पर सवाल उठाता है. विपक्ष इसे ‘राजनीतिक सौदेबाजी’ करार दे सकता है.
वहीं, MUDA केस में क्लीन चिट से मुख्यमंत्री सिद्धारमैया को बड़ी राहत मिली है. यह मामला उनके लिए सबसे बड़ा राजनीतिक संकट बन चुका था क्योंकि इसमें उनकी पत्नी का नाम सीधे जुड़ा था. आयोग की रिपोर्ट ने फिलहाल उन्हें कानूनी मोर्चे पर ढाल दी है. लेकिन यह भी सच है कि MUDA की कार्यप्रणाली और पारदर्शिता को लेकर गंभीर सवाल कायम हैं. विपक्ष इस रिपोर्ट को ‘सरकारी क्लीन चिट’ बताकर मुद्दा बना सकता है.
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First Published :
September 05, 2025, 10:49 IST