Last Updated:June 27, 2025, 14:43 IST
Mamata Banerjee: ममता बनर्जी ने बिहार चुनाव के लिए निर्वाचन आयोग के दिशा निर्देशों को NRC से खतरनाक बताते हुए BJP की साजिश करार दिया है और मुस्लिम, प्रवासी मजदूरों को मतदाता सूची से हटाने का आरोप लगाया.

ममता बनर्जी ने चुनाव आयोग पर गंभीर आरोप लगाए हैं.
हाइलाइट्स
ममता ने बिहार चुनाव नियमों को NRC से खतरनाक बताया.ममता का आरोप, नियम मुस्लिम और प्रवासी वोटरों को हटाने की साजिश.बिहार में चुनाव आयोग के नियमों पर सियासी घमासान.निर्वाचन आयोग की ओर से बिहार विधानसभा चुनाव के लिए मतदाता सूची के विशेष गहन पुनरीक्षण (SIR) संबंधी जारी दिशा निर्देशों ने सियासी घमासान मचा दी है. पश्चिम बंगाल की मुख्यमंत्री ममता बनर्जी ने इन नियमों को राष्ट्रीय नागरिक रजिस्टर (NRC) से खतरनाक करार देते हुए आयोग पर बीजेपी की कठपुतली होने का आरोप लगाया है. ममता का दावा है कि यह कवायद बिहार के बहाने शुरू हुई, लेकिन इसका असली निशाना पश्चिम बंगाल है. बंगला में अगले साल विधानसभा चुनाव होंगे. उन्होंने आशंका जताई कि नए नियम मस्लिम समुदाय, प्रवासी मजदूरों और ग्रामीण वोटरों को मतदाता सूची से हटाने की साजिश हैं. ऐसे में सवाल है कि क्या ममता का यह बयान सियासी चाल है या बंगाल के लिए वाकई खतरे की घंटी?
ममता के लिए NRC बड़ा मुद्दा?
गुरुवार को दीघा में ममता ने प्रेस कॉन्फ्रेंस कर आयोग के नियमों को लोकतंत्र पर हमला बताया. आयोग ने जुलाई 1987 से दिसंबर 2004 के बीच जन्मे मतदाताओं से उनके माता-पिता के जन्म प्रमाणपत्र मांगने का निर्देश दिया है. ममता ने इसे गरीब, अशिक्षित और प्रवासी मजदूरों को मतदाता सूची से हटाने का हथकंडा करार दिया, जो तृणमूल कांग्रेस (TMC) का मजबूत वोट बैंक हैं. उन्होंने कहा कि यह NRC को पिछले दरवाजे से लागू करने की साजिश है. असम में NRC ने 19 लाख लोगों को बेघर किया और अब बंगाल को निशाना बनाया जा रहा है.
पश्चिम बंगाल में 27 फीसदी से अधिक आबादी मुस्लिम है. ये टीएमसी के मजबूत वोट बैंक हैं. ममता ने इमाम भत्ता, मदरसा आधुनिकीकरण और अल्पसंख्यक कल्याण योजनाओं के जरिए मुस्लिम वोटरों को अपने साथ जोड़ रखा है. अगर आयोग के नियमों से ये वोटर मतदाता सूची से हटे, तो टीएमसी की सियासी जमीन खिसक सकती है. ममता ने आरोप लगाया कि बिहार में BJP-JDU की सरकार होने से वहां नियम ढीले होंगे, लेकिन बंगाल में उनके वोटरों को निशाना बनाया जाएगा.
बंगाल में NRC का मुद्दा कितना अहम?
बंगाल में एनआरसी और नागरिकता का मुद्दा हमेशा से संवेदनशील रहा है. 2019 में CAA और NRC के खिलाफ ममता ने बड़े प्रदर्शन किए थे. बांग्लादेश सीमा से सटे मुर्शिदाबाद, मालदा और उत्तर 24 परगना में बंगाली-भाषी मुस्लिम और हिंदू शरणार्थी रहते हैं. 2021 के विधानसभा चुनाव में टीएमसी ने 48% वोट शेयर के साथ 213 सीटें जीतीं, जिसमें मुस्लिम वोट निर्णायक थे. भाजपा ने 38 फीसदी वोट शेयर के साथ 77 सीटें जीतकर ताकत दिखाई. भाजपा ने CAA और अवैध घुसपैठ के मुद्दे को उठाकर हिंदू वोटरों को लुभाया. ममता का आरोप है कि आयोग के नियम BJP की रणनीति का हिस्सा हैं, जो मुस्लिम और प्रवासी वोटरों को हटाकर हिंदू-प्रधान मतदाता सूची बनाना चाहती है.
बिहार में नियमों का प्रभाव
आयोग के नियमों के तहत 2003 की मतदाता सूची में नाम न होने वालों को जन्म तिथि और स्थान का प्रमाण देना होगा. 1987 से 2004 के बीच जन्मे लोगों को माता-पिता के जन्म प्रमाणपत्र जमा करने होंगे. बिहार के 8.1 करोड़ मतदाताओं के लिए यह प्रक्रिया जटिल है. राजद नेता तेजस्वी यादव ने इसे BJP की साजिश बताया. वहीं जेडीय और बीजेपी ने इसे नियमित सत्यापन बताया, लेकिन बिहार में चुनाव नजदीक होने से यह विवादास्पद हो गया है.
2026 के लिए बंगाल का सियासी माहौल
2026 में बंगाल के विधानसभा चुनाव में टीएमसी और बीजेपी के बीच कांटे की टक्कर होंगे. ममता ने 215 सीटों का लक्ष्य रखा है. उनकी सफलता में मुस्लिम वोटरों का बड़ा योगदान है. अगर आयोग के नियम लागू किए जाते हैं तो राज्य में बड़ी संख्या में अवैध वोटरों से नाम कट सकते हैं. ऐसा होने पर सीधे ममता बनर्जी को नुकसान होगा क्योंकि बांग्लादेश से अवैध रूप से भारत में आकर बसे अधिकतर वोटर टीएमसी के सपोर्टर माने जाते हैं. इसी कारण ममता आयोग के नियमों को एनआरसी से जोड़ रही हैं. ताकि वह अपने वोटरों को एकजुट कर सकें और उनको जरूरत पड़े तो आयोग के नियम के खिलाफ सड़क पर उतार सकें.
न्यूज18 हिंदी में बतौर एसोसिएट एडिटर कार्यरत. मीडिया में करीब दो दशक का अनुभव. दैनिक भास्कर, दैनिक जागरण, आईएएनएस, बीबीसी, अमर उजाला, जी समूह सहित कई अन्य संस्थानों में कार्य करने का मौका मिला. माखनलाल यूनिवर्स...और पढ़ें
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