संजय लीला भंसाली की नई मूवी हीरामंडी बनकर तैयार है. इसे 1 मई को रिलीज किया जाएगा. क्या आपको मालूम है कि असल हीरामंडी पाकिस्तान में कहां है और ये क्यों जानी जाती थी. क्यों इसे यहां बसाया गया. जानते हैं इस जगह के बारे में, जिस पर भंसाली ने मूवी बना दी.
News18 हिंदीLast Updated :March 28, 2024, 13:25 ISTAuthorSanjay Srivastava
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भारत के निर्माता निर्देशक संजय लीला भंसाली ने जिस मूवी को अपना ड्रीम प्रोजेक्ट बताया था, वो फिल्म हीरामंडी बनकर तैयार है. इसकी रिलीज डेट 01 मई है. हालांकि जब संजय भंसाली ने इस फिल्म को बनाना शुरू किया था तो इस पर विवाद छिड़ गया था. हीरा मंडी दरअसल अब पाकिस्तान में है. ये लाहौर की वो जगह है, जिसे रेडलाइट एरिया के नाम से जानते हैं. इसे शाही मोहल्ला भी कहा जाता है. जब भंसाली ने ये फिल्म बनानी शुरू की तो भारत ने भी कई लोगों ने इस नाक-भौं सिकोड़ी तो पाकिस्तान के फिल्म जगत लोग नाराज हो उठे, उनका कहना था कि पाकिस्तान की किसी जगह पर भंसाली कैसे फिल्म बना सकते हैं. वैसे हीरा मंडी की अपना एक लंबा इतिहास रहा है. यहां की तवायफें अपने फन के लिए बहुत शोहरत पाती रही हैं. वैसे अब यहां भी सबकुछ बदल चुका है. इस जगह को वेश्यावृत्ति करने वाली जगह के तौर पर ज्यादा जानते हैं.
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हीरा मंडी को अगर शाब्दिक अर्थों में देखें तो इसका मतलब होगा हीरों का बाजार या डायमंड मार्केट. लेकिन इसका हीरों के किसी बाजार या बिक्री से लेना देना नहीं है. हालांकि कुछ लोगों को ये भी लगता रहा है कि शायद खूबसूरत लड़कियों के चलते इसका नाम हीरा मंडी पड़ा होगा. इसे शाही मोहल्ला भी कहा जाता है. ये लाहौर का बहुत प्रसिद्ध और ऐतिहासिक इलाका है. इसका नाम सिख राजा रणजीत सिंह के एक मंत्री हीरा सिंह के नाम पर पड़ा. जिसने यहां पर अनाज मंडी का निर्माण कराया.
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हीरा सिंह ने यहां मंडी तो बनाई ही साथ ही ऐतिहासिक तौर पर प्रसिद्ध इस इलाके में फिर से तवायफों को भी बसाने का काम किया. तब राजा रणजीत सिंह ने भी मुगल काल में यहां बने तवायफ इलाके को संरक्षित करने का काम किया. ये इलाका लाहौर का बीच का क्षेत्र है. ये 15वीं और 16वीं सदी में मुगल काल में तवायफ कल्चर के तौर पर पहचान बनाने लगा था. अब यहां वेश्यावृत्ति होती है. इस बाजार में जगह - जगह से लड़कियां लाई जाती हैं. इसे शाही मोहल्ला इसलिए भी कहा जाने लगा क्योंकि ये लाहौर किला के एकदम बगल में है.
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मुगल काल में हीरामंडी तवायफों का बड़ा केंद्र बना. मुगल अफगानिस्तान और उजबेकिस्तान से महिलाएं खरीदकर लाते थे. यहां उन्हें रखकर उनसे डांस और मनोरंजन के काम लेते थे. हालांकि तब तवायफों का रिश्ता संगीत, नृत्य, तहजीब, नफासत और कला से जोड़कर देखा जाता था. समाज के उच्चवर्ग के लोग उनके कद्रदान होते थे. ये बड़े उस्तादों की संगत में मुजरे की महफिलें सजाया करती थीं. इसके बाद भारतीय उपमहाद्वीप के दूसरे इलाकों से भी महिलाएं यहां लाई जाने लगीं. वो यहां मुगलों के सामने भारतीय क्लासिकल डांस की नुमाइश करती थीं. तब ये कहा जाता था कि ये देश की सबसे बड़ी तवायफ मंडी है.
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जब मुगल दौर ढलने लगा तो लाहौर कई बार विदेशी आक्रमणारियों का निशाने पर आय़ा. अफगान आक्रमणकारियों ने यहां के तवायफखानों को उजाड़ दिया. वो यहां की महिलाओं को जबरन उठाकर ले गए. इसके बाद इस इलाके में वेश्यावृत्ति भी पनपने लगी. जब ब्रिटिश राज कायम हुआ तो उन्होंने हीरा मंडी को वेश्यावृत्ति की जगह माना. इस बाजार में महिलाओं और खुसरा यानि हिजड़ों का डांस होने लगा. लोग उसे देखने और दिल बहलाव के लिए आने लगे. ब्रिटिश राज से लेकर अब से कुछ साल पहले तक लाहौर का ये इलाका वेश्यावृत्ति के तौर पर ही जाना जाता था. इस इलाके में काफी संख्या में नाच-गाना करने वाले हिजड़े देखे जाते थे.
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ब्रिटिश राज में यहां सैनिक मनोरंजन के लिए आने लगे. धीरे धीरे लाहौर कुछ और इलाके भी रेडलाइट के तौर पर विकसित हुए. हालांकि उसी दौर में सिख राज में तवायफों को फिर बसाने की कोशिश हुई लेकिन लाहौर के ईस्ट इंडिया कंपनी के तहत आने के बाद चीजें बदलने लगीं. ये मूलतौर पर रेडलाइट एरिया बन गया. 1947 के बाद सरकार ने इस इलाके में आने वाले ग्राहकों के लिए सुविधाएं बढ़ाने की कोशिश की लेकिन कामयाबी नहीं मिल पाई.
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दिन के समय हीरा मंडी पाकिस्तान के किसी सामान्य बाजार की तरह ही होता है, जहां ग्राउंड फ्लोर की दुकानों पर तमाम तरह के सामान, बढ़िया खाना और संगीत के उपकरण मिलते हैं. शाम होते ही दुकानों के ऊपर की मंजिलों पर बने चकलाघर आबाद होने लगते हैं. हीरा मंडी कहते ही इसका भान वेश्यावृत्ति से होने लगता है. बालीवुड की फिल्म कलंक में भी हीरामंडी का जिक्र हुआ है. अब ये देखने वाली बात होगी कि संजय लीला भंसाली की फिल्म हीरा मंडी में यहां की कोई सी कहानी कही जाती है और इसे किस तरह दिखाया जाता है.