Last Updated:December 11, 2025, 16:30 IST
Sudanshu Trivedi Parliament Speech: भाजपा सांसद डॉ. सुधांशु त्रिवेदी ने संसद में इतिहास की उन परतों को उधेड़ा है, जिन पर सालों से धूल जमी थी. पूर्वी यूरोप से जापान तक लोकतंत्र की पड़ताल करते हुए त्रिवेदी ने पंडित जवाहरलाल नेहरू द्वारा एडविना माउंटबेटन को लिखे एक कथित पत्र का जिक्र कर सियासी गलियारों में हलचल मचा दी है.आखिर 1952 के चुनाव में डॉ. अंबेडकर की हार और नेहरू के उस पत्र का क्या कनेक्शन था?
सुधांशु त्रिवेदी राज्यसभा में अपनी बात रखते हुए.चुनाव सुधार पर चर्चा के दौरान राज्यसभा में बीजेपी सांसद सुधांशु त्रिवेदी ने गुरुवार को इतिहास का अनसुना पन्ना खाेला. भारतीय लोकतंत्र को सबसे जीवंत लोकतंत्र बताते हुए सुधांशु त्रिवेदी ने कांग्रेस के शासनकाल और विशेष रूप से देश के पहले प्रधानमंत्री पंडित जवाहरलाल नेहरू के एक पत्र का जिक्र करते हुए इतिहास की कई परतों को उधेड़ दिया. सुधांशु त्रिवेदी ने सवाल उठाया कि आखिर पंडित नेहरू ने भारत में हुए चुनाव को लेकर एडविना माउंटबेटन को पत्र क्यों लिखा था? और उस पत्र में डॉ. बाबासाहेब अंबेडकर की हार को लेकर क्या कहा गया था?
सदन में अपनी बात रखते हुए सुधांशु त्रिवेदी ने 1952 के पहले आम चुनाव का जिक्र किया. यह वह दौर था जब भारत अपने लोकतांत्रिक ढांचे को आकार दे रहा था. इस चुनाव में संविधान निर्माता डॉ. भीमराव अंबेडकर भी बॉम्बे (अब मुंबई) नार्थ सीट से चुनावी मैदान में थे. लेकिन, उन्हें इस चुनाव में हार का सामना करना पड़ा था. उन्हें हराने वाले कोई और नहीं बल्कि कांग्रेस के उम्मीदवार नारायण काजोलकर थे. डॉ. त्रिवेदी ने दावा किया कि 34000 वोट रद्द करके उन्हें 15000 वोट से हरा दिया गया. हैरानी की बात, इसके बाद तत्कालीन प्रधानमंत्री पंडित नेहरू ने एडविना माउंटबेटन को एक पत्र लिखा था. त्रिवेदी के अनुसार, इस पत्र का मजमून बेहद चौंकाने वाला था. सुधांशु त्रिवेदी ने सदन को बताया कि नेहरू ने माउंटबेटन को लिखा था, ‘बॉम्बे निर्वाचन क्षेत्र में हमारी जीत स्वीकार कर ली गई है. और अंबेडकर डॉप हो गए.’
‘अंबेडकर हिंदू कम्युनिस्टों के साथ हाथ मिला रहे’
सुधांशु त्रिवेदी ने कहा, उन्हें तब खुशी हुई थी कि डॉ. अंबेडकर चुनाव हार गए हैं. भाजपा सांसद ने कहा कि नेहरू ने कथित तौर पर यह भी लिखा था कि डॉ. अंबेडकर हिंदू कम्युनिस्टों के साथ हाथ मिला रहे हैं. डॉ. त्रिवेदी का तर्क था कि यह घटनाक्रम दर्शाता है कि उस समय कांग्रेस का शीर्ष नेतृत्व डॉ. अंबेडकर के प्रति किस तरह का दृष्टिकोण रखता था.
पहली ‘इलेक्शन पिटिशन’
सुधांशु त्रिवेदी याद दिलाया कि भारत के इतिहास में पहली ‘इलेक्शन पिटिशन’ यानी चुनावी याचिका किसी और ने नहीं, बल्कि स्वयं डॉ. बाबासाहेब अंबेडकर ने दायर की थी, क्योंकि उन्हें चुनाव प्रक्रिया और अपनी हार पर संदेह था. त्रिवेदी ने इस ऐतिहासिक घटना के जरिए कांग्रेस पर निशाना साधते हुए कहा कि जो पार्टी आज लोकतंत्र और संविधान बचाने की दुहाई देती है, उसने अपने शासनकाल में संविधान निर्माता के साथ कैसा व्यवहार किया था, यह इतिहास के पन्नों में दर्ज है.
पूर्वी यूरोप से जापान तक… केवल भारत ही जीवंत लोकतंत्र
सुधांशु त्रिवेदी ने कहा, यदि हम पूर्वी यूरोप से पूर्व की ओर चलें और जापान तक देखें, तो इस विशाल भू-भाग में केवल तीन ही वास्तविक लोकतंत्र नजर आते हैं- भारत, ऑस्ट्रेलिया और जापान. इसमें भी केवल भारत ही एकमात्र ऐसा देश है जहां एक जीवंत लोकतंत्र है. अपने दावे को पुख्ता करने के लिए उन्होंने ‘फ्रीडम हाउस’ की एक रिपोर्ट का हवाला दिया. डॉ. त्रिवेदी ने बताया कि इस रिपोर्ट में हिंदू धर्म और लोकतंत्र के बीच एक सीधा संबंध स्थापित किया गया है, जो यह दर्शाता है कि भारतीय संस्कृति और लोकतांत्रिक मूल्य एक-दूसरे के पूरक हैं.
बैलेट बॉक्स की लूट से ईवीएम तक: चुनावी धांधली का इतिहास
सुधांशु त्रिवेदी ने आपातकाल के दौर को याद करते हुए कहा कि यह सब इंदिरा गांधी की चुनावी जीत पर अदालत में सवाल उठाए जाने का ही परिणाम था. उन्होंने सदन को याद दिलाया कि देश में ईवीएम (इलेक्ट्रॉनिक वोटिंग मशीन) की शुरुआत राजीव गांधी के कार्यकाल में हुई थी, लेकिन कांग्रेस के पतन का कारण तकनीक नहीं, बल्कि पारदर्शिता थी.
सुधांशु त्रिवेदी ने कहा, कांग्रेस का दौर तब खत्म हुआ जब देश में सीसीटीवी कैमरे आए, वोटर आईडी कार्ड लागू हुए, मीडिया स्वतंत्र हुआ, न्यायपालिका निष्पक्ष हुई और साक्षरता दर 50% के पार पहुंची. कांग्रेस को वोट तब मिलते थे जब मतपेटियां लूटी जाती थीं. उन्होंने कहा, वो दौर था जब बूथ कैप्चरिंग होती थी, गोलियां चलती थीं और लोग मारे जाते थे. तकनीक और जागरूकता ने उस लूट तंत्र को खत्म कर दिया है और अब वह दौर कभी वापस नहीं आएगा.
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Delhi,Delhi,Delhi
First Published :
December 11, 2025, 16:15 IST

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