PM मोदी से क्यों चिढ़ा हुआ है पश्चिमी मीडिया का एक तबका?

4 weeks ago

नई दिल्ली. देश में शुक्रवार को सात चरण के लोकसभा चुनावों का पहला चरण सफलतापूर्वक संपन्न हो गया. इस बीच पश्चिमी मीडिया के एक वर्ग में सुनियोजित ढंग से भाजपा और मोदी विरोधी अभियान जारी है. देश की जीवंत विविधता को दर्शाता अद्वितीय पैमाने पर आयोजित आम चुनाव लोकतंत्र के सबसे बड़े त्योहार के रूप में माना जाता है, जिसमें दुनिया में सबसे ज्यादा 96.88 करोड़ पंजीकृत मतदाता शामिल हो रहे हैं.

चुनावों के स्वतंत्र, निष्पक्ष और शांतिपूर्ण संचालन की सराहना करने की बजाय, कुछ वैश्विक मीडिया आउटलेट प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और एनडीए सरकार के खिलाफ अपना हमला जारी रखे हुए हैं, जिन्हें लगातार दो बार पूर्ण बहुमत देकर जनता ने 10 साल सत्ता की बागडोर थमाई थी.

‘लोकतांत्रिक अधिकारों पर नए हमलों की तैयारी कर रहे हैं नरेंद्र मोदी’ और ‘भारत का चुनाव : असहमति को अवैध ठहराकर जीत तय करना लोकतंत्र को नुकसान पहुंचाता है’ से लेकर ‘क्या भारत के चुनाव नतीजों से असहिष्णुता बढ़ेगी’ और ‘नरेंद्र मोदी के साथ या उनके बिना भी भारत तेजी से विकास कर सकता है’ जैसे कुछ शीर्षकों के साथ पिछले कुछ सप्ताह में कुछ प्रमुख पश्चिमी समाचार संगठनों ने कई एकतरफा लेख प्रकाशित किये हैं.

न्यूयॉर्क स्थित एक अमेरिकी समाचार सेवा द्वारा इस सप्ताह की शुरुआत में ‘मोदी भारत के चुनाव को अपने बारे में बना रहे हैं’ शीर्षक से प्रकाशित एक लेख में कहा गया है, ”भारत के लोकतंत्र को जीवित रखने के लिए मोदी की कोई गारंटी नहीं है.” शायद भारत के अंदर और बाहर पीएम मोदी की भारी लोकप्रियता से चिढ़कर विदेशी मीडिया का एक वर्ग भी वोटिंग मशीनों पर सवाल उठा रहा है.

अब तक सत्तारूढ़ सरकार के खिलाफ अपना गोला-बारूद खाली कर लेने के बाद, कुछ समाचार आउटलेट्स ने ‘प्रगतिशील दक्षिण मोदी को कर रहा खारिज’ शीर्षक से कवरेज करके विभाजनकारी कार्ड खेलने का प्रयास किया है. कुछ देशों के प्रशासनों द्वारा आयोजित नियमित समाचार ब्रीफिंग में भारत के आंतरिक मुद्दों को उठाने के कई प्रयास भी किए गए हैं.

विश्लेषकों का मानना है कि इस तरह की कवरेज केवल पश्चिमी मीडिया में बढ़ती निराशा को दर्शाती है क्योंकि जून में पीएम मोदी के लगातार तीसरी बार सत्ता में लौटने की व्यापक उम्मीद है. इस महीने की शुरुआत में, न्यूजवीक के साथ एक साक्षात्कार में, प्रधानमंत्री मोदी ने उन लोगों को आड़े हाथों लिया जो उनकी सरकार पर धार्मिक भेदभाव में शामिल होने का आरोप लगाते हैं.

उन्होंने कहा, “ये कुछ लोगों के सामान्य रूप हैं जो अपने दायरे से बाहर के लोगों से मिलने की जहमत नहीं उठाते. यहां तक कि भारत के अल्पसंख्यक भी अब इस कथानक को स्वीकार नहीं करते हैं. सभी धर्मों के अल्पसंख्यक – चाहे वे मुस्लिम हों, ईसाई हों, बौद्ध हों, सिख हों, जैन हों या यहां तक कि पारसी जैसे सूक्ष्म-अल्पसंख्यक भी भारत में खुशी से रह रहे हैं और बढ़ रहे हैं.”

कई अपवाद भी हैं, जिनमें कुछ अप्रत्याशित क्षेत्रों से भी शामिल हैं. पिछले साल, एक दुर्लभ प्रशंसा में, चीनी सरकार के मुखपत्र ग्लोबल टाइम्स ने पीएम मोदी के नेतृत्व में आर्थिक विकास, सामाजिक शासन और विदेश नीति में भारत की महत्वपूर्ण प्रगति की प्रशंसा करते हुए एक लेख प्रकाशित किया था.

फुडन यूनिवर्सिटी, शंघाई में सेंटर फॉर साउथ एशियन स्टडीज के निदेशक झांग जियाडोंग द्वारा लिखे गए लेख में भारत की मजबूत आर्थिक वृद्धि, शहरी प्रशासन में सुधार और अंतर्राष्ट्रीय संबंधों के प्रति दृष्टिकोण में बदलाव, विशेष रूप से चीन के साथ, को स्वीकार किया गया था.

जियाडोंग ने लिखा, “उदाहरण के लिए, चीन और भारत के बीच व्यापार असंतुलन पर चर्चा करते समय, भारतीय प्रतिनिधि पहले मुख्य रूप से व्यापार असंतुलन को कम करने के लिए चीन के उपायों पर ध्यान केंद्रित करते थे, लेकिन अब वे भारत की निर्यात क्षमता पर अधिक जोर दे रहे हैं.”

.

Tags: Loksabha Election 2024, Loksabha Elections, Narendra modi

FIRST PUBLISHED :

April 20, 2024, 22:22 IST

Read Full Article at Source