SCO 2025 की मीटिंग के बाद ये बात लगने लगी है कि अब भारत की दिलचस्पी इस संगठन से खत्म हो रही है. चर्चाएं ये भी हैं कि भारत इस आर्गनाइजेशन से हाथ खींच सकता है. पिछले साल भी शंघाई कोआपरेशन आर्गनाइजेशन की मीटिंग के बाद भारत ने इस संगठन में अपने हितों को अनदेखा करने के बाद पाकिस्तान-चीन की बढ़ती धुरी को इसमें महसूस किया था.
वर्ष 2025 में चीन के किंगदुआ में हुई समिट के आखिरी दिन जो संयुक्त घोषणा पत्र जारी किया गया, जिसमें भारत ने दस्तखत करने से इनकार कर दिया, उसने भी भारत को अहसास कराया कि ये संगठन अब चीन-पाक धुरी के अधीन हो चुका है. भारत की सुरक्षा चिंताएं और हित लगातार हाशिए पर डाले जा रहे हैं.
सवाल – ऐसी स्थिति में क्या भारत इससे हटेगा?
– नहीं, भारत के फिलहाल इससे हटेगा तो नहीं लेकिन वह अपनी दिलचस्पी इसमें कम करेगा और इसमें बहुत सीमित तौर पर इन्वाल्व हो सकता है. एक्सपर्ट का मानना है कि भारत अब या तो SCO में अपनी भूमिका सीमित करेगा या इसे केवल कूटनीतिक मंच के तौर पर इस्तेमाल करेगा जबकि असली फोकस क्वाड, I2U2, Indo-Pacific और अपने स्वतंत्र द्विपक्षीय संबंधों पर रहेगा.
पिछले साल भी SCO 2024 मीटिंग के बाद भी भारत ने नाराज़गी जाहिर की थी और संगठन में अपनी प्राथमिकताओं के न माने जाने पर गहरी असंतुष्टि वाली प्रतिक्रिया दी थी. इसी वजह से ये चर्चा तेज है कि भारत या तो SCO में अपनी भूमिका सीमित करेगा या भविष्य में इससे बाहर निकलने पर विचार कर सकता है. भारत अब अपने इंडो-पैसिफिक और वैश्विक मंचों को ज्यादा महत्व दे रहा है, जहां चीन की मोनोपॉली न हो.SCO जैसे संगठन में भारत की रणनीतिक प्राथमिकताएं पूरी नहीं हो रहीं
सवाल – क्या अब एससीओ की मीटिंग में पिछले दो सालों से चीन और पाकिस्तान की धुरी ज्यादा साफ तरीके से नजर आ रही है?
– हां ऐसा है. पिछले दो सालों से मीटिंग के आखिर में जारी हो रहा संयुक्त घोषणा पत्र साफतौर पर इस ओर इशारा कर रहा है. वर्ष 2024 में एससीओ की मीटिंग अस्ताना, कजाकिस्तान में हुई. तब भारत ने कई अहम घोषणापत्र बिंदुओं पर अपना ऐतराज़ दर्ज कराया था. खासकर आतंकवाद को लेकर प्रस्ताव में पाकिस्तान आधारित आतंकी संगठनों का नाम नहीं लिए जाने और आतंकवाद पर चीन-पाक के ढीले रुख से भारत नाराज़ रहा.
इस साल SCO डेक्लरेशन में जफराबाद एक्सप्रेस ट्रेन आतंकी हमले (ईरान) का ज़िक्र किया गया, जबकि हाल ही में कश्मीर के पहलगाम आतंकी हमले का कोई उल्लेख नहीं किया गया. भारत ने इस पर विरोध जताया. एससीओ 2025 के संयुक्त घोषणा पत्र में भी भारत को चीन और पाकिस्तान की धुरी साफ नजर आई. भारतीय हितों की उपेक्षा साफ दिखाई दी.
सवाल – SCO 2025 के संयुक्त घोषणा पत्र में भारत को क्या दिक्कतें रहीं?
– आतंकवाद पर कमजोर भाषा रही. घोषणा पत्र में आतंकवाद के ख़िलाफ़ तो सामान्य बयान था लेकिन न पाकिस्तान आधारित आतंकी संगठनों का नाम लिया गया और ना कश्मीर में हुए हालिया हमलों का जिक्र था. भारत लगातार चाहता रहा कि लश्कर-ए-तैयबा, जैश-ए-मोहम्मद जैसे संगठनों को नाम लेकर निंदा की जाए लेकिन चीन और पाकिस्तान ने विरोध किया. भारत के प्रतिनिधि मंडल ने इस पर आपत्ति भी दर्ज कराई.
सवाल – क्या इस मंच के जरिए चीन अपने बेल्ट एंड रोड प्रोजेक्ट को प्रोमोट ज्यादा कर रहा है?
– लगता तो ऐसा ही है. चीन इस मंच के जरिए बेल्ट एंड रोड अभियान (BRI) का अप्रत्यक्ष समर्थन करता हुआ लग रहा है. घोषणा पत्र में फिर “संपर्क और इन्फ्रास्ट्रक्चर सहयोग” की बात हुई, जो चीन के BRI प्रोजेक्ट को ताकत देने वाली भाषा थी. भारत BRI का खुला विरोध करता है क्योंकि इसका चीन-पाक आर्थिक गलियारा (CPEC) कश्मीर के कब्जे वाले इलाके से गुजरता है.
सवाल – क्या चीन और पाकिस्तान की जोड़ी इस मंच का इस्तेमाल अपने हितों के लिए कर रही है?
– हां. अब यह साफ़ है कि SCO में चीन और पाकिस्तान की जोड़ी अपने हितों के मुताबिक मंच का इस्तेमाल कर रही है. भारत के लिए यह मंच अब रणनीतिक और कूटनीतिक तौर पर सीमित उपयोग का रह गया है. SCO 2025 की संयुक्त घोषणा पत्र ने भारत को फिर यह अहसास कराया कि
संगठन अब चीन-पाक धुरी के अधीन है. भारत की सुरक्षा चिंताएं और हित लगातार हाशिए पर डाले जा रहे हैं.
सवाल – क्यों उठ रही हैं ‘भारत के बाहर निकलने’ की चर्चाएं?
– SCO में चीन और पाकिस्तान मिलकर भारत विरोधी माहौल बनाते हैं. भारत के सुरक्षा और कश्मीर से जुड़े मुद्दों को दबाने की कोशिश होती है. हालांकि भारत के इसको छोड़ने की संभावना अभी कम है, क्योंकि इससे चीन-पाक को खुली जगह मिल जाएगी. भारत “हिस्सा तो रहेगा, लेकिन दिल से नहीं.”
सवाल – क्या ब्रिक्स को लेकर भी भारत की स्थिति यही है?
– हालांकि भारत ने औपचारिक रूप से ब्रिक्स (ब्राजील, रूस, भारत, चीन, दक्षिण अफ्रीका) या एससीओ (शंघाई सहयोग संगठन) में वापसी या अरुचि का संकेत नहीं दिया है, लेकिन इस बात के बढ़ते प्रमाण हैं कि नई दिल्ली का उत्साह ठंडा पड़ गया है, जिसका मुख्य कारण चीन के साथ उसकी रणनीतिक प्रतिद्वंद्विता और अनसुलझे सीमा तनाव हैं. ब्रिक्स और एससीओ दोनों ही चीन से बहुत प्रभावित हैं. ब्रिक्स में चीन की आर्थिक ताकत भारत की चिंताओं को दरकिनार कर देती है.
सवाल – भारत अगर एससीओ से हट जाता है तो इस पर क्या असर पड़ेगा?
– इससे भारत कई फायदों से वंचित रह जाएगा. दरअसल SCO के रीजनल एंटी टेरेरिस्ट स्ट्रक्चर यानि RATS से भारत को इंटेलिजेंस और आतंकवाद विरोधी डेटा शेयरिंग का फायदा मिलता है, उससे वो बाहर हो जाएगा. इससे पाकिस्तान व अफगानिस्तान से जुड़ी गतिविधियों पर निगरानी में कुछ कमी आएगी. सेंट्रल एशिया तक रणनीतिक पहुंच कमजोर होगी. कज़ाख़स्तान, ताजिकिस्तान, उज़्बेकिस्तान जैसे संसाधन संपन्न और सामरिक महत्त्व वाले देशों तक भारत की कूटनीतिक और आर्थिक पहुंच कमजोर पड़ेगी.
SCO छोड़ने से ईरान और रूस के साथ बहुपक्षीय सहयोग का एक मंच कम हो जाएगा. SCO में रहकर भारत अभी चीन-पाक गठजोड़ का काउंटर-नेरेटिव पेश कर पाता है, जो वो नहीं कर पाएगा.
सवाल – अगर भारत हटता है तो एससीओ पर क्या असर पड़ेगा?
– संगठन की प्रतिष्ठा को धक्का लगेगा. दुनिया की सबसे तेज़ी से बढ़ती बड़ी अर्थव्यवस्था और रणनीतिक शक्ति भारत के बाहर जाने से SCO की अंतरराष्ट्रीय वैधता को झटका लगेगा. सेंट्रल एशिया और रूस के लिए भारत एक अहम ऊर्जा और व्यापार बाज़ार है, SCO के ज़रिए जो संपर्क बन रहा था, उसपर असर पड़ेगा. अभी SCO में पाकिस्तान-चीन गुट के खिलाफ भारत संतुलन का काम करता है. भारत के हटने से यह गुट हावी हो जाएगा.