Last Updated:September 25, 2025, 15:26 IST
CDS Anil Chauhan on 1962 War: 1962 के भारत-चीन युद्ध में वायुसेना का इस्तेमाल होता तो नतीजे कुछ और ही होते... यह बयान देकर सीडीएस अनिल चौहान ने 60 साल पुरानी बहस को एक बार फिर हवा दे दी है. इस विषय पर किसने क्या कहा, जानने के लिए पढ़ें आगे.

CDS Chauhan Spoke on Himalayan Blunder: चीफ ऑफ डिफेंस स्टाफ (CDS) जनरल अनिल चौहान ने हाल ही में एक ऐसा बयान दिया है, जिसने 1962 के भारत-चीन युद्ध को लेकर पुरानी बहस को फिर से हवा दे दी है. उन्होंने कहा कि अगर उस वक्त भारतीय वायुसेना का आक्रामक तरीके से इस्तेमाल किया जाता, तो चीनी हमले को रोकने में काफी मदद मिल सकती थी. सीडीएस अनिल चौहान के इस बयान ने पूर्व सैन्य अधिकारियों की उन बातों पर मुहर लगा दिया है, जिन्होंने समय-समय पर इस युद्ध में भारतीय वायुसेना के इस्तेमाल न होने को लेकर सवाल उठाए थे.
इस मुद्दे पर सवाल तत्कालीन प्रधानमंत्री जवाहर लाल नहेरू की हिचक के साथ-साथ यह भी था कि आखिर क्यों इंडियन एयरफोर्फ को 1962 के भारत-चीन युद्ध में सिर्फ सप्लाई और ट्रांसपोर्ट तक सीमित रखा गया? दरअसल, 1962 का भारत-चीन युद्ध भारत के लिए एक दुखद अध्याय रहा है. अक्साई चिन और नेफा (अब अरुणाचल प्रदेश) में चीनी सेना ने भारतीय सेना को भारी नुकसान पहुंचाया था. उस वक्त इंडियन एयरफोर्स के पास मिग-21 जैसे सुपरसोनिक फाइटर जेट्स और हिमालय के करीब एयरबेस थे, जो चीनी सेना की तुलना में बड़ा टैक्टिकल फायदा दे सकते थे.
लेकिन तत्कालीन नेहरू सरकार ने इंडियन एयरफोर्स को सिर्फ ट्रांसपोर्ट और लॉजिस्टिक्स तक सीमित रखा. इसका नतीजा यह हुआ कि भारतीय सेना को सप्लाई लाइनों की कमी और बैकअप के बिना लड़ना पड़ा. जनरल चौहान का ताजा बयान यही कहता है कि अगर इंडियन एयरफोर्स को क्लोज एयर सपोर्ट या इंटरडिक्शन जैसे रोल में यूज किया जाता, तो चीनी सेना की सप्लाई लाइन कट सकती थी और इस युद्ध का रुख बदल सकता था. ऐसा नहीं है कि नेहरू सरकार के इस फैसले पर यह बात पहली बार कही गई हो. समय-समय पर भारतीय सेना से जुड़े रहे तमाम अफसर इस मुद्दे पर अपनी बात बेबाकी से रख चुके हैं.
नेहरू सरकार के इस फैसले पर पहले कब-कब, किसने क्या कहा?
क्यों नहीं हुआ इंडियन एयरफोर्स का इस्तेमाल?
1962 के भारत-चीन युद्ध के दौरान आखिर इंडियन एयरफोर्स को बैटल में क्यों नहीं उतारा गया, इस सवाल बीते 60 सालों से भारतीय सेना में रह-रह कर पूछे जाते रहे हैं. कहा जाता है कि आईबी ने चीनी वायुसेना की ताकत को ओवरएस्टिमेट किया. आईबी का मानना था कि अगर इंडियन एयरफोर्स ने हमला किया, तो चीन जवाबी हमले में भारतीय शहरों को टारगेट कर सकता था. वहीं, एयरफोर्स को बैटल में न उतारने को लेकर पॉलिटिकल हिचक को भी एक वजह माना जाता रहा है. कई सैन्य विशेषज्ञों का मानना है कि नेहरू सरकार युद्ध को और बढ़ाने से डर रही थी. बची खुची कसर यूएस के तत्कालीन एंबेस्डर गैल्ब्रेथ ने पूरी कर दी थी. गैल्ब्रेथ ने भारत को आक्रामक कदम न उठाने की सलाह दी थी, ताकि युद्ध और न बिगड़े.
क्या होता अगर एयरफोर्स का मिल जाता साथ?
सैन्य विशेषज्ञों का मानना है कि इंडियन एयरफोर्स की ताकत उस वक्त चीनी सेना की कमजोर सप्लाई लाइनों को आसानी से तोड़ सकती थी. 1965 और 1971 के युद्धों में इंडियन एयरफोर्स की सफलता ने भी ये साबित किया कि हवाई ताकत का सही इस्तेमाल गेम-चेंजर हो सकता है. जनरल चौहान का बयान न सिर्फ पुरानी गलतियों को याद दिलाते हुए यह बताया है कि मॉडर्न वॉरफेयर में एयर फोर्स का रोल कितना क्रिटिकल है.
Anoop Kumar MishraAssistant Editor
Anoop Kumar Mishra is associated with News18 Digital for the last 6 years and is working on the post of Assistant Editor. He writes on Health, aviation and Defence sector. He also covers development related to ...और पढ़ें
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First Published :
September 25, 2025, 15:26 IST