सियासत की 'नई किताब' लिखने को फेंक दिया 'ज्ञान',कम से कम 'कलम की कदर' तो करते!

3 weeks ago

पटना. तेजस्वी यादव की ‘बिहार अधिकार यात्रा’ ने ठीक उसी तरह सुर्खियां बटोरीं जैसी राहुल गांधी की ‘वोटर अधिकार यात्रा’ की चर्चा होती रही थी. राहुल की बिहार यात्रा में पीएम मोदी की मां के लिए कहे गए अपशब्द ने माहौल गर्मा दिया और उनका ‘वोट चोरी’ के मुद्दे वाला अभियान विवादों में पड़कर पटरी से नीचे उतर गया. अब तेजस्वी यादव की बिहार यात्रा भी उनकी एक हरकत के कारण सवालों में आ गया है और उनकी यात्रा के उद्देश्य को लेकर लोगों के मन में संशय खड़ा कर रहा है. तेजस्वी यादव ने अपनी बिहार अधिकार यात्रा के दौरान मोकामा में कलम को पब्लिक के बीच फेंककर अपने लिए आलोचना का एक नया अध्याय खोल दिया और उनकी नीति एवं मंशा को लेकर लेकर सवाल खड़े किए जाने लगे हैं. इस प्रकरण के सामने आने के बाद यह सवाल एक बार फिर सामने आया है कि हम जिन राजनेताओं से दिशा परिवर्तन और क्रांति की उम्मीद लगाए बैठे हैं, क्या वे कलम और उसके मूल्य को सही रूप से समझ पा रहे हैं? क्या हम इस कलम का कदर जानते हैं जिनसे समाज को दिशा मिलती है. तेजस्वी यादव की हालिया हरकत को व्यापक दृष्टिकोण से देखा जाए तो यह घटना महज एक व्यक्तिगत गलती से कहीं अधिक बड़े सवाल लेकर आई है और सवाल बेहद गंभीर हैं जिसे राजनीति और समाज को जरूर जानना और समझना चाहिए.

राजनीति की राहों में तेजस्वी का विवादित कदम

दरअसल,तेजस्वी यादव की यात्रा जब बाहुबली अनंत सिंह के गढ़ मोकामा पहुंची तो यहां उन्होंने घोड़े की सवारी की और अपने संबोधन के दौरान ही कलम पब्लिक के बीच में फेंककर बताने की कोशिश की कि वे बंदूक की जगह कलम के पैरोकार हैं. उनकी और आरजेडी के सोशल मीडिया अकाउंट से लिखा गया, जेडीयू वाले बंदूक बांटते हैं और बिहार भर में भाजपाई तलवार बांटते हैं! बिहार के युवाओं के सामने विकल्प स्पष्ट है! बिहार हिंसा नहीं, ज्ञान को चुनेगा! बिहार बंदूक नहीं, कलम को चुनेगा! बिहार अपराधियों को छुड़ाने वाली भाजपा नीतीश सरकार नहीं, जन समर्पित तेजस्वी सरकार को चुनेगा! जाहिर है तेजस्वी यादव का उद्देश्य अपनी राजनीति को आगे बढ़ाना और खुद को बिहार का नेतृत्वकर्ता के तौर पर स्थापित कर आगामी चुनाव में सफलता पाना है. मगर इस क्रम में वह जो बात कहना चाहते थे उसमें ही चूकते नजर आए. उनकी हरकत ने उस मंशा पर ही सवाल खड़े कर दिए जो वह बिहार की जनता को बताना चाहते हैं. उन्होंने ‘कलम की कदर’ नहीं की और उस कलम का ही अपमान कर बैठे जिसे सिर-माथे लगाने की हमारे संस्कार, हमारी संस्कृति और परंपरा हैं.

तेजस्वी यादव ने मोकामा में कलम बांटकर कहा कि वह बंदूक की जगह कलम से क्रांति करना चाहते हैं. लेकिन, उनके कलम वितरण के तरीके पर सवाल उठे.

बिहार की सांस्कृतिक विरासत में कलम की महत्ता

हमारे बच्चे भी इतना ज्ञान रखते हैं कि अगर कलम गिर जाए, गलती से भी पांव लग जाए या फिर टूट-फूटकर बिखर जाए तो तुरंत अपने आपको दोषी मान कलम को अपनी गलती का अहसास करते हुए सम्मान से उठाते हैं और तुरंत ही सिर माथे लगा लेते हैं. ऐसा इसलिए कि बिहार के लोग मां सरस्वती के अराधक रहे हैं और यहां की विशेष सांस्कृतिक पहचान सरस्वती पूजा है यानी विद्या की देवी की पूजा है. मां सरस्वती यानी…हमारी कलम! दरअसल, कलम केवल एक लेखन का उपकरण भर नहीं है, बल्कि यह विचारों, दृष्टिकोणों और समाज की वास्तविकता को सामने लाने वाला एक शक्तिशाली अस्त्र है. इतिहास गवाह है कि जहां के देश-समाज में लोकतंत्रिक, सांस्कृतिक और समाजिक बदलाव आए हैं, वहां कलम का ही योगदान था. जीवन में शिक्षा का रिश्ता बहुत गहरा है जो समाज को जागरूक और सशक्त बनाने के लिए काम करते हैं.

कलम के अपमान के पीछे राजनीतिक मानसिकता

तेजस्वी यादव की कलम बांटने (फेंकने) की घटना पर यदि हम ध्यान दें तो यह घटना सिर्फ एक सीधी-सादी गलती नहीं थी, बल्कि यह उस अनमयस्क मानसिकता की पराकाष्ठा है जिसमें कलम और उसके महत्व को नजरअंदाज किया जाता है. अपने और अपनी पार्टी के सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म पर कलम बांटने की तस्वीरें और वीडियो शेयर कर “कलम से क्रांति लाऊंगा! मैं नया बिहार बनाऊंगा!” कह देने भर से क्रांति तो कतई नहीं आने वाली है. उन्होंने कलम को पब्लिक के बीच जिस तरह से उछाला, यह संकेत करता है कि वह कलम को अब केवल वस्तु के रूप में देख रहे हैं. सवाल यह कि क्या आज हम उस कलम के महत्व को समझ रहे हैं जो देश-समाज को दिशा दिखाती है? क्या यह बात हम सबको आत्मसात करनी चाहिए कि समाज को दिशा देने के लिए कलम का आदर करना चाहिए?

कलम गिराना एक प्रतीकात्मक घटनाभर नहीं!

तेजस्वी यादव ने अपने सोशल मीडिया पोस्ट में लिखा, जहां लोग युवाओं के हाथ में बंदूक थमाते हैं, वहां मैं कलम बांटने आया हूं. बापू सभागार में हमने पूर्व में भी कलम बांटी है. शिक्षा व्यवस्था में गुणात्मक परिवर्तन करेंगे, युवाओं को नौकरी रोजगार देंगे! लेकिन, इन बातों से इतर उनकी ‘कलमफेंक हरकत’ ने कई सवाल खड़े कर दिये. जब तेजस्वी यादव ने अपनी यात्रा के दौरान बांटने के लिए कलम को फेंका तो वह एक प्रतीक बन गई कि कहीं न कहीं हम कलम का महत्व नहीं समझ रहे. यह घटना एक मामूली गलती कहकर टाली जा सकती थी, इसपर चर्चा नहीं भी का जानी थी. इसकी एक वजह यह भी कि यह तुरंत की आलोचनात्मक तौर पर पक्ष और विपक्ष के नैरेटिव को आगे ले आती है. लेकिन, एक पत्रकार होने के नाते भला ‘कलम के अपमान’ पर कैसे चुप रहा जा सकता है?

सोशल मीडिया और राजनीति में कलम का खोता सम्मान

दरअसल, कलम के अपमान (जाने-अनजाने) के पीछे एक गहरी मानसिकता छिपी हुई है जो समाज और राजनीति में हम निरंतर देख रहे हैं. सोशल मीडिया के इस दौर में हो रही राजनीति के महासंग्राम में वास्तव में कलम का कोई स्थान नहीं रह गया है. यह विचारणीय है कि कलम से जोड़ने वाली सोच की दिशा किस तरह से बदल रही है.राजनीतिक मंचों पर हम प्राय: देखते हैं कि शब्दों और बयानों (अपशब्दों की परिभाषा की सीमा से भी परे चले जाना) का खेल अधिक महत्वपूर्ण होता है, जबकि सच को उजागर करने वाली कलम की कोई कीमत नहीं रह जाती. कलम को ‘क्रांति का औजार’ बताने के लिए पब्लिक के बीच जिस तरह से उछालकर बांटा गया इसने समाज में यह संदेश दिया कि कलम कोई अमूल्य वस्तु नहीं, बल्कि एक साधारण टूल (औजार या उपकरण) है.

शिक्षा और कलम का गहरा रिश्ता, शिक्षा संस्कार का आधार

दरअसल, शिक्षा ही वह मूलभूत आधार है जिस पर एक राष्ट्र का भविष्य टिका होता है. शिक्षा के माध्यम से ही हम अपने समाज को सशक्त और समृद्ध बना सकते हैं. कलम को गिराना,फेंकना या उसे उछाल देना, केवल एक वस्तु के प्रति असम्मान या अनादर नहीं है, बल्कि यह उस उद्देश्य का भी अपमान है जिसके लिए कलम का अस्तित्व है. यदि हम इसे केवल एक साधारण वस्तु मानेंगे तो निश्चित ही हम अपने समाज और राष्ट्र के विकास में शिक्षा के महत्व को नकारने का कार्य करेंगे. क्योंकि, कलम एक साधारण उपकरण नहीं है, बल्कि यह मानवता, संस्कृति, और समाज के उत्कर्ष का प्रतीक है. यह वह अस्त्र है, जिसे हाथ में लेकर महान विचारकों और समाज सुधारकों ने संसार को दिशा दी. चाहे वह महात्मा गांधी का सत्याग्रह हो या फिर डॉ भीम राव अंबेडकर की अगुवाई में बनाया गया हमारा संविधान हो, हर दौर में समाज और राष्ट्र को एक नई दिशा दी.

बिहार अधिकार यात्रा के दौरान 18 सितंबर को खगड़िया में तेजस्वी यादव ने एक बच्चे को अपने हेलीकाप्टर में बैठाकर एक कलम दी.

क्या हम कलम की कीमत समझते हैं?

शिक्षा का अर्थ सिर्फ पाठ्यक्रम और किताबों तक सीमित नहीं होता, बल्कि यह जीवन के हर पहलू में लागू होता है. यदि हमें अपने समाज को आगे बढ़ाना है तो हमें इस मूलभूत सत्य को समझना होगा कि कलम वह शक्तिशाली औजार है जो सामाजिक, राजनीतिक और सांस्कृतिक बदलाव लाता रहा है, ला रहा है और आगे भी लाता रहेगा. जाहिर है जो लोग इसे केवल एक साधारण लेखन उपकरण मानते हैं वे समाज की वास्तविकता और आवश्यकताओं से अनजान होते हैं.कलम का सम्मान, उसका आदर और उसकी कीमत हमारी सांस्कृतिक पहचान और मानसिकता का प्रमाण होते हैं. लेकिन जब इसी कलम का अपमान किया जाता है तो यह समाज के चेतन और बौद्धिक विकास के प्रति भी एक घातक संदेश है, क्योंकि राजनीति का मुख्य उद्देश्य समाज के उत्थान के लिए रास्ते तैयार करना होता है, न कि उस ज्ञान के प्रतीक का अपमान करना जो इस उत्थान के आधार का माध्यम हो!

कलम की गरिमा बनाए रखना क्यों जरूरी है?

तेजस्वी यादव की घटना ने यह सिद्ध कर दिया कि हमारे समाज में शिक्षा और कलम के प्रति जो सम्मान होना चाहिए, वह बहुत ही कम है. यदि किसी राज्य के उपमुख्यमंत्री रह चुके और मुख्यमंत्री होने की इच्छा रखने वाले नेता के द्वारा ऐसी घटनाएं घटित होती हैं तो इसका संदेश साफ है-हमने अपनी शिक्षा और कलम को एक साधारण वस्तु बना दिया है. स्पष्ट है कि यह बहुत ही दुर्भाग्यपूर्ण स्थिति है. हमारे राजनेता यदि कलम का इस तरह से अपमान करते हैं तो आम जनता का क्या होगा? अगर नेता ही इस तरह के उदाहरण प्रस्तुत करेंगे तो जनता के बीच शिक्षा के प्रति सम्मान कैसे बढ़ेगा? तेजस्वी यादव को समझना होगा कि कलम का उछालना और उसे गिराना या फेंक देना… समाज की दिशा को बदलने की ओर नहीं, बल्कि उसे पीछे की ओर धकेलने के कदम की एक और कड़ी भर है!

समाज और राजनीति, सभी कलम का सम्मान करें

आजकल के राजनेता, पत्रकार और समाज सुधारक सब एक दूसरे के साथ मिलकर इस दिशा में काम करने के बजाय कलम का मजाक उड़ाने में व्यस्त हैं. कृपया ध्यान रखें कि कलम की महत्ता समझने के लिए किसी बड़े महापुरुष या विद्वान की जरूरत नहीं है. यह हर उस व्यक्ति के लिए एक प्रेरणा है जो समाज में बदलाव लाना चाहता है. अपील यही है कि हमें कलम को केवल एक साधारण लेखन उपकरण के रूप में नहीं देखना चाहिए. कलम, समाज और देश के भविष्य की दिशा को तय करने वाला सबसे शक्तिशाली अस्त्र है. अगर कलम गिर जाए तो उसे उठाकर सम्मान से अपने माथे पर लगाएं, क्योंकि यही हमारी शिक्षा, हमारी संस्कृति और हमारे समाज के सशक्त करने की शक्ति का प्रतीक है.

कलम का अपमान हम सबके लिए एक चेतावनी

तेजस्वी यादव के इस कृत्य को केवल व्यक्तिगत गलती भी मान लें तो भी यह उन मूल्यों का उल्लंघन है जो हमें अपने समाज और संस्कृति से मिलते हैं. जब हम कलम का सम्मान नहीं करते तो हम समाज के उन आदर्शों और मान्यताओं की भी अवहेलना कर रहे होते हैं जो हमें सशक्त, जागरूक और प्रबुद्ध बनाती हैं. दरअसल, राजनीति का तंत्र यदि एक तरफ देश की दिशा तय करने का कार्य करता है तो दूसरी तरफ वह समाज के उस भावनात्मक और मानसिक स्वरूप को भी आकार देता है. अगर राजनीति में शामिल व्यक्ति खुद कलम का अपमान करते हैं तो यह क्या संदेश देता है? यदि हम समाज में बदलाव लाना चाहते हैं तो हमें कलाम के सम्मान को प्राथमिकता देनी होगी. यह घटना एक चेतावनी है कि हमें अपनी शिक्षा, संस्कृति और विचारों के मूल्यों को समझना होगा, ताकि हम अपने समाज और संस्कृति का सही तरीके से निर्माण कर सकें.

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