बिहार चुनाव: सांसदों को उतार सकती है BJP! शाह ने दिया 60% वाला टारगेट

2 weeks ago

Last Updated:September 25, 2025, 16:35 IST

बीजेपी अपने सांसदों को विधानसभा चुनाव में उतारती रही है. बिहार चुनाव में भी इस प्रयोग को दोहराने की तैयारी चल रही है. मसलन कुछ पुराने चेहरे बदले जा सकते हैं तो कुछ पूर्व और वर्तमान सांसदों को विधानसभा का टिकट दिया जा सकता है.

 सांसदों को उतार सकती है BJP! शाह ने दिया 60% वाला टारगेटगृहमंत्री अमित शाह कुछ ही दिन पहले बिहार में दो द‍िन बिताकर आए हैं.

बीजेपी बिहार विधानसभा चुनाव में भी अपने सांसदों (मौजूदा और पूर्व) को मैदान में उतारने का प्रयोग दोहरा सकती है. यह रणनीति उन मुश्किल सीटों को जीतने के लिए अपनाई जाती है, जहां पार्टी को लगता है कि एक मजबूत और लोकप्रिय चेहरे की जरूरत है. अलग-अलग राज्यों में बीजेपी की रणनीति के तहत सांसदों को विधानसभा चुनाव में उतारने का चलन रहा है. हालांकि, इस प्रयोग के परिणामों में हमेशा एकरूपता नहीं दिखी है. 2022 के गुजरात विधानसभा चुनाव में बीजेपी ने मुख्य रूप से मौजूदा विधायकों को हटा कर नए चेहरों पर दांव लगाया था, लेकिन किसी मौजूदा या पूर्व सांसद को सीधे तौर पर मैदान में नहीं उतारा गया था. बीजेपी ने बड़े पैमाने पर उम्मीदवारों को बदला और 156 सीटों के साथ रिकॉर्ड जीत हासिल की.

वर्ष 2023 में राजस्थान विधानसभा का पिछला चुनाव हुआ था. बीजेपी ने 7 मौजूदा और पूर्व सांसदों को मैदान में उतारा था. इनमें 4 ने जीत दर्ज की, जबकि 3 चुनाव हार गए थे. जिन सांसदों ने जीत दर्ज की, उनमें राजसमंद से सांसद रहीं दीया कुमारी ने विद्याधर नगर विधानसभा सीट से चुनाव लड़ा और जीत दर्ज की. राज्यसभा सांसद किरोड़ी लाल मीणा ने सवाई माधोपुर से विधानसबा का चुनाव लड़ा और जीत गए. जयपुर ग्राणीण से सांसद राज्यवर्धन सिंह राठौड़ ने झोटवाड़ा सीट और अलवर से सांसद बाबा बालक नाथ तिजारा सीट से जीते. जिन सांसदों को हार का सामना करना पड़ा, उनमें झुझुनूं से सांसद नरेंद्र कुमार मांडवा विधानसबा सीट से लडे और हार गए. अजमेर से सांसद भागीरथ चौधरी किशनगढ़ असेंबली सीट से हारे. जालौर से सांसद देवजी पटेल भी सांचौर सीट से विधानसभा का चुनाव हार गए.

झारखंड में नया प्रयोग

झारखंड विधानसभा का चुनाव 2024 में लोकसभा चुनाव के करीब 6 महीने बाद हुआ. भाजपा ने यहां भी प्रयोग किया. दुमका के पूर्व सांसद सुनील सोरेन को पार्टी ने उम्मीदवार बनाया. वे चुनाव हार गए. धनबाद से मौजूदा सांसद ढुलू महतो के भाई को पार्टी ने टिकट दिया और वे जीत गए. पूर्व केंद्रीय मंत्री अर्जुन मुंडा की पत्नी को टिकट देकर भाजपा ने ढुलू महतो जैसा प्रयोग किया, पर उन्हें कामयाबी नहीं मिली.

जेएमएम ने 2019 से भी अधिक सीटें हासिल कर कांग्रेस और आरजेडी के साथ दूसरी बार सरकार बना ली. भाजपा को सिर्फ 21 सीटें मिलीं. सहयोगी दल आजसू के भी 3 ही उम्मीदवार जीत पाए. राजस्थान में बीजेपी की सांसदों को उतारने की रणनीति काफी हद तक सफल रही, लेकिन झारखंड में इसका कोई सकारात्मक नतीजा सामने नहीं आया. भाजपा का यह प्रयोग दर्शाता है कि सांसदों को विधानसभा चुनाव में उतारना एक जोखिम भरा काम है. हालांकि इसमें फायदे की संभावना तो रहती ही है. यह निर्णय राज्य की राजनीतिक स्थिति, स्थानीय समीकरणों और उम्मीदवारों की लोकप्रियता पर निर्भर करता है.

गृहमंत्री अमित शाह ने एनडीए के नेताओं के साथ भी मीटिंग की थी. (PTI)

बंगाल में मिलेजुले नतीजे

बंगाल में जब 2021 के विधानसभा चुनाव हुए तो भाजपा ने सांसदों को विधानसभा चुनाव लड़ाने का प्रयोग फिर दोहराया. पार्टी ने 5 मौजूदा सांसदों को मैदान में उतारा था, जिनमें से तीन ने जीत दर्ज की थी. यह प्रयोग पार्टी के लिए मिला-जुला साबित हुआ, क्योंकि कुछ बड़े चेहरे चुनाव हार गए थे. भाजपा ने जिन सांसदों को विधानसभा चुनाव के टिकट दिए थे, उनमें आसनसोल से सांसद बाबुल सुप्रियो टालीगंज में असेंबली चुनाव हार गए. हुगली से सांसद लाकेट चटर्जी चुंचुड़ा से चुनाव हार गईं.

कूचबिहार से सांसद निसिथ प्रमाणिक दिनहाटा से असेंबली चुनाव जीत तो गए, लेकिन मार्जिन कम रहने के कारण उन्होंने विधायक पद छोड़ दिया और सांसद बने रहे. राणाघाट से सांसद बने जगन्नाथ सरकार शांतिपुर सीट से विधानसभा का चुनाव लड़े और जीते. उन्होंने भी सांसद बने रहना पसंद किया और विधायकी छोड़ दी. बाद में इस सीट पर हुए उपचुनाव में टीएमसी ने जीत दर्ज की. विष्णुपुर से सांसद सुभाष सरकार ने बाकुंड़ा विधानसभा सीट पर जीत हासिल की थी.

अमित शाह का दौरा

केंद्रीय गृह मंत्री अमित शाह 27 सितंबर को फिर बिहार आ रहे हैं. इस महीने यह उनकी दूसरी बिहार यात्रा होगी. इससे पहले वे 18 दिसंबर को बिहार आए थे. उन्होंने तब 20 जिलों के नेताओं के साथ बैठक की थी. चुनावी रणनीति को अमली जामा पहनाने के लिए भाजपा ने बिहार को 5 जोन में बांटा है. इस बार वे सारण, वैशाली और अररिया के नेताओं संग चुनावी कामयाबी के लिए सुझाव नेताओं के सुझाव सुनेंगे और जरूरी टास्क देंगे. पिछली यात्रा के दौरान उन्होंने कई टास्क नेताओं को दिए थे. उनमें वैसी सीटों की पहचान करना, जहां कम वोटों से भाजपा हारी या जीती थी. उन सीटों के लिए खास रणनीति बनाने का उन्होंने प्रदेश नेतृत्व को टास्क दिया था.

कोर कमेटी की बैठक

भाजपा के प्रदेश स्तर क नेता दो दिनों से लगातार सीटों की संख्या, उम्मीदवारों के नाम और शाह के दिए टास्क पर मंथन कर रहे हैं. अमित शाह यह भी कह कर गए थे कि जन सुराज के सूत्रधार प्रशांत किशोर ने जिन नेताओं पर भ्रष्टाचार के आरोप लगाए हैं, उन्हें सफाई देनी चाहिए. प्रशांत ने मंगल पांडेय, दिलीप जायसवाल, सम्राट चौधरी और संजय जायसवाल को लपेटे में लिया है. शाह का साफ निर्देश है कि इस बार करीब 100 सीटें ही लड़ने को मिलेंगी. इनमें 60 सीटें तो हर हाल में जीतनी जरूरी हैं. इसके लिए जरूरी हो तो सांसदों और पूर्व सांसदों को चुनाव लड़ने को कहा जा सकता है.

किन नामों की चर्चा

बिहार में बीजेपी के लिए अपने सांसदों को चुनाव में उतारना एक जोखिम भरा, लेकिन आकर्षक विकल्प हो सकता है. यह देखना दिलचस्प होगा कि पार्टी इस रणनीति को अपनाती है या नहीं. वैसे सियासी गलियारे में इस बात की जोरदार चर्चा है कि भाजपा सांसदों वाला प्रयोग बिहार में दोहराने पर विचार कर रही है. गिरीराज सिंह: बेगूसराय से सांसद और केंद्रीय मंत्री गिरीराज सिंह का नाम कुछ सीटों के लिए चर्चा में है। उनकी आक्रामक हिंदुत्ववादी छवि और मुखर वक्ता के रूप में पहचान उन्हें बीजेपी के लिए एक मज़बूत उम्मीदवार बनाती है। जिन सांसदों-पूर्व सांसदों के नाम की चर्चा सियासी गलियारे में हो रही है, उनमें उजियारपुर से सांसद और केंद्रीय मंत्री नित्यानंद राय का भी नाम है. वे मजबूत ओबीसी नेता हैं. बिहार की राजनीति में उनकी सक्रियता जगजाहिर है. पूर्व प्रदेश अध्यक्ष और बेतिया से सांसद संजय जायसवाल भी इस दौड़ में शामिल हो सकते हैं. इनके अलावा पूर्व सांसद अश्विनी चौबे और रामकृपाल यादव के नाम भी तैर रहे हैं. केंद्रीय कपड़ा मंत्री और बेगूसराय के सांसद गिरिराज सिंह को मैदान में उतारा जा सकता है. अभी तक इन नामों पर अंतिम मुहर नहीं लगी है, लेकिन चुनावी चाणक्य अमित शाह को इस प्रोयग को दोहराने में आपत्ति नहीं है.

ओमप्रकाश अश्क

प्रभात खबर, हिंदुस्तान और राष्ट्रीय सहारा में संपादक रहे. खांटी भोजपुरी अंचल सीवान के मूल निवासी अश्क जी को बिहार, बंगाल, असम और झारखंड के अखबारों में चार दशक तक हिंदी पत्रकारिता के बाद भी भोजपुरी के मिठास ने ब...और पढ़ें

प्रभात खबर, हिंदुस्तान और राष्ट्रीय सहारा में संपादक रहे. खांटी भोजपुरी अंचल सीवान के मूल निवासी अश्क जी को बिहार, बंगाल, असम और झारखंड के अखबारों में चार दशक तक हिंदी पत्रकारिता के बाद भी भोजपुरी के मिठास ने ब...

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First Published :

September 25, 2025, 16:35 IST

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