वह बड़ा आर्म्स ड्रॉप कांड, जो सुलझ तो गया... लेकिन मकसद अब भी अनसुलझा!

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नई दिल्ली. देश की राजधानी से तकरबीन 1300 किलोमीटर की दूरी पर 17 दिसंबर 1995 को एक ऐसी घटना घटी, जिससे भारतीय जांच एजेंसी सीबीआई भी हिल गई. सर्द रात में एक अनजान विमान के गर्जना से पश्चिम बंगाल के पुरुलिया जिले के झालदा, खटंगा, बेलामू और मरामू गांवों के लोग जग गए. लोगों को तब आश्चर्य हुआ जब विमान से नीचे की ओर पैराशूट बांधे लकड़ी के डिब्बे गिरने लगे. जब लोगों ने डिब्बा खोला तो उसमें सैकड़ों एके-47 राइफलें, रॉकेट लॉन्चर, 9-मिलीमी पिस्तौलें, ग्रेनेड, स्नाइपर राइफलें, नाइट विजन बाइनोकुलर और लाखों गोलियां भरी हुई थीं. इस घटना की जानकारी पुलिस को हुई तो देश में हाहाकार मच गया.

इस घटना ने सुरक्षा एजेंसियों को हिला कर रख दिया. इस मामले की जांच सीबीआई को सौंपी गई, जिसने जांच को अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर ले जाकर कई कड़ियों को जोड़ा. लेकिन सीबीआई की यह जांच आज भी एक रहस्य से कम नहीं है. लेकिन आज जानेंगे कैसे सुलझा था पुरुलिया आर्म्स ड्रॉप केस? हथियार कांड का मास्टर माइंड नील्स होल्क उर्फ किम डेवी कैसे भारत से भागा था? पूर्व प्रधानमंत्री पीवी नरसिम्हाराव और सांसद पप्पू यादव इस घटना के बाद कैसे चर्चा में आए थे?

1995 तक पुरुलिया, जो आनंद मार्ग नामक आध्यात्मिक संगठन का गढ़ था, अचानक एक रहस्यमयी साजिश के केंद्र में आ गया. पुरुलिया में बड़े पैमाने पर किसके कहने पर और किसके लिए हथियार गिराए गए थे? क्या कम्युनिस्ट पार्टी ऑफ इंडिया (मार्क्सवादी) की लेफ्ट फ्रंट सरकार को उखाड़ फेंकने के लिए थे हथियार? या केंद्र सरकार की गुप्त चाल का हिस्सा था? क्या साजिश की जड़ें आनंद मार्ग से जुड़ा था? बता दें कि डेनिश नागरिक नील्स क्रिश्चियन, जिसे किम डेवी या किम पीटर डेवी के नाम से जाना जाता था, आनंद मार्ग का एक समर्पित सदस्य था. कहा जाता है कि पश्चिम बंगाल में सीपीआई समर्थकों द्वारा आनंद मार्गियों पर अत्याचार हो रहे थे. इसका बदला लेने के लिए पीटर डेवी ने यह साजिश रची.

सीबीआई जांच में खुलासा हुआ था कि अगस्त 1995 में एक शख्स ब्लिच ने नॉर्थ यॉर्कशायर पुलिस को आगाह किया था कि वह भारत में हथियार ड्रॉप की योजना जानता है. लेकिन ब्रिटिश पुलिस ने इसे नजरअंदाज कर दिया. हथियार ड्रॉप के तीन दिन बाद 20 दिसंबर को विमान थाईलैंड से लौटते हुए फिर भारत की सीमा में घुसा. लेकिन इस बार भारतीय वायुसेना का मिग-21 फाइटर जेट हवा में उसका पीछा करने लगा. पायलट ने चेतावनी दी, लेकिन विमान ने अनदेखी की. आखिरकार मुंबई के सांताक्रूज एयरपोर्ट पर जबरन उतारा गया. सीबीआई की टीम पहले से अलर्ट थी. विमान से उतरते ही पांच लातवियाई क्रू मेंबर्स ओलेग फेडोरोव, वेलेंटीन्स लव्स, अलेक्जेंडर किलिमनिक, तात्याना रजानिकोवा और इवानोव को गिरफ्तार कर लिया गया.

पीटर ब्लिच भी हाथोंहाथ पकड़ा गया. लेकिन वह चालाकी से मुंबई एयरपोर्ट पर अधिकारियों को रिश्वत देकर फरार हो गया. गॉसिप्स कहती हैं कि बिहार के सांसद राजेश रंजन उर्फ पप्पू यादव ने अपनी आधिकारिक गाड़ी से उसे नेपाल बॉर्डर तक पहुंचाया. जहां से वह डेनमार्क लौट गया. पप्पू यादव, जो उस समय बिहार की राजनीति में उभरते सितारे थे, पर आरोप लगा कि उन्होंने नील्स को दिल्ली से होते हुए नेपाल भेजा और इसमें तत्कालीन प्रधानमंत्री पी.वी. नरसिम्हा राव का आशीर्वाद था. हालांकि सीबीआई की जांच में यह पुष्टि नहीं हो सकी.

लेकिन राव सरकार पर यह इल्जाम लगा कि यह पूरी साजिश उनका प्लान था पश्चिम बंगाल की लेफ्ट फ्रंट को अस्थिर करने के लिए. नील्स ने खुद दावा किया कि राव ने योजना को ‘देखा और मंजूर’ किया था. एके-47 के बारे में कई तरह के अफवाहें फैली. कहा गया कि ये हथियार नक्सलियों को दिए जाने वाले थे. या फिर आनंद मार्ग को सीपीआई(एम) के खिलाफ विद्रोह के लिए. कुछ ने तो ब्रिटिश एमआई5 और भारतीय रिसर्च एंड एनालिसिस विंग (रॉ) की सांठगांठ का जिक्र किया.

सीबीआई ने पप्पू यादव और पूर्व सीएम नरसिम्हाराव की किसी भी तरह की सहभागिता को खारिज किया, लेकिन रहस्य बरकरार रहा. सीबीआई ने केस को सुलझाने में कोई कसर न छोड़ी. जांच की कमान संभाली जे के दत्त ने, जो बाद में सीबीआई डायरेक्टर बने. लेकिन गॉसिप्स में उन्हें भी साजिश का हिस्सा ठहराया गया. कहा गया कि उन्होंने सबूत दबाए. इस केस से कई आईपीएस अधिकारी भी जुड़े, उनमें रिजर्व बैंक ऑफ इंडिया के पूर्व गवर्नर वाई वी रेड्डी जो घटना के वक्त इकोनॉमिक अफेयर्स के सेक्रेटरी थे, पूर्व सीबीआई डायरेक्टर जोगिंदर सिंह और वरिष्ठ अधिकारी जैसे ए के मित्तल भी शामिल थे.

पूर्व सीबीआई डायरेक्टर जोगिंदर सिंह ने एक बार कहा था कि राजनीतिक दबाव ने पुरुलिया जांच को रोका. सीबीआई ने इंटरपोल को रेड नोटिस जारी किया. ब्रिटिश पुलिस से रेड पर ब्लिच के एस्टेट पर छापा मारा, जहां से बांग्लादेशी आर्मी के फर्जी एंड-यूजर सर्टिफिकेट मिले. बांग्लादेश के पूर्व मेजर-जनरल मोहम्मद शुभिद अली भुइयां पर भी आरोप लगा. जांच में पता चला कि हथियार बुल्गारिया से आए थे और विमान पर सिंगापुर के भारतीय मूल के दीपक मणिकन भी था, जो पैराशूट खरीदने का जिम्मेदार था. लेकिन केंद्र सरकार की संलिप्तता साबित न हुई.

ट्रायल कोलकाता की विशेष अदालत में चला. 2000 में पीटर ब्लिच और लातवियाई क्रू को उम्रकैद की सजा सुनाई गई. लेकिन न्याय की राह में राजनयिक खेल शुरू हो गए. रूस की मध्यस्थता से लातवियाई 2000 में रिहा हो गए. ब्लिच को 2004 में राष्ट्रपति अब्दुल कलाम ने क्षमा देकर ब्रिटेन भेज दिया. नील्स होल्क पर इंटरपोल का रेड कॉर्नर नोटिस चला, लेकिन डेनमार्क ने 2002 से अब तक हर एक्सट्राडिशन रिक्वेस्ट ठुकरा दी.  2011 में डेनिश हाई कोर्ट ने ब्लिच की जेल की पिटाई की गवाही पर फैसला सुनाया.

2024 में फिर वही कहानी दोहराई गई. केस कभी बंद न हुआ. सीबीआई ने क्लोजर रिपोर्ट दी, लेकिन साजिश की परतें उधड़ीं नहीं. आज, 2025 में, पुरुलिया की वह रात एक अनसुलझी पहेली बनी हुई है. नील्स होल्क डेनमार्क में अपनी किताब ‘दे कल्डर मिग टेररिस्ट’ (मुझे आतंकवादी कहते हैं) लिखकर शांति से जी रहा है. वह दावा करते हुए कि वह निर्दोष था. बस आनंद मार्गियों की रक्षा के लिए. लेकिन सवाल बाकी हैं. क्या यह वाकई केंद्र का ‘ऑपरेशन’ था? पप्पू यादव और राव की भूमिका क्या थी? एके-47 की बारिश ने पुरुलिया को बदल दिया, लेकिन सच्चाई अभी भी धुंध में छिपी है.

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