नई दिल्ली: लोकसभा में चुनाव सुधारों (Electoral Reforms) पर हुई चर्चा के दौरान नेता प्रतिपक्ष राहुल गांधी ने सरकार पर तीखा हमला बोला. मोदी सरकार और चुनाव आयोग की कार्यशैली पर सवाल उठाते हुए राहुल गांधी ने केवल आरोप नहीं लगाए, बल्कि सदन के पटल पर उन ‘तीन-चार प्रमुख मांगों’ को रखा, जिन्हें उनका मानना है कि अगर मान लिया जाए, तो देश में ‘वोट चोरी’ की बहस हमेशा के लिए खत्म हो सकती है. राहुल गांधी ने साफ कर दिया कि विपक्ष की लड़ाई अब सिर्फ एक राजनीतिक दल से नहीं, बल्कि उस पूरी व्यवस्था से है जिसे सुनियोजित तरीके से ‘हाईजैक’ कर लिया गया है.
राहुल गांधी की वो तीन डिमांड
मशीन से पढ़ी जा सकने वाली वोटर लिस्ट: राहुल गांधी की सबसे प्रमुख मांग यह थी कि चुनाव से पहले सभी राजनीतिक दलों को ‘मशीन-रीडेबल’ (Machine-Readable) वोटर लिस्ट उपलब्ध कराई जाए. उन्होंने ब्राजील मॉडल का जिक्र करते हुए कहा कि वहां चुनाव के बाद हर बूथ का डेटा पब्लिक किया जाता है, जिससे कोई भी उसकी जांच कर सके. भारत में चुनाव आयोग पीडीएफ (PDF) लिस्ट देता है, जिसे एनालाइज करना मुश्किल होता है. अगर मशीन से पढ़ी जा सकने वाली लिस्ट मिलेगी, तो यह पता लगाना आसान होगा कि किसका नाम काटा गया और किसका जोड़ा गया. CCTV फुटेज नष्ट न किए जाएं: राहुल गांधी ने सदन में एक गंभीर मुद्दा उठाया. उन्होंने पूछा, CCTV फुटेज क्यों नष्ट किया जाता है? यह चुनाव की चोरी है. उनकी मांग है कि काउंटिंग और स्ट्रांग रूम के सीसीटीवी फुटेज को सुरक्षित रखा जाए, ताकि किसी भी विवाद की स्थिति में सबूत मौजूद रहें. फुटेज को नष्ट करना यह साबित करता है कि दाल में कुछ काला है. ईवीएम (EVM) का एक्सेस: तीसरी बड़ी मांग यह थी कि चुनाव के बाद ईवीएम का एक्सेस दिया जाए ताकि उसकी तकनीकी जांच संभव हो सके. राहुल ने कहा कि जब जनता का भरोसा मशीन पर नहीं है, तो मशीन की जांच कराने में क्या हर्ज है?इसके अलावा, उन्होंने एक और महत्वपूर्ण सुधार की बात कही कि चुनाव आयुक्तों को दी गई ‘इम्युनिटी’ (सुरक्षा कवच) खत्म की जाए, ताकि गलत फैसला लेने पर उनकी जवाबदेही तय हो सके.
‘चुनाव आयोग अब अंपायर नहीं, सत्ता का सहयोगी है’
राहुल गांधी ने अपने भाषण में चुनाव आयोग की निष्पक्षता को पूरी तरह खारिज कर दिया. उन्होंने कहा कि एक समय था जब चुनाव आयोग संस्थागत रूप से स्वतंत्र था, लेकिन आज वह आरएसएस और बीजेपी के नियंत्रण में है. चुनाव आयोग अब स्वतंत्र अंपायर की भूमिका में नहीं है, बल्कि वह सत्ता पक्ष के साथ ‘तालमेल’ बिठाकर काम कर रहा है. वह सरकार के इशारे पर चुनाव का कार्यक्रम तय करता है. देश में पांच-पांच महीने तक चुनाव सिर्फ इसलिए खींचे जाते हैं ताकि प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी को प्रचार करने की सुविधा मिल सके, वे सरकारी विमानों से हर जगह जा सकें. यह लेवल प्लेइंग फील्ड नहीं है. राहुल गांधी ने सवाल दागा, प्रधानमंत्री और गृह मंत्री चुनाव आयुक्त की नियुक्ति में इतनी दिलचस्पी क्यों रखते हैं? वे खुद ही यह तय करना चाहते हैं कि रेफरी कौन होगा, ताकि मैच का नतीजा पहले से तय किया जा सके.
हरियाणा का ‘मॉडल’ और फोटो विवाद
भाषण के दौरान सदन में एक नाटकीय क्षण भी आया जब पीछे की बेंचों से कुछ विपक्षी सांसदों ने एक तस्वीर दिखानी शुरू कर दी. इस पर चेयर (सभापति) ने आपत्ति जताई. राहुल गांधी ने स्थिति को संभालते हुए कहा, मैं फोटो दिखाने से सहमत नहीं हूं, लेकिन यह जो मॉडल वाली तस्वीर है, इसका इस्तेमाल हरियाणा चुनाव में 22 बार किया गया है. राहुल ने आरोप लगाया कि हरियाणा में चुनाव चोरी हुए और यह सब चुनाव आयोग की नाक के नीचे हुआ. उन्होंने कहा, “जनता ने आपको 10 साल सत्ता में बैठाया, तब ईवीएम ठीक थी, यह तर्क गलत है. हम भी चुनाव जीतते हैं, लेकिन विपक्ष ने ऐसे ही प्रतिकूल हालात वाले कई राज्यों में चुनाव जीते हैं. इसका मतलब यह नहीं कि सिस्टम साफ है, इसका मतलब है कि जनता का गुस्सा इतना ज्यादा था कि आपकी सारी मशीनरी फेल हो गई.”‘RSS ने सभी संस्थाओं पर कब्जा कर लिया है’
नेता प्रतिपक्ष ने राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ (RSS) पर सीधा हमला बोलते हुए कहा कि देश की हर संस्था पर एक विचारधारा का कब्जा हो गया है. उन्होंने कहा, भारत 1.5 अरब लोगों का एक ताना-बाना है, जो वोट के धागे से बुना गया है. लोकसभा, राज्यसभा, विधानसभाएं और पंचायतें, ये सब वोट के कारण अस्तित्व में हैं. लेकिन आज आरएसएस उस वोट को और उस ढांचे को कैप्चर करने की कोशिश कर रहा है.
राहुल ने कहा कि यह कब्जा सिर्फ चुनाव आयोग तक सीमित नहीं है. ईडी (ED), सीबीआई (CBI), एनआईए (NIA) और शिक्षण संस्थान, सब पर आरएसएस के लोग बैठाए जा रहे हैं. विश्वविद्यालयों में कुलपतियों की नियुक्ति योग्यता के आधार पर नहीं, बल्कि संघ के प्रति निष्ठा के आधार पर हो रही है. उन्होंने कहा कि आरएसएस और बीजेपी समानता में विश्वास नहीं करते, वे संस्थाओं को हथियार बनाकर संविधान की मूल भावना को खत्म कर रहे हैं.
सदन में हंगामा और सरकार का बचाव
राहुल गांधी के इन आरोपों पर सत्ता पक्ष ने भारी हंगामा किया. संसदीय कार्य मंत्री किरेन रिजिजू ने हस्तक्षेप करते हुए कहा कि राहुल गांधी चुनाव सुधारों पर बोलने के बजाय राजनीतिक भाषण दे रहे हैं. स्पीकर ने भी राहुल गांधी को टोकते हुए विषय पर रहने की नसीहत दी. लेकिन राहुल गांधी ने अपना आक्रमण जारी रखते हुए कहा, जो मैं कह रहा हूं, वही चुनाव सुधार की जड़ है. जब अंपायर ही मिला हुआ हो, जब संस्थाएं ही बिकी हुई हों, तो तकनीकी सुधारों का क्या मतलब? सुधार की शुरुआत चुनाव आयोग की स्वतंत्रता बहाल करने से होनी चाहिए.
5 सवाल-जवाब से समझिए क्यों पूरी करने में दिक्कत?
मशीन-रीडेबल (एक्सेल/CSV) फॉर्मेट में वोटर लिस्ट देने से आयोग क्यों कतराता है?
चुनाव आयोग का तर्क रहता है कि वोटर लिस्ट को पीडीएफ (PDF) फॉर्मेट में देने का मकसद ‘डाटा माइनिंग’ और ‘वोटर प्रोफाइलिंग’ को रोकना है. आयोग का मानना है कि अगर एक्सेल या डिजिटल फॉर्मेट में डाटा दिया गया, तो राजनीतिक दल या निजी एजेंसियां (कैम्ब्रिज एनालिटिका जैसा मामला) वोटरों की जाति, धर्म और उम्र के आधार पर डाटा का दुरुपयोग कर सकती हैं. यह ‘निजता के अधिकार’ के उल्लंघन का मामला बन सकता है, हालांकि विपक्ष का कहना है कि यह डाटा पहले से ही पब्लिक डोमेन में है, बस फॉर्मेट बदला जा रहा है.
सीसीटीवी फुटेज को नष्ट क्यों कर दिया जाता है, इसे सुरक्षित रखने में क्या हर्ज है?
इसके पीछे मुख्य वजह ‘लॉजिस्टिक्स’ और ‘नियम’ हैं. चुनाव आयोग के नियमों के मुताबिक, चुनाव याचिका (Election Petition) दायर करने की समय सीमा परिणाम के 45 दिन तक होती है. आयोग इसी अवधि तक डाटा सुरक्षित रखता है. देश में लाखों बूथ हैं और उनकी वीडियो रिकॉर्डिंग का डेटा पेटाबाइट्स (Petabytes) में होता है, जिसे अनिश्चितकाल तक स्टोर करना बहुत खर्चीला और तकनीकी रूप से कठिन है. इसलिए, यदि कोई कोर्ट केस नहीं होता, तो स्टोरेज खाली करने के लिए पुराना डेटा हटा दिया जाता है.
ईवीएम (EVM) का एक्सेस या जांच की अनुमति देने से आयोग क्यों बचता है?
चुनाव आयोग का सबसे बड़ा तर्क ‘सुरक्षा’ और ‘बौद्धिक संपदा’ (Intellectual Property) का है. ईवीएम बनाने वाली कंपनियां (BEL और ECIL) और आयोग का कहना है कि मशीन की माइक्रोचिप का डिजाइन और सोर्स कोड गोपनीय है. अगर इसे किसी बाहरी व्यक्ति या पार्टी को जांच के लिए दिया गया, तो हैकर्स इसकी संरचना समझकर भविष्य में इसमें सेंध लगाने का तरीका ईजाद कर सकते हैं. आयोग का मानना है कि ‘फर्स्ट लेवल चेकिंग’ (FLC) और ‘मॉक पोल’ ही पारदर्शिता के लिए पर्याप्त हैं.
क्या चुनाव आयुक्तों को मिली ‘इम्युनिटी’ (सुरक्षा) हटाना संभव है?
यह चुनाव आयोग के हाथ में नहीं, बल्कि संसद के हाथ में है. संविधान के अनुच्छेद 324 और अन्य प्रावधानों के तहत मुख्य चुनाव आयुक्त को सुप्रीम कोर्ट के जज के बराबर का दर्जा और सुरक्षा मिली हुई है, ताकि वे बिना किसी राजनीतिक दबाव के काम कर सकें. अगर यह इम्युनिटी हटाई जाती है, तो हर छोटे-बड़े फैसले पर उन पर मुकदमे हो सकते हैं, जिससे पूरी चुनाव प्रक्रिया ठप हो सकती है. सरकार और आयोग इसे संस्था की स्वतंत्रता के लिए खतरा मानते हैं.
क्या सुप्रीम कोर्ट ने इन मांगों पर कभी कोई निर्देश दिया है?
सुप्रीम कोर्ट अब तक चुनाव आयोग की प्रक्रिया पर भरोसा जताता रहा है. वीवीपैट (VVPAT) पर्चियों के 100% मिलान की मांग को कोर्ट खारिज कर चुका है. कोर्ट का मानना है कि हर तकनीकी पहलू में हस्तक्षेप करने से चुनाव प्रक्रिया जटिल और अनंत हो जाएगी. आयोग इसी न्यायिक समर्थन को ढाल बनाता है कि जब सुप्रीम कोर्ट मौजूदा प्रक्रिया (जैसे 5% वीवीपैट मिलान) से संतुष्ट है, तो नई मांगें मानकर प्रक्रिया को बदलने की आवश्यकता नहीं है.

3 hours ago
