फलों के राजा आम पर क्यों महाराष्ट्र और गुजरात में महासंग्राम?

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Last Updated:December 07, 2025, 09:52 IST

Alphonso Mango GI Tag: ज्‍योग्राफिकल इंडिकेशन यानी GI टैग देने पर संबंधित प्रोडक्‍ट और इलाके की विशिष्‍ट पहचान बन जाती है. इससे मार्केटिंग पर सकारात्‍मक असर पड़ता है. ऐसे में GI टैग हासिल करने की कोशिश अक्‍सर ही की जाती है. महाराष्‍ट्र और गुजरात के बीच ऐसा ही एक मामला सामने आया है, जिससे विवाद खड़ा हो गया है.

फलों के राजा आम पर क्यों महाराष्ट्र और गुजरात में महासंग्राम?Alphonso Mango GI Tag: महाराष्‍ट्र और गुजरात अल्‍फांसो आम की एक प्रजाति के लिए GI टैग को लेकर आमने-सामने हैं. (फाइल फोटो)

Alphonso Mango GI Tag: दुनियाभर में मशहूर अल्फांसो आम को लेकर महाराष्ट्र और गुजरात के बीच एक नया विवाद खड़ा हो गया है. गुजरात में भारतीय किसान संघ (BKS) की वालसाड इकाई ने दो साल पहले ‘वालसाड हापुस’ के लिए जीआई (Geographical Indication) टैग लेने की प्रक्रिया शुरू की थी. इस मामले की पहली सुनवाई 30 अक्टूबर को हुई. अभी कुछ और सुनवाई बाकी हैं, उसके बाद ही कोई फैसला आएगा. कोंकण के कुछ किसान इस कदम का विरोध कर रहे हैं. उनका कहना है कि GI टैग मिलने से ‘कोंकण अल्फांसो’ की पहचान कमजोर पड़ सकती है. कोंकण का हापुस अपनी मलाईदार और बिना रेशे वाली बनावट की वजह से दुनियाभर में जाना जाता है. किसानों का कहना है कि नकली अल्फांसो उनकी पहचान को नुकसान पहुंचाएगा.

बीकेएस की ओर से आवेदन करने वाले प्रतिनिधि ने कहा कि अल्फांसो आम कर्नाटक से लेकर गुजरात के सूरत तक करीब 150–200 साल से उगाया जा रहा है. उनका कहना है, हमने सिर्फ ‘वालसाड हापुस’ के नाम से GI टैग मांगा है, ताकि हमारी ब्रांड वैल्यू बढ़े. रत्नागिरी और देवगढ़ को पहले से टैग मिल चुका है, तो हमारे लिए भी गलत क्या है? हमारे आम का सीजन भी मई के बाद शुरू होता है, जब महाराष्ट्र का खत्म हो जाता है. अब इस मुद्दे को लेकर महाराष्‍ट्र और गुजरात के बीच विवाद खड़ा हो गया है. दोनों राज्‍यों के किसानों में खींचतान तेज हो गई है.

अब क्‍यों गर्माया मुद्दा?

‘टाइम्‍स ऑफ इंडिया’ की रिपोर्ट के अनुसार, स्थानीय निकाय चुनावों के बीच यह मुद्दा राजनीतिक रंग भी पकड़ रहा है. कुछ नेताओं ने आरोप लगाया कि गुजरात एक और ‘महाराष्ट्रीयन संपत्ति’ ले जा रहा है. कांग्रेस ने कहा कि पहले भी 16 प्रोजेक्ट महाराष्ट्र से हटाकर गुजरात में किए गए. एनसीपी (एसपी) नेता रोहित पवार ने सरकार से कोंकण किसानों की रक्षा करने की मांग की. वाशी एपीएमसी के व्यापारी भी दो तरफ बंटे हैं. कुछ कारोबारियों का कहना है कि गुजरात को जीआई टैग मिलने से कोकण के अल्फांसो को सीधी टक्कर मिलेगी. वहीं, कई व्यापारी कहते हैं कि वालसाड और कोंकण के आम में स्वाद, रंग, खुशबू और बनावट साफ अलग होती है. 700 किमी लंबी कोंकण-सौराष्ट्र बेल्ट में उगने वाला हर हापुस अपने अलग गुण लिए होता है, इसलिए तुलना गलत है.

GI टैग आखिर होता क्या है?


GI टैग यानी Geographical Indication एक तरह की पहचान है, जो किसी खास जगह की किसी चीज़ को दी जाती है. यह बताता है कि यह उत्पाद उसी इलाके से जुड़ी विशेषता, गुणवत्ता या परंपरा के कारण खास है.

GI टैग किसे दिया जाता है?


इसे खेती से जुड़े उत्पादों, हस्तशिल्प, खाने-पीने की चीज़ों और पारंपरिक वस्तुओं को दिया जाता है. जैसे दार्जिलिंग चाय, बनारसी साड़ी, नागपुर संतरा, मैसूर पेंटिंग आदि.

GI टैग का फायदा क्या होता है?


सबसे बड़ा फायदा यह है कि इससे उत्पाद की साख बढ़ती है. यह साबित करता है कि असली उत्पाद सिर्फ उसी जगह बन सकता है. इससे नकली सामान पर रोक लगती है और असली उत्पाद बनाने वालों की आय बढ़ती है.

GI टैग मिलने के बाद क्या बदलता है?


उत्पाद की ब्रांड वैल्यू बढ़ जाती है. किसानों और कारीगरों को बेहतर दाम मिलते हैं और बाजार में पहचान मजबूत होती है. साथ ही कानूनी सुरक्षा भी मिलती है, जिससे कोई दूसरी जगह वही नाम इस्तेमाल नहीं कर सकती.

इसे इतना महत्व क्यों दिया जाता है?


क्योंकि यह स्थानीय परंपरा, संस्कृति और कौशल को पहचान दिलाता है. देश के अनोखे उत्पादों को अंतरराष्ट्रीय स्तर पर भी मजबूत पहचान मिलती है.

क्‍या कहते हैं एक्‍सपर्ट?

कृषि विशेषज्ञों का कहना है कि GI टैग मिलने से हर क्षेत्र के किसानों को फायदा होगा क्योंकि अलग-अलग किस्मों को अपनी पहचान मिल जाएगी. चिपलून के एक किसान ने कहा कि हर क्षेत्र की फसल का सीजन अलग होता है, इसलिए बाजार में टकराव की आशंका भी कम है.

क्‍या है असली समस्‍या?

किसान और व्यापारी मानते हैं कि जीआई टैग असली सुरक्षा नहीं देता. बाजार में कोंकण हापुस की पेटियों में अक्सर सस्ते किस्मों के आम मिलाकर बेचे जाते हैं. यहां तक कि जूस, पल्प और आंरस बनाने वाली कंपनियां कोंकण अल्फांसो लिखकर पैक बेचती हैं, लेकिन अंदर सस्ते आम इस्तेमाल करती हैं. जीआई टैग को लेकर विवाद बढ़ रहा है, लेकिन असल चुनौतियां मिलावट, गलत लेबलिंग और किसानों को उचित दाम न मिलना ही हैं. अलग-अलग क्षेत्रों के हापुस की पहचान बने, इसके लिए साफ-सुथरे नियम और सख्त निगरानी जरूरी है, न कि राज्यों के बीच प्रतिस्पर्धा.

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Manish Kumar

बिहार, उत्‍तर प्रदेश और दिल्‍ली से प्रारंभिक के साथ उच्‍च शिक्षा हासिल की. झांसी से ग्रैजुएशन करने के बाद दिल्‍ली यूनिवर्सिटी से पत्रकारिता में PG डिप्‍लोमा किया. Hindustan Times ग्रुप से प्रोफेशनल कॅरियर की शु...और पढ़ें

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New Delhi,Delhi

First Published :

December 07, 2025, 09:45 IST

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