किशनगंज. भारत के नक्शे में उत्तर बंगाल की एक पतली पट्टी है, जिसे दुनिया सिलीगुड़ी कॉरिडोर या चिकन नेक के नाम से जानती है. यहीं से NH-31, रेल लाइन और एयर कॉरिडोर गुजरते हैं. बागडोगरा एयरपोर्ट, न्यू जलपाईगुड़ी रेलवे जंक्शन और कोलकाता-गुवाहाटी हाईवे- सब इसी गलियारे से होकर निकलते हैं. पूर्वोत्तर के 5 करोड़ लोग और पूरा क्षेत्र इसी एक मजबूत धागे से देश से जुड़े हैं. यह कोई साधारण रास्ता नहीं, बल्कि भारत की एकता का जीता-जागता प्रतीक है.
भले ही इसकी चौड़ाई कुछ स्थानों पर सिर्फ 20–22 किलोमीटर हो, लेकिन रणनीतिक दृष्टि से यह गलियारा भारत की रक्षा, व्यापार, कनेक्टिविटी और पूर्वोत्तर क्षेत्र के विकास की सबसे महत्वपूर्ण कड़ी है. दूसरे शब्दों में कहें तो यह कोरिडोर पूर्वोत्तर को जोड़ने वाली राष्ट्रीय जीवनरेखा के तौर पर महत्व रखता है जो पश्चिम बंगाल के सिलीगुड़ी शहर के पास स्थित है.यह भारत के सात पूर्वोत्तर राज्यों-असम, मेघालय, मणिपुर, मिजोरम, नागालैंड, त्रिपुरा और अरुणाचल प्रदेश को मुख्य भूमि भारत से जोड़ता है.
सबसे संकरा, सबसे मजबूत
सबसे पतला हिस्सा सिवोक से गाजोलडोबा तक सिर्फ 20-22 किमी चौड़ा है. लेकिन, यही संकीर्ण इलाका इसे रणनीतिक रूप से अनमोल बनाता है. भारतीय सेना ने यहां अपनी सबसे आधुनिक तैनाती की है- त्रिशक्ति कोर, माउंटेन डिविजन, एयर डिफेंस यूनिट और एसएसबी की मजबूत मौजूदगी है. डोकलाम संकट के बाद यहां इंफ्रास्ट्रक्चर को दोगुना किया गया है. सिलीगुड़ी कोरिडोरकी कुल लंबाई लगभग 200 किलोमीटर है. भारत की सैन्य और नागरिक कनेक्टिविटी का अधिकांश यातायात इसी मार्ग से होकर आगे जाता है.
व्यापार और विकास का इंजन
सिलीगुड़ी कॉरिडोर की चौड़ाई अलग-अलग जगहों पर भिन्न होती है, लेकिन अपने सबसे संकरे बिंदु पर यह केवल 20 से 22 किलोमीटर (लगभग 12-14 मील) तक सीमित हो जाता है.वहीं, इसकी अधिकतम चौड़ाई 60 किलोमीटर के करीब होती है. चिकन नेक सिर्फ सैन्य महत्व का नहीं, विकास का भी केंद्र है.इस गलियारे की अहमियत इसलिए भी बढ़ जाती है, क्योंकि इसके दोनों ओर भारत के तीन मित्र पड़ोसी देश-नेपाल, भूटान और बांग्लादेश स्थित हैं और पूर्व की ओर सिर्फ कुछ सौ किलोमीटर की दूरी पर चीन की सीमा है. यही भौगोलिक स्थिति इसे दक्षिण एशिया के सबसे प्रभावी भू-रणनीतिक स्थानों में शामिल करती है.
एक्ट ईस्ट पॉलिसी, भू-राजनीतिक त्रिकोण
भारत की एक्ट ईस्ट पॉलिसी, सीमाई सहयोग और अंतरराष्ट्रीय व्यापार की दृष्टि से यह क्षेत्र एक कूटनीतिक पुल की तरह काम करता है. एक्ट ईस्ट पॉलिसी का पूरा जोर इसी गलियारे पर है. सिलीगुड़ी अब नॉर्थईस्ट का सबसे बड़ा ट्रांजिट हब बन रहा है. चाय, तेल, बांस, फल और पर्यटन – सबका रास्ता यहीं से होकर गुजरता है. भारत सरकार ने इसे ‘स्ट्रैटेजिक गेटवे’ का दर्जा दे दिया है. अब यह सिर्फ जोड़ने वाला रास्ता नहीं, बल्कि पूर्वोत्तर को देश की आर्थिक राजधानी बनाने वाला इंजन है.
सबसे संकरा लेकिन सबसे मजबूत हिस्सा
कॉरिडोर का सबसे पतला इलाका लगभग 20–22 किलोमीटर चौड़ा है. यह संकरापन भारत के लिए चुनौती नहीं, बल्कि इस क्षेत्र की सामरिक संरचना को और परतदार बनाता है. यहां सेना की उच्च स्तरीय तैनाती है, ऑल-वेदर सड़कें हैं, एयर-बेस, इंटरनेट और हाइब्रिड सैन्य संचार व्यवस्था के साथ भारत की रक्षा संरचना को और अधिक बेहतर बनाती है. चिकन नेक कोई कमजोरी नहीं – यह भारत की दूरदर्शिता, एकता और विकास की सबसे खूबसूरत मिसाल है. 20 किमी चौड़ा रास्ता, लेकिन अनगिनत सपनों को जोड़ने की ताकत रखता है.
अब सिर्फ रास्ता नहीं, इकोनॉमिक कॉरिडोर
पिछले एक दशक में रेल, सड़क और रक्षा-आधारित इन्फ्रास्ट्रक्चर के विस्तार ने इस गलियारे को सिर्फ ट्रांजिट रास्ता नहीं, बल्कि एक आर्थिक शक्ति केंद्र में बदल दिया है. यहां मुख्य प्रोजेक्ट पर गौर करें तो सिलीगुड़ी-गंगटोक ऑल-वेदर रोड, बागडोगरा एयरबेस का सैन्य-नागरिक विस्तार, पूर्वोत्तर रेलवे ब्रॉड-गेज नेटवर्क (Northeast Railway Broad-Gauge Network), भारत-बांग्लादेश व्यापार गलियारा (India-Bangladesh Trade Corridor) से नॉर्थ ईस्ट में तेजी से औद्योगिक और पर्यटन गतिविधियां भी बढ़ी हैं.
भविष्य में और मजबूत होगा पूर्वोत्तर
भारत सरकार अब मल्टी-लेयर एक्सेस सिस्टम पर काम कर रही है, जिसमें रेल, सड़क, नदी-जलमार्ग और एयर-लॉजिस्टिक्स शामिल हैं. लक्ष्य स्पष्ट है कि- पूर्वोत्तर और दक्षिण-पूर्व एशिया को भारत के विकास मॉडल का अगला केंद्र बनाना है. ऐसे में कहा जा सकता है कि यह कोई कमजोरी नहीं, बल्कि भारत की रणनीतिक चतुराई का शानदार नमूना है. महज 20-22 किमी चौड़ा होने के बावजूद यह 180-200 किमी लंबा गलियारा पूर्वोत्तर के सात बहनों को देश की मुख्यधारा से मजबूती से जोड़ता है. यह भारत की एकता, व्यापार और विकास का स्वर्णिम द्वार भी है.

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