Last Updated:November 14, 2025, 20:49 IST
सुप्रीम कोर्ट ने ट्रायल कोर्ट के रवैये पर सख्त रुख दिखाते हुए साफ कहा कि निचली अदालतें सीधे सर्वोच्च अदालत को समय बढ़ाने की अर्जी नहीं दे सकतीं. जस्टिस जे.के. माहेश्वरी और जस्टिस के. विनोद चंद्रन की बेंच ने टिप्पणी की कि ट्रायल कोर्ट जज ने न सिर्फ गलत प्रक्रिया अपनाई, बल्कि हलफनामा भी अधूरा भेज दिया. बेंच ने पूछा, “जब साफ निर्देश हैं, तो रास्ता बदलकर क्यों आए?” कोर्ट ने याद दिलाया कि पहले भी चेतावनी दी जा चुकी है.
सुप्रीम कोर्ट ने नाराजगी जाहिर की. नई दिल्ली. सुप्रीम कोर्ट ने एक बार फिर ट्रायल कोर्ट के उस रवैये पर कड़ी नाराजगी जताई, जिसमें निचली अदालतें सीधे सर्वोच्च न्यायालय को पत्र भेजकर ट्रायल पूरा करने की समय-सीमा बढ़ाने की मांग करती हैं. कोर्ट ने स्पष्ट कहा कि ऐसी कोई भी अर्जी या पत्र सीधे सुप्रीम कोर्ट को नहीं भेजा जा सकता. उन्हें हाईकोर्ट के जरिए ही भेजा जाना चाहिए. शुक्रवार को जस्टिस जे.के. माहेश्वरी और जस्टिस के. विनोद चंद्रन की बेंच के सामने जब बताया गया कि ट्रायल कोर्ट के जज ने समय बढ़ाने की अर्जी भेजी है, तो बेंच ने इसे प्रक्रिया के विपरीत बताते हुए कड़ी आपत्ति जताई.
ये रूट क्यों नहीं किया फॉलो
बेंच ने पाया कि ट्रायल कोर्ट जज द्वारा भेजा गया हलफनामा अधूरा था और उसमें जरूरी विवरण तक नहीं दिए गए थे. इस पर जस्टिस माहेश्वरी ने तीखे शब्दों में पूछा, “हम इन पत्रों को कैसे स्वीकार करें? हाईकोर्ट और सुप्रीम कोर्ट दोनों की तरफ से स्पष्ट दिशा-निर्देश हैं, फिर भी सीधे हमारे पास क्यों आ रहे हैं? पहले जिला जज को बताते, फिर मामला पोर्टफोलियो जज के जरिए हाईकोर्ट से आता. यह प्रक्रिया ही सही है.” बेंच ने कहा कि सुप्रीम कोर्ट का आदेश हुआ और निचली अदालत सीधे सर्वोच्च अदालत से राहत मांगने लगे, यह बिल्कुल अनुचित है.
पहले भी दी जा चुकी है चेतावनी
यह पूरा मामला एक पारिवारिक विवाद से जुड़ा है. 20 मार्च को जस्टिस सुधांशु धूलिया और जस्टिस के. विनोद चंद्रन की बेंच ने इस मामले की सुनवाई छह महीने में पूरी करने का निर्देश दिया था. केस निपटाने की निर्धारित अवधि खत्म होने से पहले ट्रायल कोर्ट के जज ने सीधे सुप्रीम कोर्ट में समय बढ़ाने के लिए याचिका दायर कर दी. इस पर बेंच ने स्पष्ट कहा कि यह प्रक्रिया बिल्कुल गलत है और ऐसी अर्जी हाईकोर्ट के रजिस्ट्रार जनरल के माध्यम से ही भेजी जानी चाहिए.
ट्रायल कोर्ट को लगाई गई थी फटकार
इससे पहले मई में भी सुप्रीम कोर्ट ने Durgawati @ Priya vs CBI मामले में इसी मुद्दे पर ट्रायल कोर्ट को फटकार लगाई थी. उस आदेश में कोर्ट ने कहा था कि जब सुप्रीम कोर्ट किसी केस को जल्द निपटाने का निर्देश देता है, तो उसकी प्रगति पर नजर रखना हाईकोर्ट की जिम्मेदारी है. यदि समय बढ़ाने की जरूरत हो, तो हाईकोर्ट के सुपरवाइजिंग अधिकारी की अनुमति से रजिस्ट्रार जनरल या रजिस्ट्रार ज्यूडिशियल द्वारा रिपोर्ट भेजी जानी चाहिए.
हाईकोर्ट्स को SOP बनाने का निर्देश
सुप्रीम कोर्ट ने दोहराया कि निचली अदालतें सीधे सर्वोच्च अदालत से संवाद नहीं कर सकतीं. साथ ही हाईकोर्ट्स को निर्देश दिया गया कि वे एक स्टैंडर्ड ऑपरेटिंग प्रोसीजर (SOP) तैयार करें, जिसमें यह बताया जाए कि ऐसे मामलों में सुप्रीम कोर्ट के साथ किस तरह का संवाद और किस स्तर से होना चाहिए.
पत्रकारिता में 14 साल से भी लंबे वक्त से सक्रिय हूं. साल 2010 में दैनिक भास्कर अखबार से करियर की शुरुआत करने के बाद नई दुनिया, दैनिक जागरण और पंजाब केसरी में एक रिपोर्टर के तौर पर काम किया. इस दौरान क्राइम और...और पढ़ें
पत्रकारिता में 14 साल से भी लंबे वक्त से सक्रिय हूं. साल 2010 में दैनिक भास्कर अखबार से करियर की शुरुआत करने के बाद नई दुनिया, दैनिक जागरण और पंजाब केसरी में एक रिपोर्टर के तौर पर काम किया. इस दौरान क्राइम और...
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First Published :
November 14, 2025, 20:48 IST

2 hours ago
