Russia-India Relationship: भारत और रूस की साझेदारी से घातक मिसाइल ब्रह्मोस भी बनी है. दोनों देशों की यह साझेदारी आज नहीं बल्कि सालों से है. इसी कड़ी में आपको एक घटना बताते हैं. बता दें कि साल 1970-71 के दौर में भारत खुद को धीरे-धीरे स्थापित करने में लगा था. इस दौरान वैश्विक राजनीति और अंतरिक्ष में एक दिलचस्प घटना घटी. सोवियत संघ का Luna-16 मिशन चांद से लौटते समय अपने साथ वहां कि मिट्टी लाया और खास बात ये है कि यह मिट्टी सबसे पहले भारत आई.
भारत को दी चांद की मिट्टी
बता दें कि साल 1970 में Luna-16 मिशन सफलतापूर्वक चांद की मिट्टी वापस लाने वाला पहला रोबोटिक सोवियत मिशन था. इस मिट्टी ने वैज्ञानिकों को चांद की रचना-संरचना को समझने का मौका दिया. उस दौर में भारत और सोवियत के रिश्ते भी काफी अच्छे थे. दोनों देशों के बीच इंडो-सोवियत ट्रीटी पीस, फ्रेंडशिप एंड कोऑपरेशन साइन हुआ था. उस समय USSR के लिए भारत एशिया में एक रणनीतिक साझेदार था, जिसकी सीमा के युद्ध और वैश्विक कूटनीति में अहम भूमिका मानी जाती थी. इस विज्ञान-कूटनीति के जरिए सोवियत भारत के साथ वैज्ञानिक और तकीनीकी साझेदारी को आगे बढ़ाने का संदेश दे रहे थे.
सोवियत और भारत के रिश्ते
बता दें कि साल 1971 के समझौते के बाद सोवियत और भारत के रिश्ते अधिक भरोसेमंद बने थे. USSR इस उपहार के जरिए यह दोस्ती और स्पष्ट हुई. उस दौरान ISRO के भारतीय वैज्ञानिक भी तेजी से उबर रहे थे, जिसपर सोवियत को पूरा भरोस था और वे इस तकनीकी सहयोग को आगे बढ़ाना चाहते थे. आर्यभट्ट सैटेलाइट का साल 1975 में USSR लॉन्चिंग इसी सहयोग का नतीजा था.
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गगनयान में रूस का योगदान
भारत ने रूस की ओर से दिए गए चांद की इस मिट्टी का भारत में साइंटिफक एनालिसिस किया. इसके नमूने से लूनर रिसर्च स्टडी में काफी मदद मिली, जिससे ISRO और इंडियन लैबोरैटरीज को ग्लोबल डाटा नेटवर्क का हिस्सा बनने का मौका मिला. इसके अलावा USSR ने भारत के साथ डिफेंस, अंतरिक्ष, शिक्षा और टेक्नोलॉजी में भी संबंध बढ़ाए. आर्यभट्ट- 1975 के सफल लॉन्चिंग से लेकर भारतीय वैज्ञानिकों के लॉन्चिंग तक भारत-रूस का अंतरिक्ष सहयोग मुख्य रूप से सामने आया. दोनों देश 60 साल के इस अंतराल में कई मुकाम देख चुके हैं. आज भारत ने रूस की स्पेस टेक्नोलॉजी का इस्तेमाल गगनयान मिशन में भी किया है. ऐसे में इस मिशन के सफल होने की उम्मीद अधिक बढ़ गई है.

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