Cyprus Crisis: भूमध्य सागर का रणनीतिक रूप से महत्वपूर्ण द्वीप राष्ट्र साइप्रस बीते कई दशकों से विभाजन की स्थिति में है. द्वीप का उत्तरी हिस्सा तुर्क सिप्रिएट आबादी के नियंत्रण में है, जबकि दक्षिण और मध्य भागों में मुख्य रूप से यूनानी या ग्रीक सिप्रिएट लोग रहते हैं. इस विभाजन ने न केवल राजनीतिक अस्थिरता को बढ़ाया, बल्कि क्षेत्रीय तनाव को भी लगातार भड़काए रखा है. संयुक्त राष्ट्र की शांति सेना वर्षों से दोनों पक्षों के बीच एक बफर जोन (ग्रीन लाइन) बनाए हुए है, ताकि किसी भी प्रकार की झड़प को रोका जा सके.
तुर्किये ने सैन्य हस्तक्षेप से साइप्रस का हुआ था विभाजन
जानकरी के अनुसार, साइप्रस के विभाजन की जड़ें 1974 के संकट में छिपी हैं, जब ग्रीस समर्थित एक सैन्य तख्तापलट के बाद तुर्किये ने सैन्य हस्तक्षेप किया और द्वीप के उत्तरी हिस्से पर नियंत्रण कर लिया. तब से उत्तरी साइप्रस तुर्क साइप्रस का अलग प्रशासनिक ढांचा संचालित करता है, जिसे केवल तुर्किये ही मान्यता देता है. वहीं, दक्षिणी साइप्रस जिसे औपचारिक रूप से रिपब्लिक ऑफ साइप्रस कहा जाता है अंतरराष्ट्रीय स्तर पर मान्यता प्राप्त है और यूरोपीय संघ का सदस्य भी है.
कई दशकों से दोनों पक्षों के बीच समझौते के लिए वार्ताएं जारी हैं. संयुक्त राष्ट्र और यूरोपीय संघ ने बार-बार बातचीत का प्रयास किया, लेकिन सत्ता साझेदारी, सुरक्षा व्यवस्था, संपत्ति विवाद और प्रशासनिक सीमाओं पर सहमति न बनने के कारण ये वार्ताएं हर बार विफल रहीं. 2004 में हुए ‘अन्नान प्लान’ को भी इसी कारण जनता ने बड़े पैमाने पर खारिज कर दिया था जिसे संयुक्त राष्ट्र संघ ने शुरू किया था.
हालांकि, अब एक बार फिर परिस्थितियां बदलती दिखाई दे रही हैं. हाल के राजनीतिक घटनाक्रमों और कूटनीतिक प्रयासों से संकेत मिल रहे हैं कि दोनों पक्ष समाधान की दिशा में आगे बढ़ने के इच्छुक हैं. कुछ विशेषज्ञों का मानना है कि यूक्रेन युद्ध के बाद यूरोपीय संघ की सुरक्षा प्राथमिकताएं बदल गई हैं और वह अपने पड़ोसी इलाकों में स्थिरता बढ़ाने के लिए पहले से अधिक सक्रिय है. इसके अलावा पूर्वी भूमध्य सागर के गैस भंडारों ने साइप्रस को आर्थिक और रणनीतिक रूप से और भी महत्वपूर्ण बना दिया है. इससे दोनों पक्षों को सहयोग की दिशा में बढ़ने का एक नया अवसर मिल सकता है. तुर्किये भी आर्थिक दबावों और यूरोपीय देशों से बेहतर संबंध सुधारने की कोशिशों के कारण समाधान में रुचि दिखा रहा है. वहीं यूनानी साइप्रस पक्ष के भीतर भी यह भावना बढ़ रही है कि स्थायी समाधान से आर्थिक विकास तेज हो सकता है और क्षेत्रीय तनाव कम हो सकता है.
साइप्रस के सामने कई चुनौतियां
संयुक्त राष्ट्र ने भी संकेत दिए हैं कि इस वर्ष शांति वार्ताओं की नई रूपरेखा तैयार की जा सकती है. हालांकि, उम्मीदों के साथ चुनौतियां भी उतनी ही बड़ी हैं. सत्ता बंटवारे का मॉडल, सुरक्षा गारंटी, तुर्किये की सैन्य उपस्थिति, विस्थापित लोगों की संपत्ति संबंधी दावों और प्रशासनिक सीमांकन जैसे मुद्दे अब भी समाधान की राह में मुख्य बाधाएं बने हुए हैं. फिर भी, मौजूदा माहौल में यह पहली बार है जब लंबे समय से विभाजित साइप्रस के लिए एकीकरण की संभावनाएं इतनी स्पष्ट दिख रही हैं. आने वाले महीनों में कूटनीतिक प्रयास यह तय करेंगे कि क्या यह द्वीप अपने दशकों पुराने विभाजन को खत्म कर एक बार फिर एकीकृत होने की ओर बढ़ सकेगा, या यह मौका भी हर बार की तरह अधूरा रह जाएगा.

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