Opinion: कर्तव्य पथ से लोकभवन पहुंचने पर निकलेगा लोक कल्याण का रास्ता?

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Last Updated:December 02, 2025, 14:49 IST

अब देश में 'राजभवन' को आधिकारिक रूप से 'लोकभवन' के नाम से जाना जाएगा. इस बाबत केंद्र सरकार ने एक बड़ा प्रशासनिक फैसला लिया है. भारतीय लोकतंत्र में नामों का बदलाव मात्र प्रतीकात्मक नहीं होता, बल्कि यह एक गहरी सांस्कृतिक और शासकीय परिवर्तन की दिशा को इंगित करता है. हाल के वर्षों में केंद्र सरकार द्वारा किए गए कुछ महत्वपूर्ण नाम परिवर्तन- जैसे राजपथ को कर्तव्य पथ, 7 रेस कोर्स रोड (आरसीआर) को लोक कल्याण मार्ग और अब राजभवन को लोकभवन में बदलना- यह दर्शाते हैं कि कैसे शासन की भाषा को राजसी ठाठ-बाट से हटाकर जन-केंद्रित बनाने की कोशिश हो रही है. ये बदलाव औपनिवेशिक मानसिकता से मुक्ति का प्रतीक हैं और लोक कल्याण की अवधारणा को मजबूत करते हैं.

 कर्तव्य पथ से लोकभवन पहुंचने पर निकलेगा लोक कल्याण का रास्ता?अब देश में 'राजभवन' को आधिकारिक रूप से 'लोकभवन' के नाम से जाना जाएगा

परिवर्तन यानी बदलाव संसार का शाश्वत नियम है. ये बदलाव समय, देश और कालखंड के हिसाब से होते रहे हैं. भारत में भी समय-समय पर कई बड़े बदलाव हुए हैं. कभी राजपथ का कर्तव्य पथ बन जाना तो कभी 7 आरसीआर का लोक कल्याण मार्ग कहलाना. भारत ने औपनिवेशिक मानसिकता की जंजीरों और गुलामी वाली प्रथा से खुद को आजाद करने की हमेशा कोशिश की है. इसी कड़ी में भारत ने एक और अहम बदलाव किया है. यह बदलाव है राजभवन का लोकभवन में बदल जाना. जी हां, ‘राजभवन’ अब से ‘लोकभवन’ कहलाएगा. भारत में 8 से 9 राज्यों ने इस बदलाव को स्वीकार कर भी लिया है. यह बदलाव लोक कल्याण की अवधारणा को और मजबूत करते हैं.

दरअसल, लोकतंत्र में नामों का बदलाव महज प्रतीकात्मक नहीं होता. यह औपनिवेशिक मानसिकता को दूर करने के लिए उठाया गया कदम है. यह नाम परिवर्तन न केवल प्रतीकात्मक है, बल्कि लोकतंत्र की जड़ों को मजबूत करने वाला भी है. यह गुलामी की मानसिकता से आजाद करने का भी प्रतीक है. इससे पहले भी कई नाम बदले गए हैं. मोदी सरकार ने बीते कुछ समय में कुछ अहम नाम परिवर्तन किए हैं- मसलन राजपथ अब कर्तव्य पथ, 7 रेस कोर्स रोड (आरसीआर) अब लोक कल्याण मार्ग और राजभवन अब लोकभवन. ये सभी बदलाव यह समझाने के लिए काफी हैं कि कैसे शासन की भाषा को राजसी ठाठ-बाट और औपनिवेशिक निशानियों से हटाकर लोक-केंद्रित बनाने की कोशिश हो रही है.

क्यों अहम हैं ये बदलाव?
राजभवन का लोकभवन होना भी इसी औपनिवेशिक मानसिकता से आजादी का प्रतीक है. राजभवन में राज शब्द है, जबकि लोकभवन में लोक. राज का मतलब राजशाही से है. इससे राजतंत्र की बू आती है. जबकि लोक का मतलब ही लोग यानी आम आदमी होता है. राजभवन से इतर लोकभवन यह आम लोगों को कनेक्ट करता है. इतना ही नहीं, यह बदलाव लोक कल्याण की अवधारणा को मजबूत करता है. ये बदलाव सरकार को लोक कल्याण का रास्ता निकालने में मदद करेंगे, जहां कर्तव्य (कर्तव्य पथ) की भावना से शुरू होकर लोकभवन तक पहुंचते हुए आखिरकार लोक कल्याण का मार्ग सुनिश्चित होता है.

पश्चिम बंगाल के राज्यपाल ने भी राजभवन का नाम लोकभवन में बदला.

राजपथ से कर्तव्यपथ का सफर
इस बदलाव की कहानी शुरू होती है 7 आरसीआर और राजपथ का नाम बदलने से. दिल्ली का ऐतिहासिक राजपथ अब कर्तव्य पथ के नाम से जाना जाता है. यह इंडिया गेट से राष्ट्रपति भवन तक फैला है. यह बदलाव प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की पहल पर हुआ. यह औपनिवेशिक ‘किंग्सवे’ की याद दिलाने वाले नाम को हटाकर ‘कर्तव्य’ की भावना को स्थापित करता है. राजपथ शक्ति और राजसी प्रदर्शन का प्रतीक था, मगर कर्तव्य पथ शासकों और नागरिकों दोनों के लिए दायित्व की याद दिलाता है. इससे साफ होता है कि सरकार का संदेश शासन सेवा है, न कि शासन.

7 आरसीआर से लोक कल्याण मार्ग
इससे पहले मोदी सरकार ने अपने पहले कार्यकाल में प्रधानमंत्री आवास 7 आरसीआर को लोक कल्याण मार्ग में बदला था. ‘रेस कोर्स रोड’ का नाम ब्रिटिश काल की घुड़दौड़ की याद दिलाता था, जो औपनिवेशिक विलासिता का प्रतीक था. इसे लोक कल्याण मार्ग नाम देकर सरकार ने साफ कर दिया कि प्रधानमंत्री का निवास अब ‘लोक कल्याण’ का केंद्र है. यह नाम बदलाव मात्र सड़क का नहीं, बल्कि सरकार के काम करने के तौर-तरीकों और शासन की दिशा का परिवर्तन है. लोक कल्याण मार्ग से निकलने वाली सभी नीतियां लोक-कल्याण पर केंद्रित हैं. इन बदलावों से सरकार ने लोगों को सरकार से जोड़ने की कोशिश की. यहां कल्याण का अर्थ स्वास्थ्य, शिक्षा और आर्थिक समृद्धि से है.

सरकार का मैसेज क्या?
राजभवन का लोकभवन होना अब इसी कड़ी का हिस्सा है. इस तरह ये कदम दिखाते हैं कि सरकार औपनिवेशिक काल के नामों में बदलाव करके आम जन-मानस में विश्वास पैदा कर रही है, जो लोक कल्याण के लिए बेहद जरूरी है. इन तीनों बदलावों को जोड़कर देखें तो एक साफ पैटर्न दिखता है. वह यह कि कर्तव्य पथ से विकास यात्रा शुरू होती है, जहां शासक अपना दायित्व समझते हैं, लोकभवन पहुंचकर यह जन-केंद्रित शासन का रूप लेती है और आखिरकार लोक कल्याण मार्ग पर पहुंचकर आम जनता के हित साकार होते हैं. ये नाम परिवर्तन औपनिवेशिक निशानियों से आजादी का हिस्सा हैं और यह भारतीय संविधान की मूल भावना- ‘वी द पीपल’-को मजबूत करते हैं.

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Shankar Pandit

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December 02, 2025, 14:49 IST

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